लखनऊ। गला घोटूं पशुओं की लाइलाज बीमारी है। ये एक संक्रामक बीमारी है, जो अगर एक गाय भैंस को हो गया तो उसके आसपास रहने वाली दूसरे पशुओं को भी हो सकता है। हर साल इस बीमारी से हजारों पशुओं की देशभर में मौत होती है, जिससे किसानों को करोड़ों रुपए का नुकसान होता है। लेकिन किसान टीकाकरण करवाकर इस बीमारी से अपने पशुओं को बचा सकते हैं।
बारिश के मौसम में ज्यादातर पशुओं को गलाघोंटू बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है, इस बीमारी से पशुओं को बचाने के लिए पशुचिकित्सालयों में नि:शुल्क टीकाकरण की व्यवस्था की गई है। ये छोटी सी ऐहतियात आप को लाखों रुपए के नुकसान से बचा सकती है।
ये भी पढें : तीन सौ रुपए से कम देकर कराइए गाय भैंस का बीमा
“पूरे प्रदेश में गलाघोंटू के टीके निशुल्क लगवाए जा रहे हैं। अभी तक एक करोड़ एक लाख टीके लगवाए जा चुके हैं। पूरे प्रदेश में एक करोड़ 51 लाख पशुओ को टीके लगवाने का लक्ष्य रखा गया है। अगर किसी भी पशुपालक के गाँव में टीके न लग रहे हो तो वो विभाग के नंबर पर सूचित कर सकता है।” ऐसा बताते हैं, पशुपालन विभाग उत्तर प्रदेश के उपनिदेशक डॉ वीके सिंह।
ये भी पढ़ें : महंगाई और मेहनत बना रहा पशुपालन मुश्किल
पशुओं में होने वाला गलाघोंटू (एचएस) जीवाणु जनित रोग है। यह पशुओं के शरीर में बहुत तेज़ी से फैलता है। यह रोग पास्चुरेला मल्टोसीडा नामक जीवाणु के संक्रमण से होता है। अगर लक्षण का पता लगने के बाद पशुओ का जल्द से जल्द इलाज़ नहीं हुआ तो 24 घंटे के अन्दर पशु कि मौत हो जाती है।
वीडियो यहां देखें-
गलाघोंटू की बीमारी के बारे में डॉ. सिंह बताते हैं, “शुरुआत में पशु को तेज़ बुखार होता है। गर्दन में सूजन होने के कारण सांस लेने के दौरान घर्र-घर्र की आवाज़ आती है।” वर्ष में दो बार गलाघोंटू रोकथाम का टीका अवश्य लगाना चाहिए। बरसात से पहले पहला टीका और दूसरा टीका सर्दी शुरू होने से पहले लगता है।
पशुओं में गलाघोंटू के लक्षण
1. इस रोग में पशु को तेज बुखार आ जाता है।
2. पशु सुस्त हो जाता है और खाना-पीना भी कम कर देता है।
3. पशु की आंखें लाल हो जाती हैं।
4. सांस लेने में कठिनाई होती है जिससे घर्रघर्र की आवाज आती है।
5. पशु के मुंह से लार गिरने लगती है।
रोकथाम कैसे करें
- पशुओं को हर वर्ष इस रोग का टीका पशुओं को अवश्य लगवा लेना चाहिए।
- बीमार पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए।
- जिस स्थान पर इस रोग से पीड़ित पशु बांधा हो उसे कीटाणुनाशक दवाइयों, फिनाइल या चूने के घोल से धोना चाहिये।
- पशु आवास को स्वच्छ रखें तथा रोग की संभावना होने पर तुरन्त पशु चिकित्सक से सम्पर्क कर सलाह लें।
पशुपालक इस नंबर पर कर सकता है संपर्क
अगर पशुपालक को अपने में पशुओं में इन रोगों की संभावना दिखे तो वो पहले अपने पास के पशुचिकित्सक को संपर्क कर सकता है। इसके साथ जनपद के मुख्य पशुचिकित्साधिकारी को भी संपर्क कर सकता है।
निदेशालय पशुधन समस्या निवारण केन्द्र – 1800-180-5141 पर संपर्क कर सकते है।
अन्य नं. 0522-2741991-2741992
ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिएयहांक्लिक करें।