कृषि उत्पादों के निर्यात में 10.60 फीसदी की गिरावट, गैर बासमती चावल और दालों की मांग 50% तक गिरी

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दिसंबर 2018 में भारत सरकार ने कृषि निर्यात नीति को यह कहते हुए मंजूरी दी कि उनका लक्ष्य 2022 तक निर्यात को दोगुना तक बढ़ाना है। लेकिन वित्तीय वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में कृषि निर्यात में 10 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है।

वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में भारत ने 32,341 करोड़ रुपए की कृषि वस्तुओं का निर्यात किया था। लेकिन इस चालू वित्त वर्ष में इसमें 10.60% की गिरावट आई है और कुल 28,910 करोड़ रुपए का ही निर्यात हुआ।

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार सबसे गैर बासमती चावल और दालों के निर्यात में सबसे ज्यादा 50 फीसदी तक की कमी आई है। 2018-19 की पहली तिमाही में गैर बासमती चावल का निर्यात 21 लाख टन हुआ था जबकि इस साल लगभग ४३ फीसदी की गिरावट के साथ 12 लाख टन ही निर्यात किया गया।

अगर मूल्य की बात करें तो 2018-१९ में 5982 करोड़ रुपए जबकि 2019-20 की पहली तिमाही में 3379 करोड़ रुपए का गैर बासमती चावल दूसरे देशों ने भारत से खरीदा।

वहीं अगर बात बासमती चावल की करें तो उसमें ज्यादा गिरावट नहीं आई है। बासमती में मानक से ज्यादा कीटनाशकों के प्रयोग के कारण कई देशों ने इस पर सवाल उठाये थे, लेकिन निर्यात पर इसका ज्यादा असर नहीं दिखा। 2018-19 की पहली तिमाही में बासमती चावल का निर्यात 11 लाख 70 हजार टन से घटकर 11 लाख 50 हजार टन रहा।

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) के आंकड़ें

गैर बासमती चावल के अलावा दालों की मांग में भी भारी गिरावट आई है। दालों का निर्यात 50 फीसदी से ज्यादा तक घटा है। दालों का निर्यात 1.01 लाख टन से घटकर 45,344 टन रह गया है। वहीं ताजा फलों, प्रसंस्कृत प्रोसेस्ड सब्जियों और फलों, जूस और प्रोसेस्ड मांस के निर्यात में पिछले साल की तुलना में बढ़ोतरी हुई है।

गैर बासमती चावलों के निर्यात में इतनी कीम क्यों आई, इस बारे एपीडा के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि चीन, वियतनाम और थाईलैंड अब गैर बासमती चावल के बड़े कारोबारी बन गये हैं। हम उनको इसलिए भी पीछे नहीं छोड़ पा रहे क्योंकि हमारे राज्य निर्यात के मानकों को पूरा नहीं कर पाते जिस कारण बड़ी मात्रा हमारा माल वापस आ जाता है। हम उत्पादन में तो आगे हैं लेकिन उपज की क्वालिटी सही न होने के कारण निर्यात में पीछे रह जाते हैं।

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इससे पहले वित्त वर्ष 2018-19 में अप्रैल और दिसंबर के बीच में कृषि जिसों के निर्यात में 46 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी थी। तब अप्रैल और दिसंबर 2018 के बीच भारत का गेहूं निर्यात लुढ़ककर 1,35,284 टन (3.5 करोड़ डॉलर) रह गया जबकि पिछले वर्ष (2017-18) की इसी अवधि में 2,49,702 टन (7.2 करोड़ डॉलर) था।

गैर-बासमती चावल निर्यात में 14 प्रतिशत तक की गिरावट आई थी। चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों के दौरान बासमती चावल, भैंस के मांस, मूंगफली और फल निर्यात में भी गिरावट आई।

निर्यात बढ़ाने के लिए एक और योजना

केंद्र की मोदी सरकार इससे पहले कृषि निर्यात नीति लेकर आ चुकी है लेकिन उसका परिणाम इतना बेहतर नहीं रहा है। और अब कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार चावल और चाय के साथ कुछ अन्य उत्पादों पर निर्यातकों को इन्सेंटिव देने की तैयारी कर रही है।

एग्री उत्पादों के निर्यात में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी चावल, चाय, मसालों के साथ ही प्याज, आलू और टमाटर की है। गैर-बासमती चावल की विश्व बाजार में कीमतें कम हैं जबकि घरेलू बाजार में दाम ज्यादा हैं। इसकी वजह से चालू वित्त वर्ष के पहले दो महीनों में इसके निर्यात में 50 फीसदी से ज्यादा की कमी आई है। चाय के निर्यात में बढ़ोतरी तो हुई है, लेकिन इसमें भी हमें श्रीलंका से चुनौती मिल रही है। इसलिए चाय निर्यातकों को इन्सेंटिव देने का प्रस्ताव है।

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