शैलेंद्र राजन
जामुन का फल ही नहीं गुठलियां भी बड़े काम की होती हैं, मधुमेह रोगियों के लिए ये बड़े काम का फल होता है। मधुमेह रोगियों की बढ़ती संख्या के साथ ही इस फल की मांग भी बढ़ रही है।
बाजार में जामुन सीमित समय के लिए ही उपलब्ध होता है, लेकिन इसके फलों से बने जूस, वाइन, सिरका, जेली जैसे उत्पाद पूरे साल मिल सकते हैं। ये सभी उत्पाद ताजे फलों की तरह ही पौष्टिक, स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। जामुन को कई स्वास्थ्य और औषधीय लाभों के कारण “सुपर फ्रूट” के रूप में भी जाना जाता है। यह फल पेट दर्द और मूत्र रोग को राहत देने के लिए उपयोगी माना जाता है। इसके बायोएक्टिव यौगिक कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, अस्थमा और गठिया में प्रभावी हैं। जामुन के फल एंटी-ऑक्सीडेंट के धनी हैं। मधुमेह और कैंसर रोधी गुणों के कारण इसके महत्व को विकसित देशों ने भी स्वीकार किया है।
जामुन के मूल्य संवर्धित प्रोडक्ट्स में वाइन का विशेष महत्व उद्यमियों द्वारा देखा किया गया है। क्योंकि औषधीय गुणों के साथ ही जामुन वाइन स्वाद और सुगंध में भी बेहतरीन है। जामुन के फल सामान्य तापक्रम पर जल्दी खराब हो जाते हैं, लेकिन मूल्यवान बायोएक्टिव यौगिकों से भरपूर होने के कारण प्रसंस्करण के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। कई गैर-किण्वित उत्पादों की अतिरिक्त ब्रांडी, डिस्टिल्ड शराब और वाइन जैसे किण्वित प्रोडक्ट काफी संख्या में बनाए जा रहे हैं और लोकप्रिय भी हो रहे हैं। जामुन के फलों में किण्वन के लिए आवश्यक पर्याप्त शर्करा पाई जाती है। इसीलिए यह दुनिया के कई देशों में वाइन बनाने के लिए लिए एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। जामुन के मूल्यवर्धक उत्पादों विशेषकर वाइन औषधीय गुण से भरपूर होते हैं।
जामुन अपने मधुमेह रोधी गुणों के लिए मशहूर है। यह जाम्बोलिन नामक ग्लाइकोसाइड की उपस्थिति के कारण होता है। जाम्बोलिन अग्न्याशय द्वारा इंसुलिन स्राव में सुधार करता है। रक्त में ग्लूकोज का अधिक स्तर होने पर जामुन का एक अन्य महत्वपूर्ण घटक एल्कॉजिक एसिड स्टार्च के शर्करा में रूपांतरण को नियंत्रित करने में सहायक है।
जामुन के मूल्य वर्धित प्रोडक्ट्स विशेषकर वाइन बनाने वाली कंपनियां पल्प (गूदे) के उत्पादन के लिए सीआईएसएच की किस्मों के पौध लगाने में रुचि रखती हैं। वे संस्थान द्वारा विकसित जामवंत किस्म के लिए संस्थान से संपर्क करते हैं। इस किस्म में 90 प्रतिशत से अधिक गूदा पाया जाता है। कई कंपनियों ने जामुन वाइन का उत्पादन प्रारम्भ किया है और बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन करने के लिए इच्छुक हैं। कच्चे माल की आवश्यकता को आंशिक रूप से जंगल से भी पूरा किया जा सकता है। जामुन के पर्याप्त गूदे के उत्पादन के लिए जामुन की सुनियोजित बागवानी की आवश्यकता है। इसलिए, सीआईएसएच किस्मों की मांग बढ़ रही है, जो ताजे फलों के विपणन के अतिरिक्त वाइन बनाने के लिए भी उपयुक्त है।
उपयुक्त फलों से मदिरा पुरातनकाल से तैयार की जा रही है और उपयुक्त मात्रा में शर्करा युक्त जामुन के फलों से उत्कृष्ट रेड वाइन बनाई जा सकती है। जामुन, उत्तम वाइन बनाने के लिए उपयुक्त फलों में से एक है क्योंकि इसमें स्वाद, शर्करा और टैनिन का अच्छा संतुलन है। हृदय रोगियों के द्वारा वाइन के बढ़ते उपयोग के साथ, जामुन वाइन की अपनी सम्भावनाएं हैं क्योंकि यह कई प्रसिद्ध जैव सक्रिय यौगिकों में भी समृद्ध है। जामुन को विभिन्न स्वादों, सुगंध और रंग के साथ विभिन्न प्रकार की वाइन में परिवर्तित किया जा सकता है। जामुन वाइन उद्योग शैशवावस्था में है और धीरे-धीरे इसका प्रचलन बढ़ेगा। इस तरह यह उपयोग न केवल स्वास्थ्यवर्धक उत्पादों के उत्पादन में सहायक होगा बल्कि वाइन उद्योग के कई बाइप्रोडक्ट्स भी बनाए जा सकेंगे।
देश के विभिन्न क्षेत्रों में जामुन के पेड़ बहुतायत से मिलते हैं। इनका उपयोग मुख्यतः आदिवासियों द्वारा जंगली जामुन के फल तोड़कर खाने एवं बेचने के लिए किया जाता है। जामुन के वाइन उद्योग के विकसित होने से जंगल से आदिवासियों द्वारा एकत्रित फलों को भी मूल्यवान उत्पादों में परिवर्तित करने का अवसर मिलेगा और वनों पर आधारित लोगों की आजीविका में भी सुधार होगा।
(शैलेंद्र राजन, केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा, लखनऊ के निदेशक हैं)