लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मेक इन इंडिया को सार्थक करने में देश के पशु वैज्ञानिक भी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। सालों-साल मेहनत करके यह लोग देसी तकनीक और देसी नस्ल पर रिसर्च करके नई प्रजाति की नस्लों को तैयार करने में लगे हुए हैं।
केन्द्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान टोंक राजस्थान ने हाल ही में तीन भारतीय नस्लों के गुणों को समाहित कर भेड़ की एक नई त्रिसंकर भेड़ अविशान को विकसित किया है। जिसको मेक इन इंडिया कार्यक्रम की उपलब्धि माना गया है।
उत्तर प्रदेश में अविशान पालन की होगी शुरुआत
अविशान को स्थानीय नस्ल मालपुरा, पश्चिम बंगाल राज्य की गैरोल एवं गुजरात राज्य की पाटनवाड़ी से संकलित करके विकसित की गई है। अविशान देशभर के भेड़ पालकों के साथ ही यूपी के लिए भी बहुत लाभकारी है। यूपी के भेड़ पालक इस अविशान को लेकर काफी उत्साहित हैं और यूपी में इसके पालन की शुरूआत होने जा रही है।
मंत्रालय की उपलब्धि में किया गया शामिल
अविशान के बारे में जानकारी देते हुए संस्थान के निदेशक डॉ. एसएमके नकवी ने बताया कि भेड़ की मुख्य विशेषताओं में अधिक मेमने पैदा करना, उत्तम मादा उत्पादन क्षमता, अधिक शारीरिक भार एवं अधिक दूध उत्पादन प्रमुख हैं। इन सभी गुणों को देखते हुए केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की ओर से कृषि उन्नति हमारी प्राथमिकता शीर्षक के अन्तर्गत प्रकाशित पॉकेट बुकलेट में इस त्रिसंकर भेड़ को मंत्रालय की उपलब्धि में शामिल किया गया है। जो कि भारत सरकार की तरफ से चलाया जा रहे मेक इन इंडिया कार्यक्रम को सार्थक करता है।
18 वर्षों का अथक प्रयास
संस्थान के पशु आनुवंशिकी एवं प्रजनन विभाग के अध्यक्ष डॉ. अरूण कुमार तोमर ने बताया कि अविशान की देश के विभिन्न राज्यों से मांग की जा रही है, जिसमें उत्तर प्रदेश भी शामिल है। उत्तर प्रदेश में अविशान का पालन भेड़ पालकों के लिए काफी लाभकारी होगा। उन्होंने कहा कि राज्य के आदिवासी जिलों बांसवाड़ा और डूंगरपुर के आदिवासी भेड़ पालक किसानों को अब तक 20 मेढ़ें वितरित किए जा चुके हैं। इस परियोजना के मुख्य अन्वेषक डॉ. आरसी शर्मा ने बताया कि वैज्ञानिकों के 18 वर्षों के अथक प्रयास के बाद यह नस्ल विकसित की गई है।
यूपी में भेड़ पालन को दिया जा रहा बढ़ावा
विश्व की भेड़ जनसंख्या की लगभग 4 प्रतिशत भेड़ भारत में हैं। भारत सरकार की साल 2003 की मवेशी गणना के अनुसार, देश में लगभग 6.147 करोड़ भेड़ हैं। देशभर में लगभग 50 लाख परिवार भेड़ पालन और इससे जुड़े हुए रोजगार में लगे हुए हैं। भेड़ सामान्यतः कम वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों में पायी जाती हैं। भारत में प्रति भेड़ से प्रति वर्ष 1 किलोग्राम से भी कम ऊन का उत्पादन होता है। मांस उत्पादन की दृष्टि से भारतीय भेड़ों का औसत वजन 25 किलो से 30 किलो के बीच होता है। ऐसे में भेड़ों की नस्लों में सुधार करके उनसे कैसे अधिक ऊन, दूध और मांस प्राप्त किया जा सके, इसके लिए केन्द्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान काम करा है। त्रिसंकर भेड़ अविशान को विकसित करने के लिए देश में भेड़ पालन के व्यवसाय को बढ़ावा देना है।
उत्तर प्रदेश में धीमी है गति
देशभर के पहाड़ी राज्यों समेत दक्षिण के राज्य भेड़ पालन में आगे हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में यह जितना होना चाहिए, उस गति से नहीं हो पा रहा है। यह हाल तब है जबकि उत्तर प्रदेश के चारों भागों में भेड़ पालन किया जाता है लेकिन अभी तक इसका पालन एक खास समाज गड़रेरिया तक सीमित है। ऐसे में उत्तर प्रदेश का पशुपालन विभाग और पशुधन विकास परिषद भी प्रदेश में भेड़ पालन को भी बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रहा है। उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डा. बीबीएस यादव ने बताया कि प्रदेश में पशुधन को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है। दुधारू पशुओं के साथ ही ऊन पैदा करने वाले भेड़ का भी लोग पालन करें इसके लिए काम किया जा रहा है।