हिमाचल प्रदेश के लिए कृषि सलाह: बढ़िया उत्पादन के लिए अपने क्षेत्र के लिए विकसित किस्मों की करें बुवाई

खरीफ मौसम में धान के साथ ही किसान मक्का, राजमा, उड़द जैसी फसलों की बुवाई के साथ ही बागवानी फसलों की भी देखभाल करता है, ऐसे में अच्छे उत्पादन के लिए जानना जरूरी होता है कि कब क्या करें ।
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हिमाचल प्रदेश के ज्यादातर जिलों में मई-जून महीने से खरीफ फसलों की बुवाई की तैयारी शुरू हो जाती है। इसलिए किसानों को बढ़िया उत्पादन के लिए शुरू से कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, जिससे कम लागत में किसान बढ़िया उत्पादन पा सकें।

कृषि विशेषज्ञों ने हिमाचल प्रदेश में मक्का, धान, तिलहनी, दलहनी और सब्जियों जैसी फसलों के लिए सलाह दी है, जिसको अपनाकर किसान बढ़िया उत्पादन पा सकते हैं।

मक्का की खेती

प्रदेश के मध्य और निचले भाग पर्वतीय क्षेत्रों में मक्का की बुवाई 15 मई से 15 जून और 20 मई से 30 जून तक कर लेना चाहिए। इन क्षेत्रों में समय पर बुवाई के लिए कम्पोजिट किस्म गिरिजा और पालम संकर मक्का-2 और देर से बुवाई के लिए बजौरा मक्का, बजौरा पॉपकॉर्न मक्का का चयन करें। इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय द्वारा परीक्षण किए गए संकर किस्मों को भी कृषि विभाग से लिया जा सकता है।

मक्का की बुवाई के लिए 20 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से बीज लगता है। गोबर की खाद के साथ संकर किस्मों में एनपीके की मात्रा 120:60:40 किलो और स्थानीय देसी किस्मों के लिए एनपीके की मात्रा 95:45:30 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए।

फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा और एक तिहाई नाइट्रोजन की मात्रा बुवाई के समय और बाकी बची हुई नाइट्रोजन को दो भागों में बांटकर पहला भाग मिट्टी चढ़ाने की अवस्था और दूसरा भाग उसके एक महीने बाद करें।

धान की खेती

धान की नर्सरी तैयार करने के लिए 25 किलो बीज प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों, जैसे एचपीआर 1068, एचपीआर 2143, एचपीआर 2720, एचपीआर 2880 और विश्वविद्यालय द्वारा 1000 मीटर से नीचे के क्षेत्रों के लिए अनुमोदित और परीक्षण किए गए संकर किस्मों एराइज 6129, एराइज स्विफ्ट, एराइज ए जेड 65208, पीएसी 807 की नर्सरी की बुवाई 20 मई से जून तक कर लें। 25-30 दिन की पौध हो जाने पर रोपाई करें।

बासमती धान की खेती के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों कस्तूरी और एचपीआर 2612 का प्रयोग करें। देर से बुवाई के लिए जल्दी तैयार होने वाली किस्म एचपीआर 2612 को लगाया जा सकता है। कुल्लू घाटी और दूसरे ठंडे क्षेत्रों में भृगधान, वरुण धान और नागरधान जैसी किस्मों की खेती करें।

उड़द की खेती

हिमाचल प्रदेश में उड़द की बुवाई जून के अंत से जूलाई के पहले सप्ताह तक की जा सकती है। निचले और मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक उपज देने वाली किस्मों यूजी 218, हिम माश 1 और पीबी 114 और उच्च पर्वतीय क्षेत्रों (1500 मीटर से ऊपर) में पालमपुर 93 किस्म को 20 किलो बीज प्रति हेक्टेयर की दर से लगाए।

अधिक उत्पादन के लिए राइजोबियम और पीएबी कल्चर के साथ बुवाई के पहले बीजों का उपचार करें।

राजमा की खेती

राजमा का अच्छा उत्पादन देने वाली किस्मों जैसे ज्वाला, हिम-1, कंचन, त्रिलोकी की बुवाई ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मई महीने में और निचले इलाकों में जून महीने में कर लेनी चाहिए। राजमा की फसल बुवाई के 20-25 दिन बाद और 50-60 दिन बाद दो निराई-गुड़ाई करें।

बागवानी के जरूरी काम

सेब

सेब में फल सैटिंग के बाद मिट्टी में कैल्शियम नाइट्रेट 300 ग्राम प्रति पौधे की दर से प्रयोग करें। सेब में पाउडरी मिल्ड्यू रोग की रोकथाम के लिए पेटल फॉल अवस्था में 0.5 मिली हेक्साकोनाजोल प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। अगर बगीचे में स्कैब रोग के लक्षण दिखे तो 40 मिली डाईफेंकोनाजोल प्रति 200 लीटर की दर से छिड़काव करें।

माइट्स् के नियंत्रण करने के लिए जब सेब के फल का आकार अखरोट के आकार के हो जाए तब 50 मिली मेटासिस्टॉक्स 200 मिली ओमाइट प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

आड़ू और प्लम

कीट और फफूंद के कारण होने वाले लीफ कर्लिंग के नियंत्रण के लिए 1 मिली मेटासिस्टॉक्स और 3 ग्राम ब्लाइटॉक्स प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

नींबू वर्गीय

गुमोसिस, कैंकर व डाई बैकरोग के नियंत्रण के लिए जून-जुलाई महीने में 600 ग्राम ब्लाईटॉक्स प्रति 200 लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

अनार

फलों में दाग व सड़न समस्या के निदान के लिए जून के दूसरे सप्ताह में 500 ग्राम कम्पैनियन प्रति 200 लीटर की दर से छिड़काव करें।

बैक्टीरियल स्पॉट रोग के नियंत्रण के लिए जुलाई के पहले सप्ताह में 400 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड + 20 ग्राम स्ट्रेप्टोसाक्लिन प्रति 200 लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। 

साभार: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की किसानों के लिए खरीफ फसलों की सलाह

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