लखनऊ। दिसम्बर-जनवरी महीने में ही किसान आम की फसल को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशकों का छिड़काव करने लगते हैं, पिछले कुछ वर्षों में कीटनाशकों की वजह से कई देशों ने आम का निर्यात रोक दिया था। ऐसे में किसान अभी से प्रबंधन करके नुकसान से बच सकते हैं।
आम में बौर आने की अवस्था में बारिश होने और बादल छाए रहने से आम की फसल को नुकसान हो सकता है। आम की पेड़ पाले के लिए अति संवेदनशील होते हैं, इसलिए बाग़ को इस समय पाले से बचाना जरूरी होता है। इसकी खेती उत्तर प्रदेश, बिहार, आन्ध्र प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडु, ओड़िसा, महाराष्ट्र, और गुजरात में व्यापक स्तर पर की जाती है।
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार भारत में विश्व में सबसे अधिक आम उत्पादन करने वाला देश है। इसके साथ ही आम के निर्यातक दस प्रमुख देशों में से पांचवें स्थान पर है। दूसरे देशों में भारत से आम के आयात में कीट रोगों की समस्या ही एक प्रमुख समस्या रही है। विश्व के कई देशों ने कुछ कीटों से ग्रसित आमों का आयात अपने देश में प्रतिबंधित कर दिया है।
इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि समय रहते फसल में आने वाली समस्याओं को पहचाना जाये व उनकी रोकथाम किया जाए ताकि देश की घरेलू खपत में और निर्यात के लिए उत्तम आम का उत्पादन हो सके। आम की फ़सल पर लगने वाले कीट व रोगों के बारे में बता रहे हैं क्षेत्रीय केन्द्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र, लखनऊ के संयुक्त निदेशक डॉ. टीए. उस्मानी और वैज्ञानिक सहायक राजीव कुमार….
आम पर लगने वाले प्रमुख कीट
गुठली का घुन कीट (Stone Weevil)
इस घुन की इल्ली आम की गुठली में छेद कर के घुस जाती है और उसके अन्दर अपना भोजन लेती रहती है। कुछ दिनों बाद ये गूदे में पहुंच जाती है और उसे क्षति पहुंचती है। कुछ देशों ने इस कीट से ग्रसित बाग़ से आम का आयात अपने यहां पूर्णरूप से प्रतिबंधित कर दिया है।
रोकथाम
इस कीट को नियंत्रित करना मुश्किल होता है, इसलिए जो भी फल पेड़ से गिरे उसे और पेड़ की सूखी पत्तियों और शाखाओं को एकत्रित कर नष्ट कर देना चाहिए। इससे इस कीट की भी रोकथाम कुछ हद तक हो जाती है।
जाला कीट/टेन्ट केटरपिलर कीट (Leaf webber)
प्रारम्भिक अवस्था में केटरपिलर पत्ती की उपरी सतह को तेजी से खाता है, उसके बाद पत्तियों का जाल या टेन्ट बनाकर उसके अन्दर छिपकर पत्तियों को खाता रहता है।
रोकथाम
एज़ाडीरेक्टिन 3000 पीपीएम का दो मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। बीटी. जैव-कीटनाशक का एक किलो प्रति छिड़काव करें। चौदह पर्णी वनस्पति कीटनाशक का एक लीटर घोल को 20 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
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दीमक कीट(Termite)
दीमक जड़ों को खाकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं, उसके बाद सुरंग बनाकर ऊपर बढ़ते हैं। यह तने के ऊपर मिट्टी का जमाव करके अपने आप को सुरक्षित करता है।
रोकथाम:
