लखनऊ। किसान परंपरागत तरीके से गन्ने की बुवाई करते हैं, लेकिन किसान ट्रेंच विधि से गन्ने की बुवाई करके ज्यादा पैदावार कर सकते हैं, इस विधि से फसल में ज्यादा पानी भी नहीं लगाना पड़ता है।
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लखीमपुर, शाहजहांपुर जैसे कई जिलों में किसानों ने गन्ने की नयी तकनीक को अपना लिया है। लखीमपुर जिले के मोहनपुरवा गाँव के किसान दिलजिंदर सहोता कहते हैं, “मैं अब पूरा गन्ना ट्रेंच विधि से ही लगाता हूं। इस विधि से गन्ना लगाने से गन्ने की ज्यादा पैदावार होती है।”
दूसरी विधि से जहां गन्ने की उपज 600-800 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है, वहीं ट्रेंच विधि से गन्ने की उपज 1200-2400 कुंतल प्रति हेक्टेयर ली जा सकती है। ट्रेंच विधि में विशेष प्रकार के औजार यानी ट्रेंच ओपनर से 17 से 20 सेमी. गहरा और 30 सेमी चौड़ा गड्ढा किया जाता है।
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. एके शाह बताते हैं, “दूसरी विधियों से गन्ना बुवाई करने में चार से पांच बार गन्ना होता है, लेकिन इस विधि से गन्ना लगाने पर दस से पंद्रह बार गन्ना हो सकता है।
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उत्तर प्रदेश में 40-45 जिलों में किसान गन्ने की खेती करते हैं, 35 लाख से ज्यादा किसान सीधे तौर पर गन्ने की खेती से जुड़े हैं। यूपी में 168 गन्ना समितियां हैं। साथ ही 119 गन्ना मिल और 2700 करोड़ से ज्यादा लोग गन्ने से जुड़ा व्यवसाय है।
इसमें दो आंख के पोर वाले गन्ने को आठ से दस सेमी. की दूरी पर ट्रेंच के दोनों तरफ बराबर डालकर बुवाई की जाती है। इसमें सामान्यत: 45-50 कुंतल प्रति हेक्टेयर बीज गन्ने की जरूरत होती है। इसके लिए प्रति सिंचाई 60 प्रतिशत पानी की बचत होती है। गन्ने की बुवाई नाली में तथा सहफसली बुवाई मेड़ों पर होती है। सामान्य विधि की तुलना मे इस विधि से पेड़ी गन्ना की पैदावार 25 से 49 प्रतिशत अधिक होती है। दीमक का प्रभाव भी कम होता है। इसे साल में दो बार बोया जा सकता है।
प्रत्येक गड्ढे में सिंचाई करने के लिए गड्ढों को एक दूसरे से पतली नाली से जोड़ दिया जाता है। यदि मिट्टी में नमी कम हो तो हल्की सिंचाई करनी चाहिए। खेत में उचित ओट आने पर हल्की गुड़ाई करें जिससे टुकड़ो का अंकुरण अच्छा होता हैं। मातृ गन्नों में शर्करा की मात्रा कल्लों से बने गन्ने की अपेक्षा अधिक होती है। इस विधि से लगाये गये गन्ने से तीन-चार पेड़ी फसल आसानी से ली जा सकती हैं।
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