एरोमा मिशन को अब लगेंगे पंख, जड़ी-बूटी की खेती बढ़ाएगी किसानों की आमदनी

सीएसआईआर

लखनऊ। देश में बड़े पैमाने पर फूलों और औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रस्तावित एरोमा मिशन जल्द जमीन पर उतरेगा। सीएसआईआर के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को प्रधानमंत्री कार्यालय से हरीझंडी मिल चुकी है, इस प्रोजेक्ट की अगुवाई सीमैप करेगी। मिशन के तहत किसानों को सगंध और औषधीय गुण वाले पौधों की खेती के लिए बीज, तकनीकि और बाजार मुहैया कराए जाएंगे।

सगंध और औषधीय खेती किसानों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो रही है। उन्हें कम क्षेत्र, कम लागत में ज्यादा लाभ मिल रहा है वो ऐसी जमीन (ऊसर-बंजर) पर भी खेती कर पा रहे हैं, जिस पर खेती संभव नहीं थी। मिशऩ एरोमा के तहत इसे और बढ़ाएंगे।

प्रो. अनिल कुमार त्रिपाठी, निदेशक, सीमैप, लखऩऊ

वीडियो : एलोवेरा की खेती का पूरा गणित समझिए, ज्यादा मुनाफे के लिए पत्तियां नहीं पल्प बेचें

यूपी के बुंदेलखंड, महाराष्ट्र के विदर्भ, गुजरात के कच्छ और तमिलनाडु के सुनामी प्रभावित क्षेत्र में किसानों का जीवन स्तर सुधारने के लिए उन्हें गुलाब, गेंदा समेत फूल और लेमनग्रास, पामरोजा, खस आदि की खेती सिखाई जाएगी। करीब 72 करोड़ रुपये से तीन साल में देश में 5000-6000 हेक्टेयर में किसानों को फायदा देने वाली खेती होगी।

एरोमा मिशनको ग्रामीण भारत के लिए बहुत खास बताते हुए सीमैप के निदेशक प्रो. अनिल कुमार त्रिपाठी ने बताया कि, “सगंध और औषधीय खेती किसानों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो रही है। उन्हें कम क्षेत्र, कम लागत में ज्यादा लाभ मिल रहा है वो ऐसी जमीन (ऊसर-बंजर) पर भी खेती कर पा रहे हैं, जिस पर खेती संभव नहीं थी। जैसे यूपी में मिंट (मेंथा) ने क्रांति की है वैसे की दूसरी फसलों में किया जा सकते है, जो एरोमा के तहत होगा।वो आगे बताते हैं, “देश की एरोमा इंडस्ट्री सीएसआईआर की बदौलत खड़ी है। इसे और ज्यादा मजबूती और किसानों को फायदे के लिए देश के अलग-अलग इलाकों में फूलों और औषधीय खेती को बढ़ावा, तकनीकि स्थानंतरण, पौध और बीज आदि उपलब्ध कराए जाएंगे। विदेशों में हमारे उत्पादों की खासी मांग है, जिससे देश में किसानों के लिए असीम संभावनाएं हैं।

देश की एरोमा इंडस्ट्री सीएसआईआर की बदौलत खड़ी है। इसे और ज्यादा मजबूती और किसानों को फायदे के लिए देश के अलग-अलग इलाकों में फूलों और औषधीय खेती को बढ़ावा, तकनीकि स्थानंतरण, पौध और बीज आदि उपलब्ध कराए जाएंगे। विदेशों में हमारे उत्पादों की खासी मांग है, जिससे देश में किसानों के लिए असीम संभावनाएं हैं।

प्रो. अनिल कुमार त्रिपाठी, निदेशक, सीमैप, लखऩऊ

सीमैप में 31 जनवरी को लगने वाले किसान मेले और संस्थान की उपलब्धियों के बारे में जानकारी देते निदेशक प्रो. अनिल कुमार त्रिपाठी (बीच में कोट पैंट) साथ में हैं संस्थान के अन्य वैज्ञानिक।