तने के ऊपर मिट्टी की परत को हटा देना चाहिए। 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में बिवेरिया बेसियाना का घोल बनाकर 10 दिन के अन्तराल पर तीन बार छिड़काव करना चाहिए। साथ ही तने के ऊपर 1.5 प्रतिशत मेलाथियान का छिड़काव करना चाहिए। दो महीने बाद पेड़ के तने को मोनोक्रोटोफोस (एक मिली प्रति लीटर) से मिट्टी को ड्रेंच करें।
फुदका/भुनगा/हॉपर कीट (Mango Hopper)
यह कीट आम की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। इस कीट की तीन जातियां आइडिओस्कोपस क्लैपिअलिअस, आइडिओस्कोपस नैटोचुलास, आइडिओस्कोपस एत्किन्सोइस हानिकारक है। लार्वा और व्यस्क कीट कोमल प्ररोह पत्तियों और पुष्पक्रमों का रस चूसकर हानि पहुचाते हैं। इसकी मादा 100-200 तक अंडे नई पत्तियों और मुलायम प्ररोह में देती है, और इनका जीवन चक्र 12-22 दिनों में पूरा हो जाता है। इसका प्रकोप जनवरी फरवरी से शुरू हो जाता है।
रोकथाम :
बिवेरिया बेसिआना/मेटारीजियम फफूंद का 0-5 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। नीम तेल 3000 पीपीएम दो मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। कार्बोरिल 0.2 प्रतिशत या क़ुइनोल्फोस 0.063 प्रतिशत या डाईमेथेओएट 0.06 प्रतिशत या मिथाइल ओडेमिटान 0.05 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। परभक्षी कीट जैसे मेलाडा बोनेंसिस और क्राईसोपा मित्र कीट का संरक्षण करें। चौदह पर्णी वनस्पति कीटनाशक का एक लीटर घोल को 20 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
फल मक्खी/डासी मक्खी (Fruit fly)
फल मखी आम के फल का खतरनाक कीट है और इसी कीट के कारण आम के निर्यात की समस्या आती है। इस कीट की सुड़ियां आम के अन्दर घुसकर गूदे को खाती हैं, जिससे फल ख़राब हो जाता है।
रोकथाम:
फ्रूट फ्लाई ट्रैप का घोल 60 मिली एथेनाल, 40 मिली मिथाइलयुजिनाल और 20 मिली मेलाथियान का ल्यूर बनाकर डिब्बे/बोतलों में फिट कर पेड़ों पर लटका देने से नर मक्खियां आकर्षित होकर मेलाथियान द्वारा नष्ट हो जाती हैं। एक हक्टेयर बाग में 10 डिब्बे लटकाना चाहिए।
गाल मिजमक्खी कीट (Gall Midge fly)
इनके लार्वा बौर के डंठल पत्तियों, फूलों और छोटे-छोटे फलों के अन्दर रह कर हानि पहुचाते हैं। इनके प्रभाव से फूल और फल नहीं लगते हैं। फलों पर प्रभाव होने पर फल गिर जाते हैं। इनके लार्वा सफेद रंग के होते हैं, जो पूर्ण विकसित होने पर भूमि में प्यूपा/कोसा/शंख में बदल जाते हैं।
रोकथाम
इसके लार्वा मिट्टी में ही प्युपेट होते है, इनके रोकथाम के लिए गर्मियों में गहरी जुताई करना चाहिए। साथ ही में जुताई के बाद मिट्टी में मिथाइल पाराथियान 25-30 किग्रा प्रति हेक्टेयर मिलाएं ताकि लार्वा नष्ट हो जाए। रासायनिक कीटनाशक डाइमथेओएट 30 ई.सी. (0.6 मिली/लीटर) या थायोक्जम 25 (0.4 मिली./लीटर) या मिथाइल डेमेटोन 25 ई.सी. 2मिली./लीटर पानी घोल का छिड़काव बौर आने (Bud brust stage) की स्थिति में करना चाहिए।
गुजिया (Mealy bug):
