स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट
मदनापुर (शाहजहांपुर)। मशरूम की खेती किसानों के लिए अब फायदे का सौदा बन रही है। इसके प्रति किसानों का रुझान लगातार बढ़ता जा रहा है। करीब पांच साल से किसानों में मशरूम की खेती तेजी से लोकप्रिय हुई है। किसानों की कड़ी मेहनत तथा अच्छे भाव मिलने के कारण मशरूम की खेती फायदे का सौदा साबित होने लगी।
किसान सीमित संसाधन में मशरूम की खेती कर बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं। कम जगह में अधिक से अधिक फायदा देने वाली यह खेती कई किसानों के आय का जरिया बन रही है। शुरुआत में मशरूम की खेती करने वाले किसानो की आर्थिक स्थिति में आए सुधार को देखते हुए भारी संख्या में किसानों ने इसे अपना लिया। आचार फैक्टरी, सूप के पाउडर, होटलों व विवाह समारोह में सब्जी आदि में इस्तेमाल होने वाली सफेद बटन मशरूम का उत्पादन लगातार बढ़ा है।
भुड़िया गाँव में मशरूम की खेती करने वाले जितेंद्र कुमार (38 वर्ष) बताते है, “मशरूम की खेती अति संवेदनशील होती है, काफी हद तक यह मौसम पर निर्भर करता है, अधिक ठंड में इसका उत्पादन ठहर जाता है। अभी उत्पादन की शुरुआत नहीं हुई है यह करीब नवम्बर से शुरू हो सकेगा और अगर हल्की ठंड का मौसम लंबा चला तो उत्पादन और अधिक समय तक मिलता रहेगा।”
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उसी गाँव के गेंदनलाल (44 वर्ष) मशरूम की खेती के फायदे के बारे में बताते हैं कि सीजन के शुरू में मशरूम का भाव 110 से 130 रुपए किलो होता है। मगर मार्केट में पैदावार अधिक आने पर किसान को 40-70 रुपए प्रति किलो तक भाव ही मिल पाता है। वे अपने अनुभव के आधार पर बताते हैं कि मौसम में एकाएक बदलाव व जरा सी लापरवाही होने पर मशरूम की खेती में नुकसान होने में देर नहीं लगती, उन्हें भी शुरू में नुकसान हो चुका है।
घर की छत पर भी उगा सकते हैं मशरूम
वहीं मशरूम की खेती के जानकार प्रतिपाल सिंह (45 वर्ष) बताते हैं कि मशरूम के लिए लंबे-चौड़ै रकबे की आवश्यकता नहीं होती इसकी शुरुआत छोटे प्लांट से भी की जा सकती है और प्लांट भी किराए पर लिया जा सकता है। यही वजह है कि मशरूम की खेती आजकल युवा बेरोजगारों में खासी लोकप्रिय हो चुकी है। अपने किचन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए घर की छत के कोने पर भी खेती की जा सकती है। विशेषज्ञों की माने तो घर की बड़ी छत पर भी मशरूम उगाई जा सकती है।
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बांस की पट्टियों से बनाएं ढांचा
मशरूम उगाने के लिए पहले लकड़ी के बांस की पट्टियों को रस्सियों की मदद से बांधकर ढांचा खड़ा किया जाता है। ढांचे में बांस की पट्टियों के ऊपर-नीचे चार खाने तैयार किए जाते हैं। ढांचे के चारों ओर धान की पुराली से शेड खड़ा किया जाता है। बांस के ढांचे में पॉलीथीन की शीट बिछाई जाती है। शीट में भूसे से तैयार मेटेरियल में कंपोस्ट मिलाकर बीज डाला जाता है। करीब डेढ़ माह बाद मशरूम उगना शुरू हो जाता है।
व्यापारिक दृष्टि से 35 गुणा 60 फीट साइज का शेड आदर्श माना गया है। इसमें करीब 45 हजार का खर्च आता है। मौसम सही रहने पर इस शेड में 12-12 कुंतल तक मशरूम उग आती है।भाव सही मिलने पर करीब 20-22 हजार तक का मुनाफा मिल जाता है। जिले के उत्पादक अपनी मशरूम ज्यादातर रोज़ की मण्डी में बेचते हैं
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