अप्रैल महीने में इन बातों का ध्यान रखकर आर्थिक नुकसान से बच सकते हैं लीची किसान

लीची की खेती करने वाले किसान इस समय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन से नुकसान से बच सकते हैं, इस समय किसानों को रसायनिक कीटनाशकों से बचना चाहिए।
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अप्रैल के महीने में लीची के पेड़ों पर फल लगने लगते हैं, इसी समय लीची के बाग में कई तरह के कीट और रोगों का भी प्रकोप बढ़ जाता है। ऐसे में बागवान शुरू से कुछ बातों का ध्यान रखकर आर्थिक नुकसान से बच सकते हैं।

बागवानों को लीची में समय-समय पर लगने वाले कीट और रोगों के बारे में जानकारी होना चाहिए ताकि समय पर लीची में ससमय प्रभावी प्रबंधन किया जा सके और फलों को नुकसान होने से बचाया जा सके। जबकि लीची में रोगों की समस्या अपेक्षाकृत कम है, लेकिन, नाशीकीटों के अत्यधिक प्रकोप से अधिकतर बागवानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।

लगातार और अधिक मात्रा में रासायनिक कीटनाशी व कवकनाशी के अपने अलग से नुकसान होते हैं, ऐसे में जरूरी है कि कम से कम मात्रा में रसायनों का प्रयोग किया जाए। जहां तक संभव हो प्रबंधन के वैकल्पिक तरीकों जैसे- जैविक नियंत्रण (बायो पेस्टीसाइड और बायो फन्गीसाइड), कृषिगत क्रियाएं, यांत्रिक उपायों और आखिर में रासायनिक जैसी क्रियाओं को अपनाया जाए। इस दिशा में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन एक अच्छी पहल है, जिसमें दो या दो से अधिक प्रबंधन विधियों को समन्वित रूप में इस प्रकार प्रयोग करते हैं, ताकि हानिकारक नाशीजीवों की संख्या में इतनी कमी आ जाये कि वे फसल को अर्थिक हानि न पहुंचा सकें और हमारे मित्र कीट भी रक्षित रहे।

लीची फसल के प्रमुख कीट और रोकथाम

फल छेदक या बीज छेदक कीट 

लक्षण- ये लीची के सबसे अधिक हानिकारक कीट हैं जो व्यापक और बहुभक्षी हैं। एक साल में इस कीट की कई पीढ़ियां होती हैं, लेकिन फलन के समय दो पीढ़ी महत्वपूर्ण होती हैं। पहली, जब लीची के फल लौंग के दाने के आकार के होते हैं (अप्रैल प्रथम सप्ताह) तो मादा पुष्पवृंत के डंठलों पर अंडे देती हैं, जिनसे दो-तीन दिन में सुंडी (लार्वा) निकलकर विकसित होते फलों में प्रवेश कर बीजों को खाते हैं, जिसके कारण फल बाद में गिर जाते हैं। अगर ऐसे फलों को गौर से देखा जाए तो फलों पर छिद्र दिखाई देते हैं।

फल छेदक या बीज छेदक कीट

दूसरी पीढ़ी, फल परिपक्व होने के 15 से 20 दिन पहले (मई प्रथम सप्ताह) जब इसके सुंडी डंठल के पास से फलों में प्रवेश करते हैं और फल के बीज और छिलके को खाकर हानि पहुंचाते हैं। सुंडी लीची के गूदे के रंग के बहुत ही महीन होते हैं। ये अपनी मलमूत्र फल के अंदर जमा करते हैं जो ग्रसित फलों में डंठल के पास छिलने से दिखाई पड़ती है। लीची फलों के परिपक्व होने से पहले वातावरण में नमी की मात्रा अधिक होने से प्रकोप की संभावना अधिक बढ़ जाती है।

रोकथाम

1. जैव-नियंत्रक जैसे- ट्राइकोग्रामा केलोनिस परभक्षी 50,000 अंडे प्रति हेक्टेयर (बौर निकलने के बाद, मार्च प्रथम सप्ताह) और गंध-पांश (फेरोमोन ट्रैप) 10-15 प्रति हेक्टेयर वृक्ष की मध्य ऊंचाई पर लटका दें।