इस कीट के लार्वा और वयस्क बौर एवं फलो के वृंद से रस चूसते है|तीव्र प्रकोप की दशा में प्ररोह एवं बौर सूख जाते है तथा प्रारंभिक अवस्था में फल भी सूख कर झड जाते है। यह कीट मधुश्राव भी करता है जिसपर काली फफूंद उग आती है।
रोकथाम :
गुजिया को पेड़ पर चढ़ने से रोकने के लिए दिसंबर के अंतिम सप्ताह में तने के चारों ओर 25 सेमी चौड़ी 400 गेज पोलीथीन की पट्टी धरती से 1.3-2.0 फीट की ऊंचाई पर सुतली से बांध देनी चाहिए और निचले सिरे पर ग्रीस लगा देनी चाहिए। अन्डों से निकले गुजिया की रोकथाम के लिए मेलाथियान 5 प्रतिशत रसायन की 250 ग्राम प्रति पेड़ के हिसाब से तने के चारों ओर बुरकाव कर खुरपी से मिट्टी में मिलाना चाहिए। यदि किसी गुजिया पेड़ पर चढ़ गया हो तो ऐसी अवस्था में पांच प्रतिशत सर्फ़ का घोल बनाकर या 2 प्रतिशत मैदा का घोल बनाकर या प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिडकाव करें।
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धब्बेदार बग (Spotted plant bug)
इस कीड़े के केवल शिशु और मादाएं नुकसान पहुंचाते हैं। ये दोनों आम के पौधों का कोशिका रस चूस लेते हैं। इससे मुलायम तने और मंजरियां सूख जाती है और अधपके फल गिर जाते हैं।
रोकथाम:
पेड़ के आस-पास की मिट्टी की गुड़ाई करने से इस कीड़े के अंडे नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा पौधे के मुख्य तने के धरती के पास वाले भाग पर 30 सेमी चौड़ी अल्काथीन या प्लास्टिक की एक पट्टी लपेट देने से व उस पर कोई चिकना पदार्थ लगाने से इस कीड़े के शिशु पेड़ पर नहीं चढ़ पाते हैं यह काम दिसम्बर के महीने में कर देना चाहिए क्योंकि यही वह समय होता है जब कीड़े के अण्डों से बच्चे निकलने लगते हैं और फ़िर पेड़ पर चढ़ने लग जाते हैं। इसके साथ किसी भी उपयुक्त कीटनाशक का छिड़काव जनवरी एवं फ़रवरी माह में करें। सफ़ेद चिपचिपा प्रपंच 6 से 8 की संख्या में प्रति हेक्टेयर स्थापित करें।
स्केल कीट (Scale insect)
यह कीट सफ़ेद रंग के होते हैं और पत्तियों, तना और फल आदि पर रहकर रस चूसते रहते हैं, यह कीट शहद जैसा पत्तियों पर श्राव करता है। जिसकी वजह से सूटी मोल्ड विकसित हो जाता है और पत्तियों का रंग काला पड़ जाता है औश्र फल की गुणवता व पेड़ की बढवार को प्रभावित करता है।
रोकथाम:
ग्रसित शाखाओ को नष्ट कर दे जब जरुरत हो तभी सिंचाई करें। यदि कीट का प्रकोप दिखने पर पांच प्रतिशत सर्फ़ का घोल बनाकर या 2 प्रतिशत मैदा का घोल बनाकर तीन से चार बार छिड़काव सात दिन के अन्तराल पर करें। मैलाथियान 50 प्रतिशत इ सी 2.25 -3.0 किग्रा को 1500 से 2000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
छाल खाने वाला कीट (Bark Eating Caterpillar)
इस कीट का प्रकोप ज्यादातर पुराने बाग़ जहां सूरज की रोशनी भरपूर नही पहुंचती, वहां ज्यादा होता है। इस कीट के लार्वा/सुंडी छाल को खाकर पेड़ कमजोर कर देते है। इसके केटरपिलर भूरे रंग के सिल्की जाल पेड़ के चरों ओर बनता है जो कीट का मल का बना होता है | इसके लार्वा सामान्यतः अप्रैल से दिसंबर के माह में आम में छाल को खाकर नुकसान पहुंचाते है।
रोकथाम:
