यूरिया को लेकर कंपनी और किसानों के बीच फंसी केंद्र सरकार

जैविक खेती

एक तरफ जहां सरकार जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है, वहीं सरकार पर यूरिया कंपनियों की सब्सिडी बढ़ाने का दबाव भी बढ़ रहा है। जानकारों के मुताबिक सरकार ने सब्सिडी नहीं दी तो यूरिया महंगी होगी और कंपनियों को सहूलियत दी गई तो सरकार पर करोड़ों रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।

कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण सरकार पर उर्वरक सब्सिडी में वृद्धि करने का दबाव बढ़ सकता है। 2018 वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में प्राकृतिक गैस की कीमत 17.5 प्रतिशत तक बढ़कर (सरकार हर छह महीने में कीमतों में संशोधन करती है) 2.89/एमबीटीयू (डॉलर प्रति मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट) हो गई है, जो अप्रैल-सितंबर की पहली छमाही में 2.46/एमबीटीयू थी। सरकार ने इसके लिए कच्चे तेल के दामों में वृद्धि को कारण बताया था।

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उर्वरक को सस्ता बनाने के लिए सरकार कंपनियों को सब्सिडी देती है, ताकि किसानों को उसकी कम कीमत देनी पड़े। ऐसी भी संभावना है कि आने जल्द ही सरकार इस सब्सिडी को सीधे किसानों के खाते में भेज सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बारे में 26 नवंबर को मन की बात में चर्चा भी की थी। केयर रेटिंग के आंकड़ों के अनुसार इससे पहले सरकार को लगभग 30,000 करोड़ रुपए के बकाये को पूरा करना होगा। वहीं किसान की दृष्टि से भी सरकार पर दबाव है। अगर सरकार सब्सिडी नहीं देती है तो कंपनियां यूरियों की कीमतों में वृद्धि भी कर सकती है।

केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस के अनुसार (केयर रेटिंग की वेबसाइट पर जो विज्ञप्ति जारी कई गई है) “प्राकृतिक गैस की लागत में 17.5 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई और कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि के कारण इसके और बढ़ने की संभावना है। इससे उर्वरक कंपनियों की उत्पादन लागत में वृद्धि होगी और सरकार पर सब्सिडी के लिए भी दबाव पड़ेगा। हालांकि यूरिया संयंत्रों की नई क्षमता जोड़ी जाने और निष्क्रिय पड़े पुराने संयंत्रों को पुन: शुरू करने से भारत न केवल यूरिया आयात खत्म करने का लक्ष्य हासिल कर सकता है, बल्कि भविष्य में 2030 तक संभवत: निर्यातक भी बन सकता है।”

केयर रेटिंग्स की रिपोर्ट

इस बारे में कृषि मामलों के जानकार रमनदीप सिंह मान कहते हैं “सरकार ने उर्वरक के लिए किसानों को सीधे सब्सिडी देने का प्रयोग आंध्र प्रदेश में किया था। लेकिन वो पूरी तरह असफल रहा। अब तक कच्चे माल की कीमत बढ़ेगी तो सरकार पर सब्सिडी बढ़ाने का दबाव बढ़ेगा। जैविक खाद किसानों की बजट से बाहर है, ये भी संभव है कि यूरिया की कीमत और बढ़ जाए। सरकार की नीतियां साफ ही नहीं हैं। जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार को मंथन करना होगा।”

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पांच दिसंबर को फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार अनुसार देश में अप्रैल से अक्टूबर के दौरान देश का यूरिया आयात 7.25 प्रतिशत कम होकर 37.10 लाख टन पर आ गया। पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में यह 40 लाख टन रहा था। भारत यूरिया का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।

देश का यूरिया उत्पादन कुल मांग 320 लाख टन से कम रहने के कारण करीब 50-70 लाख टन यूरिया का सालाना आयात करना पड़ता है। अप्रैल-अक्टूबर अवधि के दौरान घरेलू यूरिया उत्पादन 135.3 लाख टन रहा है। पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में यह 140.4 लाख टन रहा था। यूरिया का उत्पादन खर्च करीब 16 हाजर रुपए प्रति टन आता है जबकि इसे छूट के साथ 5,360 रुपए प्रति टन की दर पर बेचा जाता है।

