ज्यादातर किसान बुवाई से पहले ही खेत की जुताई करते हैं, जिससे फसल तो अच्छी हो जाती है, लेकिन खेत की मिट्टी में कई तरह के कीट, रोगाणु और खरपतवार बने रहते हैं, ऐसे में किसान इस समय गहरी जुताई करके इनसे छुटकारा पा सकते हैं।
केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के निदेशक डॉ. विनय कुमार मिश्रा बताते हैं, “इस समय अगर किसान रबी की फसलों की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करके छोड़ देते हैं, जिससे खेत की मिट्टी ऊपर आ जाती है, जिससे उसमें पनप रहे कीटों के अंडे, लार्वा भी बाहर आ जाते हैं जो तेज धूप में नष्ट हो जाते हैं। यही नहीं कई तरह के पक्षी भी इस समय बाहर आए कीटों को खाते हैं।”
गहरी जुताई के फायदे
जुताई करने से तेज धूप मिट्टी पर लगती है, जिससे मिट्टी में रहने वाले कीटों के अंडे, प्यूपा, लार्वा, लटें व व्यस्क नष्ट हो जाते हैं।
गहरी जुताई से कई तरह के खरपतवार जैसे दूब, कांस, मोथा से भी छुटकारा मिल जाता है।
फसलों में लगने वालेउखटा, जड़गलन जैसे रोगों के रोगाणु व सब्जियों की जड़ों में गांठ बनाने वाले सूत्रकर्मी भी नष्ट हो जाते हैं।
खेत की मिट्टी में ढेले बन जाने से पानीसोखने की क्षमता बढ़ जाती है, जिससे बारिश होने के बाद खेत में ज्यादा समय तक नमी बनी रहती हैं।
ग्रीष्मकालीन जुताई से खेत का पानी खेत में ही रह जाता हैं, जो बहकर बेकार नहीं होता और बारिश के पानी के बहाव होने वाले भूमि कटाव में भारी कमी होती हैं।
जुताई करने से खेत की भूमि में उपलब्ध पोषक तत्वों का वायु द्वारा होने वाला नुकसान व मृदा अपरदन कम होता हैं।
कब करें जुताई
रबी की फसलों की कटाई के तुरंत बाद जुताई कर देनी चाहिए, क्योंकि ऐसे में खेत में नमी बनी रहती है और जुताई करने में आसानी हो जाती है। साथ ही मिट्टी के बड़े- बड़े ढेले बनते हैं। इसे जमीन में वायु संचार बढ़ता हैं।
कोशिश करनी चाहिए की जुताई सुबह के समय ही करें, क्योंकि इस समय कीटों के प्राकृतिक शत्रु परभक्षी पक्षी ज्यादा सक्रीय रहते हैं। जो कीटों और लार्वा को खा जाते हैं।
कैसे करें गर्मियों की जुताई
गर्मी की जुताई 15 सेमी. गहराई तक किसी भी मिट्टी पलटने वाले हल से ढलान के विपरीत करनी चाहिए। लेकिन बारानी क्षेत्रों में किसान ज्यादातर ढलान के साथ- साथ ही जुताई करते हैं जिससे बारिश के साथ मिट्टी के बहने की संभावना ज्यादा हो जाती है।
इसलिए खेतों में हल चलाते समय इस बात का ख्याल रखना चाहिए की यदि खेत का ढलान पूर्व से पश्चिम दिशा की तरफ हो तो जुताई उत्तर से दक्षिण की ओर यानी ढलान के विपरीत ढलान को काटते हुए करनी चाहिए।
इस तरह से जुताई करने से बहुत सारा बारिश का पानी मिट्टी सोख लेती हैंऔर पानी जमीन की नीचे तक पहुंच जाता है, जिससे न केवल मिट्टी का रुकता हैं बल्कि पोषक तत्व भी बहकर नहीं जा पाएंगे।
जुताई के समय रखें इन बातों का ध्यान
मिट्टी के ढेले बड़े- बड़े रहे और मिट्टी भुरभुरी न होने पाए नहीं तो गर्मियों में तेज हवा द्वारा मृदा अपरदन की समस्या बढ़ जाएगी।
ज्यादा रेतीले इलाकों में गर्मी की जुताई न करें।
बारानी क्षेत्रों में जुताई करते समय इस बात का ख्याल रखना भी जरूरी हैं की ज्यादा से ज्यादा फसल अवशेषों को जमीन पर आवरण की तरह ही पड़ा रहने दें। इससे मिट्टी को बारिश से होने वाले मृदा अपरदन के नुकसान से बचाया जा सकता हैं और बारिश के पानी के साथ बह रही मिट्टी को भी रोका जा सकता हैं।