इस कीट की रोकथाम के लिए इसके द्वारा बनाएं गए छेदों को किसी पतले तार से साफ़ कर रुई के साथ पेट्रोल/डीजल/केरोसिन तेल से भिगोकर, निचोड़कर या उनमें एक प्रतिशत घोल वाले 0.05 प्रतिशत मोनोक्रोटोफोस/डीडीवीपी (0.05%) को रुई में भिगोकर या छेद को साइकिल की तिली से घुसेड़कर बंद कर देना चाहिए, और उसके ऊपर पीली मिट्टी का लेप लगा देने चाहिए और कमजोर/ मृतप्राय शाखाओं को पेड़ से अलग कर देना चाहिए।
शाखा छेदक कीट (Shoot borer)
इस कीट के लार्वा पौधों के नई शाखाओं में छेद कर देते हैं, जिसकी वजह से पत्तियां झड़ने व शाखाएं सूखने लगती हैं। इसकी मादा कीट नई पत्तियों पर अंडा देती हैं, अंडा फूटने पर लार्वा पत्तियों के मिडरिब के रास्ते मुख्य शाखा में प्रवेश कर जाता है और अग्रशिरा वाले भाग में छेद बनाकर सुखा देता है।
रोकथाम :
ग्रसित भाग एवं टहनियों को काटकर नष्ट कर दें। ज्यादा प्रकोप होने पर रासायनिक कीटनाशक जैसे कार्बारील (0.2%) या क्यूनालफास (0.5%) का 15 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करें।
थ्रिप्स/रुजी कीट (Thrips)
यह कीट गहरे भूरे रंग लिए लगभग एक मिमी. लम्बा होता है। इसके निम्फ(बच्चे) क्रीमी पीलापन लिए होते हैं, जिनके शरीर पर लाल धरिया होती हैं। इसके निम्फ व व्यस्क पत्तियों और फलों से रस चूसते हैं और काला गाढ़ा भूरे रंग के मल छोड़ते हैं, जिससे कि पत्तियों और फलों की सतह पर दाग पड़ जाते हैं।
रोकथाम:
नीम आधारित कीटनाशक जैसे नीम तेल या एज़डीरेक्तिन 1500 पीपीएम 2 मिली/लीटर पानी में घोलकर सात दिन के अन्तराल पर दो बार छिड़कना चाहिए। जैव-कीटनाशक जैसे मेटारिजियम एनिसोपिलिया 10 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर सात दिन के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करें।
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आम का फल छेदक कीट (Fruit borer)
इस कीट का प्रकोप ज्यादातर ओड़िसा, पश्चिम बंगाल और आंध्रप्रदेश में ज्यादा पाया जाता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यह कीट उत्तर प्रदेश के आम उत्पादक क्षेत्र में दिखाई दे रहा है। यह कीट जनवरी से मई में ज्यादा सक्रीय रहता है। व्यस्क मादा कीट फल के ऊपर अपने अंडे देती है, हैचिंग के बाद सुंडी फल को छेद करता है। पूर्ण रूप से विकसित केटरपिलर (25 मिमी.) के शरीर पर सामान्यतः लाल व सफ़ेद धारियां होती हैं जो कि फल के पिछले वाले भाग से छेद कर प्रवेश करते हैं और गुठली तक पहुंच जाते हैं।ग्रसित फल में सड़न होने लगती है औश्र परिपक्वता से पहले ही गिर जाता है। यह समस्या जहां गुच्चे में दो फल संपर्क में आते है, वहां ज्यादा दिखाई देता है।
रोकथाम:
बाग़ से सड़े गले औश्र गिरे हुए फल को इकट्ठा कर बाहर कर दें। अगर संभव हो तो फल का बेगिंग कर दें। गिरे हुए सभी फल को नष्ट कर दें। एक दूसरे से सटे हुए फल के बीच में कागज के गत्ते लगा दें। कंचा के बराबर आम का आकार होने पर फेनथियान (0.1%) का छिड़काव करे और दो सप्ताह बाद डेल्टामेथ्रिन 28 ई.सी.1 मिली./लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें, भारी प्रकोप होने पर दो सप्ताह बाद पुनः दोहराएं।