लखनऊ। “शहद के किसानों की भलाई के लिए सबसे जरूरी है कि प्रदेश में एक ऐसा कोई सेंटर हो, जहां मधुमक्खी पालक जाकर आसानी से अपनी शहद बेच सकें। दूसरा शहद का एक सरकारी रेट (एमएसपी) तय की जाए, जिससे नीचे कोई खरीद न हो।” प्रगतिशील शहद उत्पादक निमित सिंह ने सरकार को सुझाव दिया।
पिछले 30 वर्षों से मधुमक्खी पालन कर रहे सहारनपुर के तंजीम अंसारी कहते हैं, “एक्सपोर्टर शहद उत्पादक किसानों का उत्पीड़न कर रहे हैं, वो हमारे प्राकृतिक शहद के नमूनों को फेल कर देते हैं, फिर मुनाफे के लिए उसमें चायनीय शहद (इंपोर्टेड चीनी) मिलाकर मोटा मुनाफा कमाते हैं। सरकार को कुछ ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे मधुमक्खी पालकों को कम से कम 150 रुपए किलो का रेट मिल जाए।” तंजीम अंसारी को यूपी एस्टेट एग्रो कॉर्पोरेशन और कषि मंत्रालय भारत सरकार ने मधुमक्खी पालन के लिए प्रमाणित है।
निमित और तंजीम यूपी के समेत 100 से ज्यादा मधुमक्खी पालक और शहद उत्पादक किसान लखनऊ के उद्यान भवन में आयोजित बीकीपिंग सेमिनार 2018 में शामिल होने आए थे। सेमिनार का आयोजन सेंटर फॉर एग्रीकल्चर एंड रुरल डेवलमेंट द्वारा किया गया, जिसे खादी बोर्ड और उद्यान विभाग की सहायता से किया गया।
मधुमक्खी पालकों के सामने मार्केटिंग और न्यूनतम समर्थन मूल्य की समस्या है। जिस पर मंत्रीजी (सत्यदेव पचौरी) ने आश्वासन दिया है कि खादी के आउटलेट और मंडी समितियों की मंडियों में दुकानें आवंटित कराने का आश्वासन दिया है। मधुमक्खी पालन में बहुत संभावनाएं और रोजगार के अवसर हैं। डॉ.अनीष अंसारी पूर्व आईएएस, निदेशक. क=षि एवं ग्रामीण विकास केंद्र, (कार्ड)
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इस मौके पर डॉ. अनीस अंसारी निदेशक कार्ड (पूर्व आईएएस) ने कहा, “मधुमक्खी पालकों के सामने मार्केटिंग और रेट दो बड़ी समस्याएं हैं। खादी-ग्राम उद्योग और लघु सूक्ष्म उद्यम मंत्री सत्यदेव पचौरी ने किसानों से कहा है कि वो खादी में अपना पंजीकरण करा लें, जिसके तहत उनके उत्पाद खादी बोर्ड के आउटलेट और मंडी परिषद में बेचने के लिए वो आवंटन कराने की कोशिश करेंगे।”
मधुमक्खी पालकों की शहद की कीमतों को लेकर दूसरी मांग के बारे में कैबिनेट मंत्री सत्यदेव पचौरी ने किसानों को आश्वासन दिया कि वो इस मामले को सरकार के सामने रखेंगे।
मौनपालन में रोजगार की अपार संभावनाएं बताते हुए डॉ. अंसारी आगे बताते हैं, “किसानों की आय बढ़ाने के लिए परंपरागत खेती के साथ मधुमक्खी पालन, भेड़-बकरी, औषधीय पौधों की खेती जैसी गतिविधियों को बढ़ाने की जरूरत है। ऐसे समारोहों में किसान अपनी बात खुल कर रख पाते हैं, जिससे उनके रोजगार को विस्तार मिलता है। हमने तय किया है जो प्रगतिशील मधुमक्खी पालक हैं, उनकी सफलता की कहानियां बाकी किसानों तक पहुंचाई जाएंगी।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट हनी मिशन के तहत पूरे देश में मधुमक्खी पालन को ग्रामीण रोजगार के बड़े अवसर के रूप में विकसित किया जा रहा है। इसके लिए सरकार 75 फीसदी तक अनुदान भी देती है। खादी ग्राम उद्योग और उद्यान विभाग के अलावा कई दूसरी योजनाओं से इन किसानों को सुविधाएं दिलाई जाती हैं।
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उत्तर प्रदेश में सालाना करीब एक लाख पांच हजार टन शहद का उत्पादन होता है। जिसमें करीब सवा लाख किसानों को प्रत्यक्ष जबकि 3 लाख किसानों को अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिला है। हालांकि देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले यूपी का उत्पादन काफी कम है।