2. मंजर निकलने और फूल खिलने से पहले एजाडीरेकटिन 1500 पीपीएम या नीम तेल @ 3-4 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल या वर्मीवाश 5 प्रतिशत के घोल से छिड़काव करें।

3. पहला कीटनाशी छिड़काव-कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी दो ग्राम प्रति लीटर (0.1 प्रतिशत) का प्रयोग लीची फल जब मटर के दाने के आकार के हो जाये तब करें।

4. जमीन पर गिरे सभी फलों को इकट्ठा करके नष्ट करें या खेत से दूर गहरे गड्ढे में दबा दें।

5. दूसरा कीटनाशी छिड़काव फल पकने के 15 से 20 दिन पहले साइपरमेथ्रीन 10 ई सी 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या डेल्टामेथ्रिन 2.5 ई सी 1.0 मिलीलीटर प्रति लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या क्लोरपाइरीफॉस 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें।

छाल खाने वाला सुंडी

लक्षण- इनके सुंडी बड़े आकार के होते हैं, जो वृक्षों के छाल खाकर जीवन यापन करते हैं। यह वृक्ष के मोटे धड़ों और शाखाओं में छेदकर दिन में छिपे रहते हैं और रात में बाहर निकलते हैं। ये अपने बचाव के लिए टहनियों के ऊपर मलमूत्र और छाल के बुरादे की सहायता से जाला बनाते हैं। इनके प्रकोप से टहनियां कमजोर हो जाती हैं और कभी भी टूटकर गिर सकती हैं। इसके प्रकोप से पौधों में पोषक तत्वों की आदान-प्रदान बाधित हो जाती है। एक वर्ष में इस कीट की एक ही पीढ़ी होती है।

छाल खाने वाला सुंडी

रोकथाम

1. तने और टहनियों पर लगे जाले को साफ कर प्रत्येक छिद्र में केरोसिन युक्त रुई को तार से डालकर खुरचने से कीट के पिल्लू मर जाते हैं।

2. नारियल की झाड़ू से पहले जाला साफ करके प्रत्येक छेद के अंदर मिट्टी तेल, पेट्रोल, फिनाइल, डीडीवीपी या नुवान 5.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल से भीगी रूई को ठूसकर भर दें और छिद्रों के ऊपर गीली मिट्टी या गोबर का लेप लगा दें।

3. इन कीटों से बचाव के लिए बगीचे को हमेशा साफ-सुथरा और स्वस्थ रखें।

पत्ती काटने वाली घुन

लक्षण- यह कीट बड़े आकार के चांदी के रंग जैसा चमकदार होता है, जो दो से तीन महीने पुरानी पत्तियों के बाहरी किनारे को काट-काट कर खाता रहता हैं, जिससे पत्तियां दोनों किनारे से कटी-फटी दिखती है। छोटे पौधों के लिए ये कीट घातक सिद्ध हो सकते हैं।

पत्ती काटने वाली घुन

रोकथाम

1. नये बागों में बरसात के बाद खेतों की जुताई अच्छी तरह करें, ताकि इनके नवजात और वयस्कों को जो घास-पात की जड़ों को खाकर अपना जीवन यापन करते हैं, उन्हें नष्ट किया जा सके।

2. छोटे पौधों या टहनियों को हिलाने से ये कीट नीचे गिर जाते हैं, फिर गिरे कीट को इकट्ठा कर खेत से बाहर नष्ट कर दें।

3. नीम आधारित जैव-कीटनाशक या 5% नीम बीज अर्क का प्रयोग कर इनके नवजात या वयस्कों को पौधों पर आने से रोका जा सकता है।

4. अधिक प्रकोप की स्थिति में कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी 2.0 ग्राम प्रति लीटर या नुवान 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें।

5.टहनियों तथा डालियों को जहाँ पर कीड़ा लगा हो, वहां गौ मूत्र या नीम के काढ़े का छिड़काव क़र तर क़र देना चाहिए।

टहनी छेदक:

लक्षण- इस कीट के सुंडी, वृक्ष के नई कोपलों की मुलायम टहनियों में प्रवेश कर उसके भीतरी भाग को खाते हैं। फलस्वरूप, प्रभावित टहनियां मुरझाकर सूख जाती हैं और साथ ही साथ पौधों की बढ़वार रुक जाती है। अगर ध्यान से देखा जाये तो नई टहनियों में कहीं कहीं छिद्र नजर आते हैं। ऐसी जगहों से अगर टहनी तोड़कर और चीरकर देखें तो इसके सफेद रंग के पिल्लू और विष्ठा नजर आएगा।

