अनार की बागवानी लगाने का सही समय, एक बार लगाकर कई साल तक ले सकते हैं उत्पादन

अगस्त से सितम्बर और फरवरी से मार्च का महीना अनार के नए पौध लगाने का सबसे सही समय होता है, लेकिन बागवानी लगाते समय कुछ बातों का ध्यान रखकर किसान बढ़िया उत्पादन पा सकते हैं।
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अनार एक ऐसी बागवानी फसल है, जिसे एक बार लगाने पर कई साल तक फल मिलते रहते हैं। अनार को सबसे ज्‍यादा स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक और पोषक तत्‍वों से भरपूर फल माना जाता है। अनार में मुख्य रूप से विटामिन ए, सी, ई, फोलिक एसिड और एंटी ऑक्सीडेंट पाये जाते है। इसके अलावा, एंटी-ऑक्‍सीडेंट भी इस फल में बहुतायत में होता है।

अगर आप भी अनार की बाग लगाना चाहते हैं तो शुरू से ही कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ता है। क्योंकि कई बार किसान बाग लगा देते हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में कई बार नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।

अनार उपोष्ण जलवायु का पौधा है। यह अर्द्ध शुष्क जलवायु में अच्छी तरह उगाया जा सकता है। फलों के विकास व पकने के समय गर्म और शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। फल के विकास के लिए तापमान 38 डिग्री सेल्सियस सही होता है।

अनार की खेती के लिए जल निकास वाली रेतीली दोमट मिट्‌टी सबसे सही होती है। फलों की गुणवत्ता और रंग भारी मृदाओं की अपेक्षा हल्की मृदाओं में अच्छा होता है।

अनार की प्रमुख किस्में

गणेश: इस किस्म के फल मध्यम आकार के बीज कोमल और गुलाबी रंग के होते हैं। यह महाराष्ट्र की मशहूर किस्म है।

ज्योति: फल मध्यम से बड़े आकार के चिकनी सतह और पीलापन लिए हुए लाल रंग के होते हैं। गुलाबी रंग की बीज मुलायम बहुत मीठे होते हैं।

मृदुला: फल मध्यम आकार के चिकनी सतह वाले गहरे लाल रंग के होते हैं। एरिल गहरे लाल रंग की बीज मुलायम, रसदार और मीठे होते हैं। इस किस्म के फलों का औसत वजन 250-300 ग्राम होता है।

भगवा: इस किस्म के फल बड़े आकार के भगवा रंग के चिकने चमकदार होते हैं। एरिल आकर्षक लाल रंग की व बीज मुलायम होते हैं। उच्च प्रबंधन करने पर प्रति पौधा 30 – 40 किलो उपज प्राप्त की जा सकती है। यह किस्म राजस्थान और महाराष्ट्र में बहुत उपयुक्त मानी जाती है।

अरक्ता: यह एक अधिक उपज देने वाली किस्म है। फल बड़े आकार के, मीठे, मुलायम बीजों वाले होते हैं। एरिल लाल रंग की और छिलका आकर्षक लाल रंग का होता है। उच्च प्रबंधन करने पर प्रति पौधा 25-30 किग्रा. उपज प्राप्त की जा सकती है।

कंधारी: इसका फल बड़ा और अधिक रसीला होता है, लेकिन बीज थोड़ा सा सख्त होता है।

अन्य किस्में: रूबी, करकई , गुलेशाह , बेदाना , खोग और बीजरहित जालोर आदि।

पौधे लगाने का सही समय

अनार की बागवानी लगाने का सबसे सही समय अगस्त से सितम्बर या फिर फरवरी से मार्च का महीना होता है।

पौधों को लगाने के लिए गड्ढे

पौध रोपण के एक महीने 60 X 60 X 60 सेमी. (लम्बाईचौड़ाईगहराई.) आकार के गड्‌ढे खोदें, इसके बाद गड्‌ढे की ऊपरी मिट्टी में 20 किग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद 1 किग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट .50 ग्राम क्लोरो पायरीफास चूर्ण मिट्‌टी में मिलाकर गड्‌डों को सतह से 15 सेमी. ऊंचाई तक भर दें। गड्‌ढे भरने के बाद सिंचाई करें ताकि मिट्टी अच्छी तरह से जम जाए। इसके बाद ही पौधों का रोपण करें।

