कोरोना के दौरान हर व्यक्ति हर तरह से अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में प्रयासरत है। प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा खाना, ऐसे खाने योग्य पदार्थ चाहिए जो पोषण से न सिर्फ भरपूर हों बल्कि कोरोना जैसे वायरस से लड़ने में शरी की क्षमता को बढ़ा सकें। दूसरी ओर इस महामारी के कारण बेरोजगारी का भी स्तर बड़ा है। ऐसे में मशरुम की खेती एक अवसर के रूप में दिखाई देती हैं, क्योंकि मशरूम पोषक तत्वों से भरपूर है और बाजार में इसकी मांग भी है।
मशरूम की खेती करने के लिए बहुत ज्यादा जगह की जरुरत नहीं होती है। अपने घर की किसी खाली जगह में भी आराम से उगाए जा सकते हैं। ग्रामीण महिलाओं के लिए भी मशरूम की खेती उनकी पारिवारिक आय बढ़ाने में मददगार हो सकती है। महिलाएं घर में रहकर मशरूम की खेती को व्यापार के रूप में अपना सकती हैं। इसके साथ ही किसान भाई भी इसको छोटे स्तर पर शुरू करके अपनी अतिरिक्त आय का जरिया बना सकते हैं।
मशरूम का व्यापार करने के तरीके मशरूम की खेती का व्यापार 2 तरीके से किया जाता है, या तो अपनी कंपनी बनाकर मशरूम का व्यापार शुरु कर सकतें हैं या मशरूम की खेती करके। मशरूम के प्रकार वैज्ञानिकों के अनुसार मशरूम की लगभग 1000 किस्में में हमारी धरती पर मौजूद है, लेकिन व्यापारिक नजरिए से मशरूम की लगभग 5 किस्में ही अच्छी मानी जाती हैं, जिनके नाम बटन मशरूम, पैडी स्ट्रॉ, स्पेशली मशरूम, दवाओं वाली मशरूम, ढ़िगरी या ओयस्टर मशरूम हैं। इन सब में बटन मशरूम सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली किस्म है, कभी-कभी इसको मिल्की मशरूम भी कहा जाता है।
मशरूम के बीज की कीमत मशरूम के बीज की कीमत लगभग 75 रुपए प्रति किलोग्राम होती है जो कि ब्रांड और किस्म के अनुसार बदलती रहती है। मशरूम के बीज को ऑनलाइन या सीधे सरकारी कृषि केंद्रों से प्राप्त किया जा सकता है।
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मशरूम की मांग वाले स्थान मशरूम की मांग कई जगहों पर होती है। इसको बेचने के लिए उपयुक्त स्थानों में होटल, दवाएं बनाने वाली कंपनियां आदि आते हैं। इसके अलावा मशरूम का उपयोग अधिकतर चाइनीज खाने में भी किया जाता है। इसके अन्य लाभकारी गुणों के कारण इसको मेडिकल के क्षेत्र में भी उपयोग किया जा रहा है, इतना ही नहीं इसका निर्यात भी कई देशों में किया जाता है।
मशरूम की खेती में लगने वाली लागत मशरूम की खेती में लगने वाली राशि व्यक्ति की क्षमता एवं व्यापार के स्तर के अनुसार बदलती रहती है, मशरूम की खेती में केवल इसकी देखभाल एवं उगाने के स्थान को बनाने में ही पैसे लगाने पड़ते हैं इसके अलावा कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल करने के लिए भी खर्च आता है। छोटे स्तर पर मशरूम खेती करने के लिए 10000 रुपए से 50000 रुपए तक की लागत आती है, जबकि बड़े स्तर पर मशरूम की खेती करने के लिए 100000 रुपए से 1000000 रुपए तक का निवेश करना उचित रहता है। मशरूम के व्यापार से मिलने वाला लाभ मशरूम से होने वाला लाभ व्यक्ति की उत्पादन क्षमता बढ़ाने वाली तकनीक पर निर्भर करता है। अगर आप 100 वर्ग मीटर क्षेत्रफल से व्यापार आरंभ करते हैं, तो आपको प्रत्येक वर्ष 100000 रुपए से 500000 रुपए तक का लाभ मिल सकता है।
मशरूम के व्यापार में लाभ की बात करें तो पूरे विश्व में मशरूम के व्यापार हर साल 12.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही।
मशरूम के व्यापार में मिलने वाली सरकारी सहायता मशरूम के व्यापार में सरकारी सहायता प्राप्त करने हेतु एक व्यवसायिक प्रस्ताव बनाकर सरकारी कार्यालय में जमा कराना होता है। इसके साथ ही पैन कार्ड, आधार कार्ड, निवास प्रमाण पत्र और बैंक खाता की जानकारी भी देनी होती है। छोटे किसान के लिए हर एक मशरूम फल के थैले पर 40% प्रतिशत तक एवं सामान्य व्यक्ति के लिए 20% तक सब्सिडी प्राप्त की जा सकती है।
