अब पालिए बिना डंक वाली मधुमक्खियां, 8 से 10 गुना महंगा बिकता है इनका शहद

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नैनीताल (उत्तराखंड)। मधुमक्खी पालने वाले किसानों के लिए खुशख़बरी है। गोविंद बल्लभपंत कृषि विश्वविद्यालय की खोज और तकनीकि काम आई तो भारत में शहर क्रांति हो सकती है। शहद पालन में लागत कम और मुनाफा ज्यादा होता है, लेकिन मुधमक्खियों से शहर निकालना मुश्किल काम होता है, किसान और पशुपालकों हमेशा से इनके डंकों से डर रहा है। लेकिन अब कृषि वैज्ञानिकों ने मधुमक्खियों की ऐसी प्रजाति विकसित की है, जो बिना डंक की है।

उत्तराखंड के विश्वविख्यात कृषि विश्वविद्यालय की ये खोज महिला किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। क्योंकि डंक के डरसे वो इस कारोबार में सीधे आने घबराती थी। गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग की वैज्ञानिक और मधुमक्खी पालन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र की सहायक निदेशक पूनम श्रीवास्तव ने बताया ” डंकरहित मधुमक्खी जिसका वैज्ञानिक नाम टेटरागोनुला इरीडीपेनिस है, जिसम डामर मधुमक्खी भी कहते हैं उसके पालन की तकनीक विकसित की गई है।”

डंकरहित मधुमक्खी को डामर मधुमक्खी भी कहते हैं उसके पालन की तकनीक विकसित की गई है। इस शहद की डिमांड ज्यादा है और ये 8 से 10 गुना महंगा बिकता है।

पूनम श्रीवास्तव, सहायक निदेशक,  गोविंद बल्लभपंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय

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उन्होंने बताया कि डंकरहित मधुमक्खी भारतीय मौन एवं इटालियन मौन की भांति एक सामाजिक कीट है। उत्तर भारत में यह पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, उड़ीसा, उत्तराखंड, उत्तरपूर्व और दक्षिण भारत के सभी राज्यों में पुराने पेड़ों की खोखल और मकानों की दीवारों की खोल में पाई जाती है।

दक्षिण भारतीय राज्यों में इसके लिए जलवायु अनुकूल होने के कारण पिछले कई सालों से इसका पालन पेटिकाओं में किया जा रहा है। डंकरहित मधुमक्खी की शहद उत्पादन क्षमता इटालियन और भारतीय मौन की अपेक्षा कम है लेकिन इससे शहद मिलने वाले शहद की गुणवत्ता काफी अधिक होती है इसलिए सामान्य शहद की अपेक्षा इसका मूल्य 8 से 10 गुना अधिक होता है। बाजार में इसके शहद की मांग भी अधिक है।

पूनम श्रीवास्तव आगे बताती हैं, “गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय में पिछले कई सालों से उत्तर भारत में डामर मधुमक्खी का पालन पेटिकाओं में करने की तकनीक के अनुसंधान पर काम चल रहा था। वैज्ञानिकों के कई साल की मेहतन के बाद डंकरहित मधुमक्खी की पेटिकाओं में पालन की तकनीक विकसित की गई है।”

उन्होंने बताया कि डंकरहित मधुमक्खी पालन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इससे शहद के अलावा पराग एवं प्रोपोलिस भी प्राप्त किया जा सकता है। यह मधुमक्खी विभिन्न फसलों खासकर सूरजमक्खी, सरसों, अरहर, लीची, आम, अमरूद, नारियल, कॉफी और कद्दूवर्गीया सब्जियों के परागण क्रिया उत्पादन में इसका बहुत योगदान है।

मधुमक्खी पालन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र के निदेशक डॉ. एस.एन. तिवारी ने बताया, ”डामर मधुमक्खी पालन से बहुउद्देश्यीय शहद का उत्पादन करके किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं।”गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग के प्राध्यापक डॉ. एम.एस. खान ने बताया ,” हाल ही में अखिल भारतीय किसान मेले में किसानों को डंकरहित मधुमक्खी पालन, शहद उत्पादन और फसलोउत्पादन में डंकरहित मधुमक्खी के परागणकर्ता के रूप में काम की जानकारी और प्रशिक्षण दिया गया।”

देश में लगभग 27 लाख मधुमक्खियों की कालोनी हैं जिससे 88.9 मैट्रिक टन शहद का वार्षिक उत्पादन हो रहा है। लेकिन देश में प्रति व्यक्ति शहद की जितनी जरूरत है उसकी तुलना में शहद का उत्पादन नहीं हो रहा है। डंकरहित मधुमक्खी से ये आसान हो जाएगा।

उन्होंने बताया कि इस समय देश में लगभग 27 लाख मधुमक्खियों की कालोनी हैं जिससे 88.9 मैट्रिक टन शहद का वार्षिक उत्पादन हो रहा है। लेकिन देश में प्रति व्यक्ति शहद की जितनी जरूरत है उसकी तुलना में शहद का उत्पादन नहीं हो रहा है। ऐसे में डंकरहित मधुमक्खी पालन से शहद उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।

पंत नगर कृषि कुंभ में पहुंचे सीतापुर जिले के किसान। फोटो साभार- विकास तोमर

उत्तर प्रदेश में शुरू होगा ‘हनी मिशन’

शहद किसानों की कमाई का जरिया बने और किसानों की आमदनी बढ़े इसके लिए यूपी में शहद उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए हनी मिशन शुरु किया जाएगा। योजना के तहत किसी एक दांव को मधुमक्खी पालन के लिए विकसित किया जाएगा।

खादी एवं ग्रामोद्योग के प्रमुख सचिव नवनीत सहगल ने गांव कनेक्शन को बताया, पहले चरण में “गोरखपुर, वाराणसी और लखीमपुर में एक-एक गाँव का चयन किया है, गाँव के लोगों को मधुमक्खी देंगे, फिर उनका शहद भी खरीदेंगे। मार्केटिंग में दिक्कत न आए, इसलिए पूरा गाँव अगर मधुमक्खी पालन करेगा तो इससे काफी मात्रा में शहद पैदा होगा। कोई भी कंपनी गाँव जाकर शहद खरीद सकती है,”।

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