रोकथाम

1. लीची के बाग में से प्रभावित टहनियों को काटकर जला दें।

2. कीड़ों की तीव्रता की स्थिति में कार्बारिल 50 डब्ल्यू.पी. 2 ग्राम प्रति लीटर (0.1 प्रतिशत) घोल का छिड़काव करें।

लीची लाल मकड़ी माइट :

लक्षण- यह अत्यंत सूक्ष्म कीट होती है, जिसका शरीर बेलनाकार, चार जोड़े पैर और लाल सफेद और चमकीले रंग के कीट होते हैं। नवजात और वयस्क दोनों लीची में कोमल पत्तियों की निचली सतह, टहनी और पुष्पवृंत से चिपक कर लगातार रस चूसते रहते हैं। ग्रसित पत्तियां उत्तेजित हो जाती हैं और मोटी और लेदरी होकर सिकुड़ जाती हैं।

लीची लाल मकड़ी माइट 

निचली सतह पर मखमली रूआंसा (इरिनियम) निकल आता है, जो बाद में भूरे या गहरे भूरे-लाल रंग का हो जाता है और प्रभावित पत्तियों में गड्ढे बन जाते हैं। प्रभावित टहनियों में पुष्पन और फलन नहीं या कम होता है। मखमली इरिनियम उच्चताप, वर्षा और आर्द्रता से वयस्क मकड़ी को सुरक्षा प्रदान करती हैं।

रोकथाम

1. जून (फल तुड़ाई उपरांत) और दिसंबर से जनवरी में प्रभावित टहनियों को कुछ स्वस्थ हिस्से के साथ काट कर जला दें।

2. सितंबर से अक्टूबर और फरवरी में रॉयल माइट@ 2 मिलीलीटर प्रति लीटर+इकोटिन 5% @0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर का घोल बनाकर एक छिड़काव करें।

3.वर्तीसीलीयम लिकेनी या वर्ती लेक का 250 किग्रा./हेक्टेयर को 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

4. इस अष्टपदी के नियंत्रण के लिए गौ मूत्र और नीम का काढ़ा का छिड़काव करना चाहिए।

पत्ती लपेटक कीट:

लक्षण- इस कीट के सुंडी (लार्वे) लीची में मुलायम पत्तियों को रेशमी धागों से लंबवत लपेटकर जाले बनाते हैं और अंदर ही अंदर पत्तियों को खाते रहते हैं। अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां समय से पूर्व ही सूखने लगती हैं। बाग की उपज क्षमता कम हो जाती है।

रोकथाम

1. अगर लीची के बाग में प्रभावित पत्तियां कम हो तो हाथ से तोड़कर ऐसी पत्तियों को नष्ट कर दें।

2. यदि 50 प्रतिशत कोपलों पर आक्रमण हो तो कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति लीटर (0.1 प्रतिशत) या फॉस्फोमिडान 85 ई सी 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का एक से दो छिड़काव 7 से 10 दिनों के अंतराल पर करें।

3.इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गौ मूत्र माइक्रो झाइम के साथ मिला कर छिड़काव करें।

पत्ती सुरंगक कीट

लक्षण- इसका वयस्क कीट आकार में बहुत छोटा और लंबा होता है। मादा कोमल पत्तियों की निचली सतह पर उत्तकों के बीच अंडे देती हैं। लार्वा (सुंडी) पत्तियों के निचली सतह के उत्तकों को खाकर आगे बढ़ते हुए पत्ती के मध्य सिरे में सुरंग बनाता है और उसे खाता है। प्रभावित पत्तियां सूखने लगती हैं और पौधा दूर से झुलसा हुआ दिखाई देता है।

नये कोपलों के निकलने के समय आक्रमण की तीव्रता बढ़ जाती है। इस कीट का आक्रमण नई पत्तियों पर अधिक होता है। खासकर सितंबर से अक्टूबर में कोपलों को इस कीट के प्रकोप से बचाना बहुत जरूरी है, क्योंकि इन्हीं कोपलों में आगे चलकर मंजर और फल लगते हैं।