उत्तर प्रदेश में मिंट (मेंथा) की बदौलत करीब तीन लाख किसानों की आमदनी बढ़ाने का दावा करनी वाली सीमैप संस्था इस दिशा में लगातार शोध कर नई किस्में विकसित भी करती है। सीमैप के वैज्ञानिकों की द्वारा तैयार की गई हल्दी की उन्नत किस्म ( सिम पितांबर) और खस (सिम समृर्धी) की नई वैरायटी को 27 सितंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संस्थान के सिल्वर जुबली कार्यक्रम में लांच किया था। प्रो. त्रिपाठी बताते हैं, ये दोनों काफी उन्नत है, हल्दी सबसे ज्यादा उपयोग की जाने वाली किस्म भी प्रति हेक्टेयर 30 टन का उत्पादन करती थी, लेकिन ये कम से कम 60-65 टन का उत्पादन होगा इसमें कुरकुमा की मात्रा भी करीब 12 फीसदी है। इससे किसानों की आय लगभग दोगुनी हो जाएगी। तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में प्रयोग चालू है, आऩे वाले कुछ वर्षों में किसानों को भी उपलब्ध होंगी। इसी तरह खस तमिलनाडु के सुनामी प्रभावित इलाकों में उगाई जा रही है।

बाराबंकी के सूरतगंज ब्लॉक स्थित टांडपुर गांव में सतावर की फसल को सुखाता किसान।

लाभदायक साबित हो रही फूल और जड़ी-बूटी की खेती प्रचार-प्रसार और बढ़ते रकबे पर प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि हम नहीं चाहते ऐसी खेती का पारंपरिक खेती से कोई मुकाबला हो इसलिए हम सूखा, बाढ़, खारा पानी, बंजर आदि इलाकों में इन खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। इसलिए कई संस्थाओं से करार भी कर रहे हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा प्रचार प्रसार भी हो। सीमैप ग्रामीण विकास के माता अमृतानंद आश्रम से एमओयू कर 100 गांवों में काम करेगी तो श्रीश्री रविशंकर की संस्था की भी मदद ली जाएगी।

प्रभावित इलाकों में बड़ा काम

सीमैप में प्रदर्शन के लिए लगी कालमेघ की किस्म।

बुंदेलखंड में लेमनग्रास

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में पानी की कमी और छुट्टा पशुओं की समस्या को देखते हुए 50-60 एकड़ लेमन ग्रास लगाई गई, आऩे वाले दिनों में इसका रबका और बढ़ेगा। इसे पशु नहीं खाते और कम पानी की जरुरत होती है।

महाराष्ट्र का विदर्भ

सूखे से जूझ रहे महाराष्ट्र में विदर्भ के किसानों को लेमनग्रास और खस की खेती कराई गई। लखनऊ से वैज्ञानिक आसवन यूनिट भेजकर उत्पादन करवाया गया। यहां 100 एकड़ से रकबा इस बार कई गुना बढ़ सकता है।

कच्छ के खारे पानी में भी होगी फूल और औषधीय खेती

गुजरात के कच्छ में खारा पानी है। इसलिए वहां ऐरोमैटिक पौधो की खेती को करवाई जा रही है। वहां के किसान और कारोबारी चाहते हैं कि यूपी की मिंट की तरह वहां लेमनग्रास और पामरोजा की खेती क्रांतिकारी रुप में हो। इसी तरह उड़ीसा, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी गांव-गांव जाकर लोगों को ऐसे खेती के फायदे गिनाए जा रहे हैं।

31 जनवरी को लगेगा सीमैप में किसान मेला

लखनऊ। हर साल की तरह इस वर्ष भी 31 जनवरी को सीमैप विशाल किसान मेले का आयोजन किया जा रहा है। यूपी और उत्तराखंड समेत कई राज्यों के करीब हजारों किसान शामिल होंगे। समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष प्रो. पंजाब सिंह, डॉ. कलाम के मिसाइल प्रोजेक्ट में सहभागी रहे प्रो. अरुण तिवारी और प्रदेश के कृषि उत्पादन आयुक्त प्रदीप भटनागर शामिल होंगे। इस बार का आकर्षण सीएसआईआर की 12 प्रयोगशालाओं ने जो किसानों और गांव के लिए उपयोगी किए गए काम का प्रदर्शन किया जाएगा। किसानों को नई तकनीकि का प्रदर्शन, बीज, पौधे सामग्री, प्रकाशन की बिक्री भी की जाएगी। साथ ही वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण का सजीव प्रदर्शन होगा। दिनभर चलने वाले इस समारोह में औषधीय और सगंध पौधों पर उत्पादन से बाजार तकपरिचर्चा और गोष्ठी का भी आयोजन होगा।

Recent Posts



More Posts

popular Posts