ईफको उत्तर प्रदेश के स्टेट मार्केटिंग मैनेजर ऋषि पाल सिंह कहते हैं “सरकार को सब्सिडी बढ़ाना ही होगा। अगर सब्सिडी नहीं बढ़ेगी तो यूरिया महंगा होगा। क्योंकि कच्चे माल की कीमतें बढ़ गयी हैं। ऐसे में सरकार पर सब्सिडी का दबाव बढ़ रहा है। उत्पदान लागत में काफी बढ़ोतरी हो गयी है।”

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 नवंबर को अपने रेडियो कार्यक्रम मन की बात में कहा था “यूरिया के उपयोग से जमीन को गंभीर नुकसान पहुंचता है, ऐसे में हमें संकल्प लेना चाहिए कि 2022 में देश जब आजादी के 75वीं वर्षगांठ मना रहा हों तब हम यूरिया के उपयोग को आधा कम कर दें। किसान तो धरती का पुत्र है, किसान धरती-माँ को बीमार कैसे देख सकता है? समय की माँग है, इस माँ-बेटे के संबंधों को फिर से एक बार जागृत करने की। मोदी ने कहा कि, अगर फसल की चिंता करनी है, तो पहले धरती मां का ख्याल रखना होगा।”

कारखानों का नवीनीकरण भी हो रहा है

रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय की तरफ से बताया गया कि एनर्जी इफीशिएंसी के अनुरूप अपग्रेड करने के लिए कुछ यूरिया प्‍लांट बंद किए गए और कुछ प्‍लांट्स में रिनोवेशन हो रहा है। इसके चलते यूरिया प्रोडक्‍शन में कमी आएगी। कुल प्रोडक्‍शन में तीन लाख टन की कमी आने की उम्‍मीद है। हालांकि उन्‍होंने बताया कि यह अस्‍थायी प्रभाव होगा। यूरिया का प्रोडक्‍शन पिछले दो साल में बढ़ा था, लेकिन हमारी सालाना डिमांड करीब 3.2 करोड़ टन है। इसलिए कुछ यूरिया का अभी भी इम्‍पोर्ट किया जा रहा है। यानी सरकार अभी यूरिया के प्रयोग को बंद नहीं होने देना चाहती है।

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अभी तक वित्त वर्ष 18 में यूरिया का उत्पादन पिछले साल की तुलना में कम रहा है। आयात में भी गिरावट आई। मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड योजना के बेहतर क्रियान्वयन की वजह से यूरिया की खपत में गिरावट का संकेत मिलता है। इस योजना का लक्ष्य मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम (एनपीके) स्तर को 4:2:1 के आदर्श अनुपात में लाना है, जो वर्तमान में 6.8:2.7.1 के स्तर पर है।

इस बीच, देश भर के विभिन्न स्थानों पर पांच निष्क्रिय संयंत्रों को फिर से शुरू करने के सरकार के फैसले से भारत का उर्वरक उत्पादन बढऩे की संभावना है। प्रति वर्ष 12.7 लाख टन की क्षमता वाला नया अमोनिया-यूरिया संयंत्र स्थापित करते हुए ऐसा किया जा रहा है। इन संयंत्रों की शुरूआत से देशी यूरिया उत्पादन में विशेष वृद्धि की उम्मीद की जा रही है, जिसके परिणामस्वरूप आयात में काफी कमी होगी।

इस बारे में किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष डॉ सुनीलम कहते हैं “सरकार को पहले खुद अपनी नीतियों को समझना होगा। सरकार नई कंपनी भी खड़ी कर रही है और उसके उत्पादन का प्रयोग करने के लिए मना भी कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कहा था कि हमें जैविक खेती की ओर बढ़ना चाहिए, युरिया के प्रयोग नहीं करना चाहिए।

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भारत का यूरिया उत्पादन वित्त वर्ष 2013 से लेकर वित्त वर्ष 2015 तक वार्षिक वृद्धि दर 1.7 प्रतिशत दर से बढ़ रहा है। कुल उर्वरक उत्पादन में देशी यूरिया का हिस्सा लगभग 60 प्रतिशत रहता है, जबकि यूरिया आयात में गिरावट आ रही है। वित्त वर्ष 17 में आयात निर्भरता 26.3 फीसदी से घट कर 18.5 फीसदी पर आ गई। भारत में इस साल यूरिया उत्पादन में मामूली गिरावट आई है।

(रेटिंग एक विश्व स्तरीय रेटिंग एजेंसी है जो संतुलित क्रेडिट रेटिंग, ग्रेडिंग, एसएमई रेटिंग्स और अनुसंधान के माध्यम से बाजार का मूल्यांकन करती है।)

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