पत्ती सुरंगक कीट

रोकथाम:

1. ग्रसित टहनियों को निकालकर या काटकर नष्ट कर दें।

2. खेत की जुताई के साथ-साथ जल और पोषक तत्वों के प्रबंधन को समयानुसार करें, ताकि नयी कोपलें (फ्लश) सितंबर से पहले निकल जाये।

3. नयी कोपलों के निकलने के समय नीम बीज से बने 5 प्रतिशत अर्क का 7 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव करें। इसके अभाव में नीम आधारित रसायन जैसे- निम्बीन, अचूक, वेनगॉर्ड आदि 4 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का 7 दिनों के अंतराल पर दो छिड़काव करें।

4. बहुतायत की अवस्था में मेलाथियान 0.05 % या कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम (0.1 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें।

5. इस कीट का आक्रमण प्रारंभ होने पर गौ मूत्र या नीम के काढ़े का माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर छिड़काव करें।

खर्रा कीट (मिली बग):

लक्षण- मुख्यत: यह कीट आम के वृक्षों पर आक्रमण करता है पर लीची के बाग आस-पास होने के कारण कभी-कभी इस कीट का प्रकोप लीची पर भी देखा गया है। इसका प्रकोप दिसंबर से मई तक पाया जाता है। ये कीट उजले रंग के होते हैं और मुधुस्राव भी करते हैं, जिस पर चींटी और काली फफूंदी लगने लगते हैं। वयस्क होते कीट अपनी ऊपरी सतह को उजले पाउडर जैसे आवरण से ढक लेते हैं।

इसके वयस्क बड़े आकर (0.8 से 1.5 सेंटीमीटर) के होते हैं और नवजात के साथ पत्तियों और कोमल टहनियों से लगातार रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं। यहां तक कि ये धीरे-धीरे चलकर शुरुआती फलों से भी चिपककर रस चूसते हैं। रस चूसने के कारण पेड़ पीलापन लिए और अस्वस्थ प्रतीत होते हैं। अपरिपक्व अवस्था में पत्तियां और फल गिरने लगते हैं।

खर्रा कीट (मिली बग):

रोकथाम

1. जून में खेतों की जुताई करने से इस कीट के अंडों और नवंबर से दिसंबर में जुताई करने से इसके नवजात को काफी हद तक पेड़ों तक पहुंचने से रोका जा सकता है।

2. पेड़ों के तनों में 2 फीट ऊंचाई पर मोटी प्लास्टिक बांधकर उस पर ग्रीस लगा दें, जिससे जमीन से ऊपर चढ़ते समय कीट चिपककर नष्ट हो जाएं।

3. इस कीट का शरीर मोम जैसा (वैक्सी परत) होने के कारण रासायनिक दवाओं का प्रभाव कम होता है।

4. बहुतायत की अवस्था में डाइमेथेओएट 30 इसी.@ 1.5 मिली.लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें, सर्फ या कोई डिटर्जेन्ट पाउडर एक चम्मच प्रति 10 लीटर पानी के घोल में अवश्य डालें या 2% मैदा का घोल बनाकर 7 दिन के अन्तराल पर दो छिड़काव करें।

5.मई जून के महीने में पेड़ के निचे थालो में नीम की खाद डाल कर निराई गुड़ाई करने से इस किट का नियंत्रण हो जाता है।

लाल सुंडी कीट

लक्षण- यह एक नई कीट प्रजाति (ऐपोडेरस ब्लांडस) है, जिसका प्रकोप पिछले कुछ सालों से लीची में पौधों पर देखा गया है। वयस्क कीट (विभिल) चमकीले भूरे लाल रंग के, 5 से 7 मिलीमीटर लंबे आकर के होते हैं और इनका लंबा चूंढ़ (स्नाउट) बैठने की स्थिति में हमेशा ऊपर उठा होता है। यह कीट बिलकुल नई पत्तियों की सतह पर हरित भाग (क्लोरोफिल) को खाता है, जिससे भूरे लाल रंग के खाये हुए चित्ती पत्तियों पर जहां-तहां बिखरे नजर आते हैं। प्रभावित पत्तियों के ऊपर बाद में ऐसे खाये हुए भाग पर छिद्र बन जाते हैं। प्रकोप की तीव्रता की स्थिति में नई कोपलें और पत्तियां सूखी और सूर्यप्रकाश से जली प्रतीत होती हैं। इस कीट के प्रकोप से पांच वर्ष से छोटे पौधों को अत्यधिक नुकसान होता है।

