“मेरे लिए तो सबसे बड़ी परेशानी यहीं थी कि मैं किस समय किस मछली प्रजाति का उत्पादन करूं। कई बार तो सही दाम भी नही मिल पाता। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि हमें पूरी जानकारी नहीं होती। ऐसे में एफपीओ से हम बहुत कुछ उम्मीद कर रहे हैं।” ये कहना है मध्य प्रदेश, बालाघाट जिले के लालबर्रा में मछली पालन करने वाले जगेश शांडिल्य का।
मत्स्य पालकों की आय को दोगुना करने के लिए कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने पिछले दिनों कहा कि सरकार मत्स्यपालन के क्षेत्र में किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) की स्थापना को प्रोत्साहित कर रही है, इससे किसानों की आय बढ़ेगी। उन्होंने एक बयान में यह भी कहा कि सरकार ने प्रमुख मछली उत्पादक राज्यों में 21 किसान उत्पादक कंपनियों (एफपीओ) के लिए प्रस्ताव प्राप्त किया है।
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एफपीओ यानि ऐसे किसानों का संगठन जो उत्पादक हो। एफपीओ के बारे विस्तृत जानकारी देते हुए नाबार्ड उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय महाप्रबंधक नवीन रॉय बताते हैं “इस संगठन में 100 से एक हजार तक किसान रह सकते हैं। ये संगठन सरकार के नियमों तहत पंजीकृत होते हैं। इसमें एक निदेशक मंडल होता है जो पूरा काम देखता है।”
उत्तर प्रदेश मे इसकी स्थिति के बारे में नवीन बताते हैं, “राज्य सरकार की मदद से यहां अभी 350 एफपीओ कार्यरत हैं। इसमें नाबार्ड ने 53 जनपदों में 130 एफपीओ को सहयोग दिया है जो भारत सरकार के फंड प्रोड्यूस के तहत किया गया है। हमीरपुर में मछली उत्पादकों का पहला एफपीओ संगठन का गठन हो गया है।”
सरकार की लघु कृषक कृषि व्यवसाय कंसोर्टियम (एसएफएसी) अपने उद्यम पूंजी सहायता (वीसीए) योजना के तहत किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) की स्थापना के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है। 30 नवंबर को एसएफएसी की 22वीं बोर्ड बैठक को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा था “वीसीए योजना को कृषि उद्यमियों की ओर से बेहतर जवाब मिल रहा है तथा मंजूरी के लिए कई प्रस्ताव विचाराधीन हैं। उन्होंने कहा, ”मत्स्य पालन क्षेत्र में एफपीओ को लागू किया जा रहा है।” उन्होंने कहा कि 21 मत्स्यपालन एफपीओ के लिए प्रस्तावों को जमा कराया गया है। उन्होंने कहा कि मत्स्यपालन के अलावा मसालों के लिए भी विशेषकर पूर्वोत्तर क्षेत्र में एफपीओ की स्थापना को प्रोत्साहित करने के प्रयास किये जा रहे हैं।”
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ऐसा माना जा रहा है कि सरकार के इस कदम से मछली पालकों को फायदा होगा। उत्तर प्रदेश के तीसरे सबसे बड़े मछली पालक झांसी के गुलाब सिंह कहते हैं “सरकार का ये फैसला अच्छा है। इससे हमारे नुकसान की गुंजाइश नहीं है। कंपनियों के अपने एक्सपर्ट होंगे। उनके पास तकनीक भी होगी। ऐसे में मछली उत्पादन बढ़ेगा।
ऐसे होगा मछली पालकों को फायदा
विशेषज्ञों का मानना है कि कृषि बाजार में बढ़ते जोखिमों के देखते हुए मद्देनजर किसानों की उत्पादक संगठन (एफपीओ) उन खरीदार कंपनियों के लिए व्यापार की अच्छी भागीदार साबित हो सकती हैं, जो भाव के उतार-चढ़ाव से बचने के लिए खुद अपने लिए कृषि उत्पादन करने में लगी हैं। इस बारे में इंडियन सोयायटी ऑफ एग्रीबिजनेस प्रोफेसनल्स (आईएसएपी) के मुख्य कार्यकारी सुदर्शन सुर्यवंशी बताते हैं “एफपीओ कंपनी अधिनियम के तहत पंजीकृत कंपनी होती हैं, जिसमें केवल लघु एवं मध्यम किसान मिलकर कंपनी का गठन करते हैं और उन्हें लघु कृषक कृषि व्यवसाय कंसोर्सियम (एसएफएसी) से मदद मिलती है। इस समय देश में ऐसी लगभग एक हजार से ज्यादा कंपनियां हैं।”
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उन्होंने आगे बताया “छोटे मछली पालकों को होनी वाली दिक्कतों से सरकार के इस फैसले के बाद राहत मिलेगी। छोटे-मझोले किसानों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, उसको देखते हुए एफपीओ एक ऐसी पहल है, जिसमें किसानों को आधुनिक नेटवर्क के साथ जोड़ा जा सकता है। इससे सौदे के खर्चे कम होते हैं। समन्वय की लागत भी कम होती है और बड़े पैमाने पर फायदा भी होता है।”
बीज या कीटनाशकों पर छूट पर मिलेगी
वहीं नाबार्ड उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय महाप्रबंधक नवीन रॉय बताते हैं “छोटे और मझोले उत्पादक किसानों को इससे बहुत फायदा है। हम जब थोड़े मात्रा का सौदा करते हैं तो हमें दाम सही नहीं मिलता। ऐसे में एफपीओ उत्पादों को एक साथ बेचेगा तो जाहिर सी बात है कि उन्हें ज्यादा फायदा होगा। संगठन उत्पाद को पूरा ख्याल रखता है। ऐसे में किसानों का रिस्क कम हो जाता है। और सबसे बड़ा फायदा तो ये है कि इन संगठनों को सहकारी समितियों को दर्जा मिलता है जिस कारण इससे जुड़े किसानों बीज, कीटनाशक या अन्य कृषि उत्पादों में छूट मिलता है।”