सीतापुर। पिछले कुछ वर्षों जिले में सब्जियों की खेती तेजी से बढ़ी है, लेकिन एक ही तरह की फसलें उगाने से कई तरह की कीटों की समस्या बढ़ जाती है। इससे पैदावार में कमी और लागत बढ़ रही है।
इस समस्या से निजात दिलाने के लिए राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन केंद्र के सहयोग से कृषि विज्ञान केंद्र कटिया द्वारा टमाटर की फसलों में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन का प्रयोग व प्रमाणीकरण परियोजना चलाई जा रही है।
राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. मुकेश सहगल बताते हैं, “यदि किसान हर दिन सुबह-शाम खेत में 15-20 मिनट अपनी फसलों की निगरानी करें तो शत्रु और मित्र कीटों की संख्या का पता लगाया जा सकता है, यदि यह अनुपात 2:1 रहता है तो दवाइयों के प्रयोग करने की जरूरत नहीं है। डॉ. मुकेश सहगल महोली ब्लॉक के अल्लीपुर गाँव में पीड़क निगरानी प्रशिक्षण कार्यक्रम में किसानों को किसानों को उनके खेतो में कीटों के निगरानी की विधियां समझायीं।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि उपनिदेशक कृषि अरविन्द मोहन मिश्रा ने किसानों को समेकित प्रबंधन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कीड़ों और बीमारियों से निजात पाने के लिए उपलब्ध अनेकों तकनीकियों का समय के अनुसार समावेश कर बड़ी आसानी से नियंत्रण कर लागत में कमी कर पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जा सकता है।
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फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ. डीएस श्रीवास्तव ने किसानों को टमाटर में लगने वाले रस चूसक कीटों के लिए पीला चिपचिपा पाश, नीम का तेल व जैविक कीटनाशी बिवेरिआ प्रयोग करने की सलाह दी, साथ ही सुंडी कीटों की निगरानी और नियंत्रण के लिए फेरोमोन ट्रैप और लाइट ट्रैप को लगाने के सुझाव दिए।
जैविक विधि से टमाटर की खेती कर रहे प्रगतिशील किसान विनोद मौर्या ने किसानों को बताया, “मैंने अपने खेतों में नीले, पीले व लाल सिग्नल की रासायनिक दवाओं का प्रयोग बंद कर दिया है, जिससे उनकी फसल लागत में 50 प्रतिशत की कमी हो गयी है।”