रोकथाम

1. लीची में नीम आधारित रसायनों या 5% नीम बीज अर्क के प्रयोग से कीट को पौधों पर आने से रोका जा सकता है।

2. बहुतायत की स्थिति में डाइमेथेओएट 30 इ.सी.@ 1.5 या मेलाथियान 0.05 % प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें।

लीची सेमीलूपर:

सेमीलूपर कीट का प्रकोप लीची की फसल के लिए एक नया खतरा है। इनके पिल्लू (लार्वा) नई पत्तियों को बहुत तेजी से खाकर उन्हें खत्म कर देते हैं। इसके प्रकोप से अक्सर वृक्ष के छत्रक (कैनोपी) पर प्ररोहों के ढूंठ दिखाई देते हैं, जिस पर पत्तियों के सिर्फ मध्य शिरे बचे होते हैं। ये लीची में शत-प्रतिशत नई पत्तियों को खा जाते हैं। दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है, कि वृक्ष के ऊपरी हिस्से को कोई जानवर चर गया हो। बाद में ऊपरी प्ररोह सूखने लगते हैं। नजदीक जाने पर हजारों की संख्या में सेमीलूपर पिल्लू प्ररोहों पर लटके नजर आते हैं।

पेड़ के पत्तों पर इनके प्यूपे भी नजर आते हैं, जिससे 2 से 3 दिन में ही वयस्क निकल जाते हैं। इस कीट का जीवन चक्र 14 से 17 दिनों में पूरा हो जाता है। इसके पूर्ण विकसित लार्वा 1.7 से 2.2 सेंटीमीटर तक लंबा और 2 मिलीमीटर चौड़ा होता है जो धुंधला होने के साथ-साथ शरीर पर काले धब्बे लिए होते हैं। प्यूपा लगभग 0.8 से 0.9 सेंटीमीटर और वयस्क 2.1 से 2.3 सेंटीमीटर (पूरे फैले पंख की अवस्था में) होते हैं। इस कीट का प्रकोप सितंबर से नवंबर के बीच होता है। क्योंकि इन्हीं कोपलों में अगले वर्ष फूल (मंजर) आते हैं और फल लगते हैं, इसीलिए इस कीट से बचाव नहीं करने पर उत्पादन में काफी ह्रास हो सकता है।

लीची सेमीलूपर कीट

रोकथाम:

1. बचाव के लिए नीम आधारित रसायनों या 5% नीम बीज अर्क का प्रयोग करें या बी टी आधारित बायोपेस्टीसाइड (हाल्ट) 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें।

2. बहुतायत की स्थिति में क्युनालफोस 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या क्लोरपाइरीफॉस 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या डेल्टा सायपरमेथ्रिन @ 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें।

लीची फ्रूट मॉथ

1.फल बनने के 10-15 दिन बाद गौ मूत्र और नीम का काढ़ा का हर 15 – 20 दिन बाद छिड़काव करते रहना चाहिए।

2.फल मक्खी प्रपंच घोल युक्त मिथाइल युजिनाल 40 मिली. और मेलाथियान 20 मिली. व 60 मिली. एथेनाल का घोल बनाकर 3-4 सेमी. का रस्सी काटकर 72 घंटे डुबोकर फिर डिब्बे के ढक्कन में छेद करके उसके नैक के निचे चार छिद्र बनाकर उसी के सामने ल्युर को लटका देने से नर मखिया आकर्षित होकर मेलाथियान द्वारा नष्ट कर दी जाती है। एक हक्टेयर बाग में 10 डिब्बे लटकाना चाहिए।

3.बागों में सड़े व गिरे हुए फलों को चुनकर जमीन के अन्दर गाड़ दे।

4.संभव हो तो फल के गुच्छों को बैगिंग कर दें।

(संकलन: राजीव कुमार और डॉ मुकेश बाबू, वनस्पति संगरोध केंद्र संगरोध भवन, जोगबनी, अररिया, बिहार)

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