फ्री में ऊसर जमीन को उपजाऊ बनवाइए

kheti badi

अगर आपकी खेती वाली जमीन ऊसर है तो आप उसे उपजाऊ बनवा सकते हैं। उत्तर प्रदेश में ये काम सरकार करेगी वो भी पूरी तरह मुफ्त पढ़िए ख़बर

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के हजारों किसान जमीन होने के बाद भी ऊसर होने के कारण उस पर खेती नहीं कर पाते, क्योंकि उनकों ये नहीं मालूम होता की उनकी जमीन भी कुछ आसान तरीकों से उपजाऊ हो सकती है जिसमें सरकार भी पूरा सहयोग कर रही है। उत्तर प्रदेश सरकार एक योजना के तहत ऊसर भूमि सुधरने में लगे किसानों को पूरे एक वर्ष तक भूमि में आई लागत को वहन करती है।

उत्तर प्रदेश भूमि सुधार निगम कृषि वैज्ञानिक डॉ. केबी त्रिवेदी ऊसर भूमि को सुधारने में सरकार की तरफ से मिलने वाली मदद के बारे में बताते हैं, “किसानों को एक वर्ष तक ऊसर भूमि सुधारने में आने वाली लागत व फसल लगाने के लिए बीज, खाद और दवा का पैसा किसानों को दिया जाता है।”

उत्तर प्रदेश में लगभग 11.50 लाख हेक्टेयर भूमि ऊसर से प्रभावित है। ऊसर भूमि को सुधारने के लिए कई तरह की विधियां हैं जिनमें सबसे कारगर विधि ढैंचा बोना, मेढ़बंदी, स्क्रेपिंग, सब-प्लाटिंग, फ्लंसिंग और स्क्रेपिंग, जिप्सम मिक्सिंग आदि तरह की प्रक्रिया से जमीन को उपजाऊ बनाया जा सकता है। भारत मे लगभग 75 लाख हेक्टेयर भूमि ऊसर है वहीं विश्व में लगभग 9520 लाख हेक्टेयर भूमि ऊसर प्रभावित है।

लखनऊ से लगभग 62 किमी दूर उन्नाव जिले के भतावां गाँव के किसान रज्जू लोधी (45 वर्ष) को इस ऊसर भूमि सुधार योजना के बारे में जानकारी नहीं है वे बताते हैं, “मेरे पास 10 बीघा जमीन है जिसमें मात्र ले दे कर दो बीघा जमीन पर ही खेती होती है बाकी सब ऊसर पड़ी है।” रज्जू आगे बताते हैं, “कई बार ऊसर भूमि पर पैसे लगाकर सुधारने की कोशिश की लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। पैसे भी बरबाद चले गए।”

उत्तर प्रदेश भूमि सुधार निगम के कृषि वैज्ञानिक (तत्कालीन) डॉ. केबी त्रिवेदी बताते हैं, “ऊसर सुधारने के लिए किसान अपने खेतों को पहले छोटे-छोटे भाग में बांट कर उनकी मेड़बंदी कर ले। जहां-जाहां ज्यादा लोना (नमक) फूल रहा हो वहां की मिट्टी खुरच कर हटा दें। फिर उन प्लाटों को जुताई कर समतल कर लें। इसके बाद उनमें पानी भर के निकाल दे। फिर जुताई करके समतल कर पानी भर दें और फिर निकाल दे।” डॉ. केबी त्रिवेदी आगे बतते हैँ, “जून के महीने में सबसे पहले जिप्सम डाले और पानी भर दे। इसके बाद पहली फसल धान की करें फिर गेहूं की फसल फिर ढैंचा की फसल करें। दो वर्षों तक ऐसे ही खेती करें जिससे ऊसर भूमि पूरी तरह से उपजऊ हो जाएगी।”

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रायबरेली जिले के बल्ला गाँव के किसान अरुण कुमार (50 वर्ष) 10 बीघे खेत में दलहन और अनाज की खेती करते हैं बताते हैं, “हमारी पंचायत में ज्यादातर खेती की ज़मीन बंजर है, जिसे उपयोग में लाने के लिए हम लोगों ने कई बार प्रयास किया किया, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं मिला।” रज्जू, अरुण जैसे किसानों समेत लाखों किसान भूमि सुधार योजना के अंतर्गत अपनी भूमि को उपजाऊ बना सकते हैं।

कृषि उत्पादन आयुक्त सह चेयरमैन प्रदीप भटनागर बताते हैं, “भूमि सुधार निगम उत्तर प्रदेश में ऊसर, बंजर और बीहड़ भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए उत्तर प्रदेश भूमि सुधार निगम लगातार काम कर रहा है। इसके लिए किसानों में सहभागिता भी बढ़ाई जा रही है। किसानों को ट्रेनिंग और अनुदान दिया जा रहा है।”

ऊसर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए परियोजना के अंतर्गत जुताई का खर्च, मेढ़ बांधने का खर्च, बोरिंग, जिप्सम और फसल के लिए बीज, खाद, दवा का एक वर्ष तक का खर्च दिया जाता है।