मधुमक्खी पालक तंजीम अंसारी कहते हैं, “यूपी में मधुमक्खियों की एक कॉलोनी (डिब्बे) से सालभर में 25-30 किलो शहद मिलता है। भारत में मधुमक्खियों को सिर्फ शहद के लिए पालने की प्रथा है, जबकि अमेरिका समेत देशों में ये पॉलीनेशन यानी परागण के लिए होता है। अमेरिका में तो किसान या विभाग द्वारा उन्हें इसके लिए अलग से भुगतान भी किया जाता है।”
सेमिनार में कई किसानों ने अपनी समस्याएं भी गिनाईं, जिनका वहां मौजूद विशेषज्ञों ने मौके पर निराकरण भी बताया। लखनऊ में सरोजनी नगर के किसान राममोहन ने गर्मियों में मधुमक्खियों के मरने की समस्या बताई। जिसका जवाब देते हुए खादी एवं ग्राम उद्योग आयोग में सहायक निदेशक एमके निगम ने कहा, “मधुमक्खी पालन के लिए मक्खी की लाइस और साइंस से जुड़ना होगा। मधुमक्खियां फूलों (सरसों, यूके लिप्टस, सूरजमुखी आदि से) अपने खाने के लिए भोजन इकट्ठा करती हैं, जो शहद के रूप में हम लोग निकाल लेते हैं। ऐसे में जब फूल नहीं होंगे, मक्खियों की समस्या होगी, कई किसान चीनी भोजन के रूप में देते हैं लेकिन वो विकल्प नहीं।”
हनी मिशन के तहत सरकार मधुमक्खी पालकों को काफी सुविधाएं दे रही है। 10 बॉक्सों की इकाई लागत करीब 35000 रुपए होती है, जिसमें सिर्फ 7 हजार लाभार्थी को देना है बाकि के 80 फीसदी यानि 28000 रुपए खादी की तरफ से अनुदान में दिए जाएंगे।-एमके निगम, सहायक निदेशक, खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग, यूपी
किसानों को सलाह देते एमके निगम कहते हैं, “सबसे अच्छा है कि किसान फ्लावर कैलेंडर बनाएं कि उनके क्षेत्र में कब और कौन की फसल में फूल आते हैं। ये एरिया अगर 100 किलोमीटर तक हो तो किसान फसल के अनुसार अपनी कॉलोनियां लेकर वहां जा सकते हैं। जैसे यूपी के कई किसान अप्रैल-मई में बिहार के मुजफ्फरपुर जाते हैं क्योंकि वहां लीची में फूल आते हैं, जो मधुमक्कियों के लिए अच्छा होता है।” वो किसानों को मधुमक्खियों को हमेशा बॉक्स बंद न रखने की सलाह देते हैं।
इस दौरान पिछले 4-5 वर्षों से शहद पालन से कमाई कर रहे रॉयल हनी के निमित सिंह ने कहा, “शहद का रेट 50-60 रुपए तक है, जबकि 40 रुपए किलो चीनी बिक रही है। लेकिन अगर किसान एफपीओ या सहकारिता के जरिए समूह बनाकर मधुमक्खी पालन करें तो कमाई बढाई जा सकेगी।”
शहद के किसानों की भलाई के लिए सबसे जरुरी है कि प्रदेश में एक ऐसा कोई सेंटर हो जहां मधुमक्खी पालक जाकर आसानी से अपनी शहद बेच सकें। दूसरा शहद का एक सरकारी रेट (एमएसपी) तय की जाए, जिससे नीचे कोई खरीद न हो।’ निमित सिंह, मधुमक्खी पालन, रॉयल हनी
रॉयल हनी के पास अपनी प्रशिक्षिण प्रयोगशाला है, निमित के मुताबिक इस दौरान वो करीब 200 किसानों के साथ समूह बनाकर शहद उत्पादन कर उसे बोतलबंद कर बेच रहे हैं। इसमें सरसों समेत कई तरह की फसलों का शहद होता है।
हनी मिशन- खादी देता है सहूलियत
10 बॉक्सों की एक इकाई की लागत- 35000 रुपए
मधुमक्खीपालक की लागत – 7000 रुपए
खादी आयोग द्वारा अनुदान- 28000 रुपए
सालाना उत्पादन- 500 किलो
बिक्री से कमाई-50000 रुपए
मोम- 75 किलो निकल सकता है, जिससे 22500 की अतिरिक्त आमदनी हो सकती है। इस तरह कुल आमदनी दूसरे मदों पराग और रायल नेली को मिलाकर एक लाख रुपए हो सकती है।
(नोट- आय और व्यय का आंकड़ा खादी आयोग से लिए गए हैं।)