लखनऊ। दक्षिण भारतीय और तटीय राज्यों के बाद अब पूर्वोत्तर में भारत में भी नारियल की खेती अपनी बड़ी पहचान बना रही है। देश में नारियल की खेती को बढ़ावा देने के लिए बनाए गए नारियल विकास बोर्ड के सहयोग से बिहार-बंगाल के साथ ही असम, त्रिपुरा, मिजोरम और नागालैंड में नारियल की खेती के प्रति किसानों का रूझान बढ़ रहा है। बोडे के चेयरमैन डॉ. बीएनएस मूर्ति ने बताया ” असम में 21.14 हेक्टेयर, त्रिपुरा में 6.93 हेक्टेयर, नागालैंड में 1.45 हेक्टेयर और मिजोरम में 0.04 हेक्टेयर क्षेत्रफल में नारियल की खेती हो हो रही है।”
बिहार में भी नारियल की खेती को बढ़ाने के लिए विशेष योजना बनाकर काम किया जा रहा है। बिहार में नारियल से जुड़ी योजनाओं को लागू करने के लिए 2014 से लेकर अबतक 409.06 लाख रुपए नारियल विकास बोर्ड की तरफ से जारी किया गया है।
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उत्तर बिहार का कोसी क्षेत्र जिसमें कोसी नदी के दोनों तरफ के इलाके आते हैं, नारियल की खेती के लिए उपयुक्त है। अनुमान है कि बिहार में विशेषकर उत्तर बिहार में तकरीबन 50000 हेक्टर क्षेत्र में सिंचित स्थिति में नारियल की खेती की जा सकती है।
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बिहार में नारियल की खेती को बढ़ावा देने के लिए नारियल विकास बोर्ड का कर्यालय बनाया गया है। नारियल किसानों को नारियल के उत्पादन, प्रसंस्करण, विपणन और नारियल उत्पादों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार भारत नारियल के उत्पादन और उत्पादकता में विश्व में अग्रणी देश है। देश में 16 राज्यों और तीन संघ शासित क्षेत्रों में 21.4 लाख हेक्टर क्षेत्र में नारियल की खेती की जाती है। नारियल की खेती, प्रसंस्करण, विपणन और व्यापार संबंधी गतिविधियों से एक करोड़ से अधिक परिवार अपनी आजीविका चलाते हैं।
देश में नारियल उत्पादन 19.8 लाख हेक्टेयर से 2044 करोड. नारियल है और उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 10345 नारियल है। देश के सकल घरेलू उत्पाद में नारियल का योगदान करीब 20000 करोड़ रुपए है। वर्ष 2015-16 में देश से 1450 करोड़ रुपए मूल्य के नारियल उत्पादों का निर्यात किया है। देश में अब तक 9720 नारियल उत्पादक समितियां, 700 नारियल उत्पादक फेडरेशन और 61 नारियल उत्पादक कंपनिया काम कर रही हैं।
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देश-विदेश में नारियल के उत्पाद डाब, खोपड़ा, नारियल तेल, कच्ची गरी, नारियल तेल खली, नीरा, नारियल फ्लवर सिरप, नारियल गुड़, नारियल चीनी, नारियल ताड़ी, नारियल लकड़ी, नारियल पत्ते और कयर गूदा की मांग बढ़ती ही जा रही है।