डॉ. केबी त्रिवेदी, कृषि वैज्ञानिक

पढ़िए अपने काम की बातें।

इन विधियों द्वारा बनाए ऊसर भूमि को उपजाऊ

ऊसर सुधार का कार्यक्रम जून में ही शुरु कर देना चाहिए। ऊसर सुधार करने से पहले अपने स्थानीय ग्राम, खंड अथवा जिला विकास अधिकारी से संपर्क कर ऊसर सुधार संबंधी योजना/परियोजना, अनुदान और प्रशिक्षण कैम्पों की जानकारी ले लें। ऊसर सुधार के ये हैं महत्वपूर्ण चरण।

मिट्टी की जांच : पीएच मान और खेती की क्षमता मिलकर तय कर देते हैं कि ऊसर भूमि किस श्रेणी की है और उसमें कितनी और कैसी फसल होगी। मिट्टी की जांच के नतीजे से मिट्टी की श्रेणी जान सकते हैं। यह जानने के बाद ही कर पाएंगे कि अपने ऊसर जमीन के सुधार के लिए कितने जिप्सम की आवश्यकता पड़ेगी। अतः सबसे मिट्टी जांच कराएं।

मेढ़बंदी : अच्छी-मजबूत मेढ़ किसी भी खेत में नमी को टिकाए रखने, अनुशासित सिंचाई तथा अतिक्रमण से बचाए रखने की सबसे पहली शर्त है तो ऊसर सुधार सबसे पहला और जरूरी काम। न्यूनतम डेढ़ फीट ऊंची मेढ़ तो होनी ही चाहिए। इसके लिए भूमि सुधार, ऊसर सुधार और बंजर भूमि विकास संबंधी योजना-परियोजनाओं का लाभ लिया जा सकता है।

स्क्रेपिंग : मिट्टी की ऊपरी और निचली परतों में से नमक को पूरी तरह हटाए बगैर ऊसर भूमि को उपजाऊ नहीं बनाया जा सकता। ‘स्क्रेपिंग’ मिट्टी की ऊपरी परत में उभर आए नमक को पूरी तरह हटाने का काम है। सावधानी बरतें कि इस तरह हटाए नमक को खेत से बाहर किसी गड्ढे में डालें अथवा किसी नाले में बहा दें। ऐसी जगह कतई न डालें कि बारिश के दौरान वह वापस खेत में आ जाए।

सब-प्लाटिंग : सब प्लाटिंग का मतलब होता है, खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बांट लेना। यह तीसरा महत्वपूर्ण कदम है। ऐसा करना समतलीकरण और आगे की प्रक्रिया में मददगार सिद्ध होता है।

समतलीकरण : खेत का समतलीकरण सबसे जरूरी काम है। यदि खेत समतल नहीं होगा तो खेत में डाला जाने वाला जिप्सम किसी एक जगह इकट्ठा हो जाएगा। पूरे खेत में एक समान जिप्सम नहीं फैलने से असर भी एक समान होगा, जोकि अनुचित है।

खेत-नाली : समतल हो गए खेत में ढाल की ओर अथवा खेत के बीचो-बीच खेत नाली बनाएं। खेत नाली का उपयोग जल निकासी के लिए किया जाता है।

फ्लंसिंग : फ्लंसिंग वह प्रक्रिया है, जिसमें ऊसरीली जमीन को 15 सेंमी ऊंचा पानी भर देते हैं। 48 घंटे बाद जब पानी को बहाया जाता है, तो इसके साथ-साथ नुकसानदेह लवण भी पानी में घुलकर बह जाता है।

जिप्सम मिक्सिंग : फ्लसिंग के बाद नंबर आता है ऊसर को उर्वरक बनाने वाली जिप्सम को मिट्टी में मिलाने का। जिप्सम सस्ता, लेकिन ऊसर सुधार के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। इसे किसी भी मात्रा में या अधिक से अधिक मात्रा में नहीं मिलाना चाहिए। किस श्रेणी में पोषक तत्व की कितनी मात्रा कम है, उसके अनुसार जिप्सम की मात्रा तय की गई है।

लीचिंग : मिट्टी में जिप्सम को भली प्रकार से मिला देने के बाद जून के दूसरे पखवाड़े में खेत को एक बार फिर 10-12 सेमी ऊंचे पानी से भर दें। 10 से 12 दिन बाद बचे हुए पानी को निकाल दें। इस प्रक्रिया को ‘लीचिंग’ कहते हैं।

खेत सुधार : लीचिंग के बाद यूं तो आपका खेत धान की खेती के लिए तैयार होगा, किंतु यदि आप खेत को हरी, देसी, नाडेप अथवा केंचुआ खाद दे सकें तो सोने में सुहागा हो जाएगा। ध्यान रहे कि धान रोपाई को समय से तैयार करें और उचित समय आने पर रोप दें। उचित बीज का चयन, खेती का वैज्ञानिक तरीका, कीट सुरक्षा और उचित तकनीक का उपयोग करें तो उपज बेहतर होने की संभावना बढ़ जाएगी।

हरी खाद ढैंचा- अच्छे ऊसर सुधार के लिए ढैंचा की हरी खाद बहुत उपयोगी होती है। हरी खाद के लिए ढैंचा एक सर्वोत्तम फसल है। ऊसर में ढैंचा को बोकर बड़ा होने पर उसी खेत में जुताई कर दी जाती है जिससे भूमि की मिट्टी उपजाऊ होने लगती है।

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