पौध रोपण का सही तरीका

आमतौर पर 5 X 5 या 6 X 6 सघन विधि में बाग लगाने के लिए 5 X 3 मीटर की दूरी पर अनार का रोपण किया जाता है। सघन विधि से बाग लगाने पर पैदावार डेढ़ गुना तक बढ़ सकती है। इसमें लगभग 600 पौधे प्रति हैक्टेयर लगाये जा सकते हैं।

कब और कैसे करें सिंचाई

अनार एक सूखा सहनशील फसल हैं। मृग बहार की फसल लेने के लिए सिंचाई मई के महीने से शुरू करके मानसून आने तक नियमित रूप से करना चाहिए। वर्षा ऋतु के बाद फलों के अच्छे विकास के लिए नियमित सिंचाई 10-12 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए। बूँद – बूँद सिंचाई (ड्रिप इरीगेशन) अनार के लिए उपयोगी साबित हुई है। इसमें 43 प्रतिशत पानी की बचत और 30-35 प्रतिशत उपज में वृद्धि पाई गई है।

खाद और उर्वरक की सही मात्रा और समय

पहले साल प्रति पौध नाइट्रोजन फास्फोरस पोटेशियम क्रमशः 125 ग्राम 125 ग्राम 125 ग्राम, दूसरे साल नाइट्रोजन फास्फोरस पोटेशियम क्रमशः 225 ग्राम 250 ग्राम 250 ग्राम, तीसरे साल नाइट्रोजन फास्फोरस पोटेशियम क्रमशः 350 ग्राम 250 ग्राम 250 ग्राम, चौथे साल नाइट्रोजन फास्फोरस पोटेशियम क्रमशः 450 ग्राम 250 ग्राम 250 ग्राम और पांचवें साल के बाद 10-15 किलो सड़ी हुयी गोबर की खाद और 600 ग्राम नत्रजन, 250 ग्राम फोस्फोरस और 250 ग्राम पोटाश प्रति पौधा देना चाहिए ।

अनार के पेड़ों की छटाई

अनार की दो प्रकार से छटाई की जा सकती है।

एक तना पद्धति – इस पद्धति में एक तने को छोड़कर बाकी सभी बाहरी टहनियों को काट दिया जाता है। इस पद्धति में जमीन की सतह से अधिक सकर निकलते हैं। जिससे पौधा झाड़ीनुमा हो जाता है। इस विधि में तना छेदक का अधिक प्रकोप होता है। यह पद्धति व्यावसायिक उत्पादन के लिए उपयुक्त नही हैं।

बहु तना पद्धति – इस पद्धति में अनार को इस प्रकार साधा जाता है कि इसमें तीन से चार तने छूटे हों, बाकी टहनियों को काट दिया जाता है। इस तरह साधे हुए तनें में प्रकाश अच्छी तरह से पहुंचता है। जिससे फूल व फल अच्छी तरह आते हैं। यह विधि ज्यादा उपयुक्त है।

अनार से उत्पादन

पौधे रोपण के तीन साल बाद फल आने लगते हैं। लेकिन व्यावसायिक रूप से उत्पादन रोपण के 5 वर्ष के बाद ही फल लेना चाहिए। अच्छी तरह से विकसित पौधा 60-80 फल प्रति वर्ष 25-30 वर्षों तक फल देता है।

सघन विधि से बाग लगाने पर लगभग 480 टन उपज हो सकती है, जिससे एक हैक्टेयर से 5 -8 लाख रुपये सालाना आय हो सकती है। नई विधि को काम लेने से खाद व उर्वरक की लागत में महज 15 से 20 फीसदी की बढ़ोतरी होती है जबकि पैदावार 50 फीसदी बढ़ने के अलावा दूसरे नुकसानों से भी बचाव होता है।

(पिन्टू लाल मीना, सरमथुरा, धौलपुर, राजस्थान में सहायक कृषि अधिकारी हैं।)

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