सीतापुर। मधुमक्खी पालन से न केवल किसानों को अच्छी आय होती है, बल्कि मधुमक्खियां कृषि उत्पादन बढ़ाने में भी मदद करती हैं। मधुमक्खी पालन से शहद, मोम, रॉयल जैली आदि अतिरिक्त उत्पाद भी प्राप्त होते हैं जो किसानों की अतिरिक्त आमदनी का बेहतर जरिया साबित होते हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आनंद सिंह कहते हैं, “पारंपरिक फसलों में लगातार हो रहे नुकसान से किसानों का आकर्षण मधुमक्खी पालन की ओर लगातार बढ़ रहा है। तकरीबन अस्सी फ़ीसदी फसलीय पौधे क्रास परागण करते हैं, क्योंकि उन्हें अपने ही प्रजाति के पौधों से परागण की जरूरत होती है जो उन्हें बाहरी माध्यम से मिलता, ऐसे किसान जो व्यवसायिक ढंग से मधुमक्खी पालन करना चाहते हैं उन्हें एपीकल्चर यानि मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण लेने पर विचार करना चाहिए।”
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भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग, नई दिल्ली के सौजन्य से कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया सीतापुर द्वारा बायोटेक-किसान हब योजनान्तर्गत चयनित कृषकों को वैज्ञानिक विधि से मधुमक्खी पालन का पांच दिवसीय प्रशिक्षण दिया गया।
पशुपालन वैज्ञानिक डॉ. आनन्द सिंह ने कहा, “पृथ्वी पर लगभग 20000 से अधिक प्रकार की मधुमक्खियां है, जिनमें से केवल चार प्रकार की ही शहद बना पाती है, आमतौर पर मधुमक्खी के छत्ते में एक रानी मक्खी, कई हज़ार श्रमिक मक्खी और कुछ नर मधुमक्खी होते हैं। मधुमक्खियों का समुह श्रम विभाजन और विभिन्न कार्यों के लिए विशेषज्ञों का उत्तम उदाहरण होता है। मधुमक्खी श्रमिक मधुमक्खियों की मोम ग्रंथि से निकलने वाले मोम से अपना घोसला बनाते हैं जिन्हें शहद का छत्ता कहा जाता है।”
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मृदा वैज्ञानिक सचिन प्रताप तोमर ने बताया, “मधुमक्खियां अपने कोष्ठक का इस्तेमाल अंडे सेने और भोजन इकठ्ठा करने के लिए करती हैं। छत्ते के उपरी भाग का इस्तेमाल वो शहद जमा करने के लिए करती हैं। छत्ते के अंदर परागण इकठ्ठा करने, श्रमिक मधुमक्खी और डंक मारने वाली मधुमक्खियों के अंडे सेने के कोष्ठक बने होने चाहिए। कुछ मधुमक्खियां खुले में अकेले छत्ते बनाती हैं जबकि कुछ अन्य मधुमक्खियां अंधेरी जगहों पर कई छत्ते बनाती हैं।”
गृह वैज्ञानिक डॉ. सौरभ ने बताया कि मधुमक्खी पालन में सफलता के लिए उपकरणों की बडी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अपने इलाके में ऐसे व्यक्ति को चिन्हित करना जो मधुमक्खी पालन से जुड़े उपकरण तैयार करता हो और उपकरण के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र से जानकारी प्राप्त कर सकते है।
पादप सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ. दया शंकर श्रीवास्तव ने बताया कि मधुमक्खी पालन की योजना आरंभ करने से पूर्व पहले कदम के तौर पर आपको उस इलाके में जहां आप इसे शुरू करना चाहते हैं में मनुष्य और मधुमक्खी के बीच के संबंध को करीब से समझने की कोशिश करें। प्रायोगिक तौर पर खुद को इसमें संलग्न करें और मधुमक्खियों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश करें।
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केन्द्र के प्रसार वैज्ञानिक शैलेन्द्र सिंह ने कहा, “अगर आपको इससे पहले मधुमक्खी पालन का कोई अनुभव नहीं है तो स्थानीय मधुमक्खी पालकों के साथ काम करें। मधुमक्खी पालन प्रबंधन के बारे में उनके निर्देश को सुनें, समझें और सीखें। मधुमक्खी पालन के दौरान कोई मधुमक्खी आपको काट ले ये बहुत ही सामान्य सी बात है।”
इसके लिए फल में बादाम, सेब, खुबानी, आडू, स्ट्राबेरी, खट्टे फल, और लीची, सब्जियों में:- पत्ता गोभी, धनिया, खीरा, फूलगोभी, गाजर, नींबू, प्याज, कद्दू, खरबूज, शलजम, और हल्दी, तिलहन: सुरजमुखी, सरसों, कुसुम, नाइजर, सफेद सरसों, तिल व चारा: लुसेरन, क्लोवर घास की आवश्यकतर होती है। मधुमक्खी पालन में होने वाले परागण की वजह से फसल उत्पादन में होने वाली वृद्धि होती है।