देर से बोए गए गेहूं की 20-25 दिनों में करें पहली सिंचाई

गेहूं की खेती

“वैज्ञानिक या उन्नत तरीके से गेहूं की खेती करके प्रति हेक्टेयर चार-छह कुंतल पैदावार बढ़ाई जा सकती है। जो गेहूं विलम्ब से बोया गया है उसकी पहली सिंचाई 20-25 दिन में कर दी जाए।” यह कहना है वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. वीके कनौजिया का।

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जिला मुख्यालय कन्नौज से करीब 20 किमी दूर कृषि विज्ञान केंद्र अनौगी, जलालाबाद के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. वीके कनौजिया बताते हैं, “कन्नौज समेत आस-पास के कई जनपदों में गेहूं की विलम्ब से बुवाई की जाती है। कारण किसानों की ओर से तोरिया, शीघ्र पकने वाली अरहर, सब्जियां समेत अन्य फसल का करना है। काफी बड़े क्षेत्रफल में यह फसलें की जाती हैं।”

डॉ. कनौजिया आगे बताते हैं, “छिड़कवां बुवाई, अनुपयुक्त प्रजाति, पुराने रोग ग्रसित बीज, असंतुलित उर्वरक प्रयोग आदि के कारण अपेक्षित उत्पादन नहीं हो पाता है। ऐसे में वैज्ञानिक या उन्नत तरीके से खेती की जानी चाहिए। इसमें कोई विशेष लागत नहीं लगती है। उत्पादन भी बढ़ जाता है।”

इन प्रजातियों की इतनी रखें दूरी

विलम्ब से बोई जाने वाली प्रजातियों जैसे उन्नत हलना (के-9423), के-9533, नरेंद्र गेहूं- 1014, डीबीडब्ल्यू- 107, डीबीडब्ल्यू- 14, हलना आदि प्रजातियों का 125 किलो प्रति हेक्टेयर स्वस्थ्य बीजों का 15-18 सेमी की पंक्ति से पंक्ति की दूरी पर बोना चाहिए। जहां तक संभव हो छिड़कवां न बोएं। फिर भी यदि बोना पड़े तो 150 किलो प्रति हेक्टेयर बीज का प्रयोग करें।

किसान इस पर भी दें ध्यान

वैज्ञानिक डॉ. कनौजिया का कहना है कि कन्नौज और फर्रूखाबाद आदि जिलों के किसान आलू की फसल के बाद गेहूं की बुवाई करते हैं। खुदाई के बाद निकाले गए आलू के बाद गेहूं की फसल के लिए एक बार कल्टीवेटर से सीधी व आड़ी जुताई कर बुवाई करनी चाहिए। वहीं तोरिया, अरहर और देर से पकने वाली धान के बाद बुवाई के लिए एक बार हैरो और एक बार कल्टीवेटर से जुताई कर खेत तैयार कर सकते हैं। हल्की भूमि होने के कारण बार-बार अधिक जुताई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। लेकिन यदि भूमि कठोर हो तो रोटावेटर से एक जुताई करना पर्याप्त होता है।

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डॉ. कनौजिया ने ‘गाँव कनेक्शन’ को बताया कि “कई किसान भाई जनवरी पहले सप्ताह तक गेहूं की बुआई करते हैं, लेकिन अच्छी पैदावार के लिए 25 दिसम्बर तक बुवाई पूरी कर लेनी चाहिए। जिससे परिपक्वता के समय बढ़ते तापक्रम से होने वाले नुकसान से फसल को बचाया जा सके।”

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उर्वरकों पर भी रखें ध्यान

जहां तक उर्वरकों के प्रयोग की बात है तो मृदा परीक्षण के अनुसार ही उर्वरक डालें। यदि किसी कारणवश ऐसा संभव न हो तो बुवाई करते समय प्रति हेक्टेयर 50 किलो यूरिया, 90 किलो डीएपी तथा 50 किलो प्रति हेक्टेयर म्यूरेट ऑफ पोटाश का करें। जिसके बाद पहली सिंचाई के बाद इतनी ही यूरिया प्रयोग की जानी चाहिए। जिंक की कमी वाले क्षेत्र में प्रति हेक्टेयर 25 किलो जिंक सल्फेट का प्रयोग अंतिम जुताई के समय करना चाहिए। देर से बोए गए गेहूं की पहली सिंचाई 15-20 दिन और बाली निकलते समय और दाना बनते समय खेत में पर्याप्त नमी होनी जरूरी है, ऐसा न होने पर फसल पैदावार पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

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