भारत की मछलियों पर संकट गहरा रहा है। ज्यादा उत्पादन के चक्कर में धड़ल्ले से मछली उत्पादन में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसे में यूरोपियन देश भारतीय मछलियों पर सवाल खड़े कर रहे हैं। इसी का नतीजा है कि देश से निर्यात होने वाली मछलियों की आवश्यक जांच संख्या पहले 10 फीसदी थी, लेकिन अब ये जांच 50 फीसदी तक बढ़ गयी।
सबसे ज्यादा संकट झींगा मछली पर है। देश में झींगा मछली का उत्पादन सबसे ज्यादा होता है। पशुपालन डेयरी एवं मत्स्य मंत्रालय भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार मात्सियकी से 14.5 मिलियन व्यक्तियों को आजीविका मिलती है। ऐसे में अगर झींगा सहित कुछ मछलियों के निर्यात पर प्रतिबंध लगता है तो कृषि क्षेत्र में भारत का एक बड़ा नुकसान होगा। इसको लेकर 27-29 जनवरी को गोवा में अंतरराष्ट्रीय समुद्री खाद्य प्रदर्शनी के दौरान एक बैठक होगी। उसी बैठक में झींगे के भविष्य पर फैसला होगा।
समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण यानि एमपीईडीए के अध्यक्ष ए. जयतिलक कहते हैं ”ये गंभीर समस्या है। सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है। हम मछली पालकों को भी एंटीबायोटिक के नुकसान के प्रति जागरूक करहे हैं। हम जैविक मछली पर भी चर्चा करेंगे।”
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देश में मात्स्यिकी क्षेत्र में विकास के लिए भारत सरकार द्वारा रु.3000 करोड़ के बजट के साथ एकछत्र योजना ‘नीली क्रांति’ की शुरुआत की गई है। जिसके फलस्वरूप, समग्र मछली उत्पादन में गत तीन वर्षों में तुलनात्मक रूप में लगभग 18.86% की वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि अंतः स्थलीय मात्स्यिकी क्षेत्र में 26% वृद्धि दर्ज की गई है। सभी प्रकार के मत्स्य पालन (कैप्चर एवं कल्चर) के उत्पादन को एक साथ मिलकर, 2016-17 में देश में कुल मछली उत्पादन 11.41 मिलियन टन तक पहुँच गया है।
सीफूड एक्सपोर्टस एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार झींगा के उत्पादन और व्यापार में खाद्य सुरक्षा नियमों के पालन के समाधान के लिए समुद्री भोजन के व्यापार से जुड़े भारतीय और यूरोपीय हितधारक इस महीने के अंत में गोवा में एक उच्च स्तरीय बैठक करेंगे। यह बैठक 27-29 जनवरी को गोवा में होने जा रही भारतीय अंतरराष्ट्रीय समुद्री खाद्य प्रदर्शनी के आस पास हो सकती है।
पिछले 10 वर्ष से यूरोपीय संघ का स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा महानिदेशालय भारतीय झींगे पर नजर बनाए हुए हैं। यूरोपीय यूनियन द्वारा जांच में लगातार भारतीय झींगे में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल पाया गया, जिसे लेकर वह काफी चिंतित हैं। साथ ही, इस मामले पर भारतीय अधिकारियों से मिलने वाली प्रतिक्रिया से वह संतुष्ट नहीं है और इसके आयात पर प्रतिबंध का विचार कर रहा है।
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भारत में झींगा उत्पादन के लिए अनुकूल अनुमानित खारा पानी करीब 11.91 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला है जो 10 से अधिक राज्यों और केंद्र शासित राज्यों में, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, पॉन्डिचेरी, केरल, कर्नाटक, गोआ, महाराष्ट्र और गुजरात है। इनमे से अभी मात्र 1.2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर ही झींगा पालन हो रहा है।