मशरूम व्यापार के लिए मिलने वाला सरकारी प्रशिक्षण छोटे किसानों को मशरूम की खेती के व्यापार में सब्सिडी देकर सरकार उनकी मदद तो कर ही रही है, साथ ही मुफ्त प्रशिक्षण की भी सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है, जिसके लिए सरकार ने कई प्रशिक्षण केंद्र खोल रखे हैं। जहां मशरूम उगाने की सभी तकनीकों के बारे में जानकारी दी जाती है। ज्यादा जानाकरी के लिए किसान भाई अपने जिलों में जिला उद्यान अधिकारी अथवा नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र में संपर्क करें।
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मशरूम का प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग)
मशरूम एक शीघ्र खराब होने वाला खाद्य पदार्थ है, जिसे 4 से 5 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर भी 3 से 4 दिन तक ही सुरक्षित रखा जा सकता है। इसलिए मशरूम उत्पादन का एक बहुत बड़ा हिस्सा प्रसंस्करण के लिए प्रसंस्करण इकाई में भेजा जाता है। प्रसंस्करण या संसाधन (प्रोसेज) इकाई में मशरूम की मांग पूरे वर्ष निरंतर बनी रहती है और उत्पादक को अपने उत्पादन के लिए एक निश्चित मूल्य भी मिलता है। बाजार में ताजे मशरूम की मांग घटती बढ़ती रहती है। शादी उत्सव के मौसम में इसकी मांग बहुत अधिक होती है। गर्मियों में मशरूम का उत्पादन उत्पादन केवल ठंडे पहाड़ी क्षेत्रों में ही होता है इसलिए मैदानी इलाकों में इसका बहुत अच्छा रेट मिल जाता है।
सफेद बटन मशरूम को सुखाया नहीं जा सकता, क्योकि सुखाने से जो मशरूम मिलता है उसका रंग गहरा भूरा हो जाता है तथा पानी में डालने पर यह बहुत अधिक पानी भी नहीं सोच पाता। इसलिए सुखाए गए मशरूम और ताजे मशरूम में बहुत अधिक अंतर हो जाता है, इसलिए मशरूम का संसाधन ही ताजी मशरूम का अतिरिक्त विकल्प है।
मशरूम प्रसंस्करण ऐसे करें 1.सबसे पहले मध्यम आकार का बंद मशरूम छाटा जाता है। मशरूम किसी भी दशा में खुला नहीं होना चाहिए क्योंकि खुले मशरूम से बीजाणु निकलते हैं, जो इसे अवांछनीय गहरा रंग देते हैं।
2.मशरूम को अच्छी तरह बहते पानी में धोया जाता है जिससे इसमें लगी मिट्टी अच्छी तरीके से निकल जाए। तने से यदि कवक धागे लटके नजर आ रहे हो तो उन्हें भी काट कर अलग कर देते हैं। संसाधन के लिए केवल चिकने दोष रही छोटे तने वाले मशरूम का ही प्रयोग करना चाहिए। मशरूम धोने के लिए जो पानी प्रयोग में लाया जाए उसमें साइट्रिक एसिड (0.1%) व पोटैशियम मेटाबाईसल्फाइट (0.025%) डालकर घोल भी बनाया जा सकता है। इस घोल में धोने से मशरूम में सफेदी आ जाती है।
3.मशरूम को खौलते पानी में दो-तीन मिनट तक डालकर विवरण किया जाता है। खोलते पानी से 3 मिनट के अंदर ही निकाल लेना चाहिए और एकदम से ठंडे पानी (जिसमें नमक व साइट्रिक एसिड पहले से ही मिलाया गया हो) में डाल देते हैं। इस क्रिया से मशरूम की गुणवत्ता स्थिर हो जाती है।
4.इन मशरुम को अब टीन के डिब्बों में तीन चौथाई हिस्से तक भर लेते हैं। यहां प्रयोग में लाए जाने वाले डिब्बे अच्छी तरह धुले व साफ सुथरे होने चाहिए। अब पानी में नमक साइट्रिक (20 ग्राम प्रति लीटर) या एस्कोरबिक एसिड(1-2 ग्राम प्रति लीटर) का घोल बनाते हैं। इस खोल को डिब्बों में इस प्रकार भरा जाता है कि मशरूम अच्छी तरह से डूब जाए। इन डिब्बों में अब ढक्कन लगाया जाता है।
5. इन सीलबंद डिब्बों को अब ऑटोक्लेव (एक विशेष मशीन) में जीरो पॉइंट 7 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर से या 10 पाउंड प्रति वर्ग इंच दाब पर निर्जीवीकरण किया जाता है। इस दाब पर 25 -30 मिनट तक रखने पर डिब्बों में 115 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान बना रहता है। इस तापमान पर सभी प्रकार के हानिकारक जीव नष्ट हो जाते हैं।
6. ऑटोक्लेव से निकलने के बाद डब्बों को एकदम बहते पानी में रखकर ठंडा किया जाता है। इससे मशरूम नरम होने से बच जाते हैं। 7. प्रोससिंग की क्रिया में अंतिम कार्य डिब्बों में लेबल लगाने का होता है। लेबल में मशरूम का भार, बैच नंबर व डिब्बा बंद करने की तिथि आदि दी जाती है।
लेखिका- डॉ दीपाली चौहान, कृषि विज्ञान केन्द्र ,रायबरेली में गृह विज्ञान वैज्ञानिक हैं। ये उनके निजी विचार हैं