देश में सीफूड की सबसे बड़ी निर्यातक फाल्कन मरीन एक्सपोट्र्स लिमिटेड (कटक) के अध्यक्ष तारा पटनायक कहते हैं “भारतीय झींगा निर्यात पहले ही 2016-17 में 5 अरब डॉलर पार कर चुका है। 7 अरब डॉलर का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है लेकिन यह उत्पादन में सुधार के लिए संबंधित राज्य सरकार की नीति पर निर्भर करेगा। भारतीय झींगे की गुणवत्ता में भी सुधार आ रहा है। ऐसे में एंटीबायोटिक की मुद्दा संकट पैदा कर सकता है।”
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार भारत से झींगे के निर्यात में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार भारत ने वित्त वर्ष 2016 में वियतनाम को पछाड़ते हुए दुनिया के सबसे बड़े झींगा निर्यातक का तमगा हासिल किया था। वर्ष 2016 में भारत ने जहां 3.8 अरब डॉलर मूल्य के झींगे का निर्यात किया है वहीं वियतनाम का निर्यात 3 अरब डॉलर पर ठहरा हुआ है। बीमारी, बाढ़, श्रम मुद्दों और कड़े पर्यावरणीय कानूनों के कारण 2010 से एशिया में झींगे का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। 2016 में चीन में झींगा उत्पादन में 60 फीसदी की कमी आई जबकि खपत दोगुना हो गई।
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डॉ. गोविंद कुमार वर्मा, वैज्ञानिक (पशु पालन एवं मत्स्य) कहते हैं, “मछली पालन में ज्यादा मुनाफे के लिए पालक गलत चीजों का प्रयोग कर रहे हैं। इसका नुकसान सबको उठाना पड़ सकता है। ऐसे में झींगा पर संकट गहरा रहा है। झींगा उत्पादन को लेकर सरकार काम भी कर रही है। ये मछली ज्यादा मुनाफा देती है। ऐसे में हमें अब सावधानी बरतनी चाहिए।”
नवंबर 2017 में यूरोपीय संघ से एक प्रतिनिधिमंडल भारत में निर्यात के लिए उत्पादित समुद्री उत्पादों की पूरी व्यवस्था की जांच के लिए भारत आया था, जिसने झींगा उत्पादन की गुणवत्ता पर संतोष जताया था। यूरोपीय संघ ने 2016 में एंटीबायोटिक युक्त झींगे के आयात को नियंत्रित करने के लिए अनेक कदम उठाए। इसमें भारत से निर्यात होने वाली मछलियों की आवश्यक जांच संख्या 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दी।
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार भारत में 2.48 लाख मत्स्य-नौकाओं का बेड़ा है, और 2016-17 के दौरान अब तक का सर्वाधिक 5.78 बिलियन अमरीकी डालर (रु.37,871 करोड़) मूल्य के मत्स्य-उत्पादों का निर्यात किया गया है। विश्व स्तर पर, सालाना मत्स्य-उत्पादों के निर्यात का मूल्य 85 से 90 अरब डॉलर तक होता है।
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पिछले एक दशक में जहाँ दुनिया में मछली और मत्स्य-उत्पादों की औसत वार्षिक वृद्धि दर 7.5% दर्ज की गयी, वहीं भारत 14.8% की औसत वार्षिक वृद्धि दर के साथ पहले स्थान पर रहा। उन्होंने यह भी बताया कि विश्व की 25% से अधिक प्रोटीन आहार मछली द्वारा प्राप्त किया जाता है, तथा मानव आबादी प्रति वर्ष 100 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक मछ्ली को खाद्य के रूप में उपभोग करती है।
सीफूड एक्सपोर्टस एसोसिएशन ऑफ इंडिया की विज्ञप्ति के अनुसार इस उच्च स्तरीय बैठक में यूरोपीय आयातक क्लास पुल, भारत में नीदरलैंड दूतावास के प्रतिनिधि, सीफूड कनेक्शन, नॉर्डिक, खुदरा विक्रेता, समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण, सीफूड एक्सपोट्र्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, समुद्री खाद्य आयातक एवं प्रसंस्करण गठबंधन, डच फिश इंपोट्र्स एसोसिएशन, डेनिश सीफूड एसोसिएशन आदि के शामिल होने की संभावना है। गौरतलब है कि भारत से होने वाले 37,000 करोड़ रुपए के निर्यात में यूरोपीय संघ की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत है। बैठक में यूरोपीय संघ को निर्यात होने वाले समुद्री खाद्य की गुणवत्ता पर चर्चा हो सकती है।