लखनऊ। इस समय बहुत सी ऐसी फसलें हैं, जिनकी देख रेख करना जरूरी है, नहीं तो उत्पादन पर असर पड़ सकता है। ये समय आम की बाग को कीटों और रोगों से बचाने का होता है, किसान लॉकडाउन का पालन करते हुए आम के बाग में दवाइयों का छिड़काव कर सकता है।
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक शैलेन्द्र राजन कहते हैं, “मनुष्य तो कोरोना से जूझ रहा है उधर आम के बागों मैं भी ध्यान देने की जरूरत है। वैसे ही आम की फसल कम है लेकिन यदि ध्यान ना दिया गया तो रही सही फसल के भी नष्ट होने की संभावना बढ़ जाती है।”
सरकार ने लॉकडाउन में कृषि कार्यों के लिए छूट दे रखी है। कोरोना वायरस के चलते देश में तीन मई तक लॉकडाउन बढ़ा दिया गया है। पीएम मोदी ने इस बात की घोषणा मंगलवार को की थी। इसके बाद सरकार ने बुधवार को नए दिशा निर्देश जारी कर दिए। इसके तहत किसानों को बड़ी राहत दी गई है। किसान अब कई सारे काम कर सकेंगे।
इस बार ज्यादा दिनों तक सर्दी रहने और असमय बारिश से देर से निकले आम के बौर भी खराब हो गए। लेकिन उन्हें कीट और व्याधियों के प्रकोप की कम समस्याएं झेलनी पड़ी। अधिक बारिश और ठंड के कारण आम के बागों की इनका कम प्रकोप हुआ।
उत्तर प्रदेश के प्रमुख आम उत्पादक जिले लखनऊ, अमरोहा, सम्भल, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर हैं। लगभग ढाई लाख हेक्टेयर क्षेत्र में विभिन्न किस्में उगायी जाती हैं। इनमें दशहरी, चौसा, लंगड़ा, फाजली, मल्लिका, गुलाब खस और आम्रपाली प्रमुख हैं। देश में आम का सबसे बड़ा बाजार उत्तर प्रदेश है।
इस वर्ष जनवरी में हुई अत्यधिक सर्दी ने भुनगा कीट को नष्ट कर किया तो लगातार वर्षा थ्रिप्स कीट को मिट्टी में ही मार दिया। जिसके कारण यह दोनों कीट अभी तक अधिकांश बागों में कम दिखे। भुनगा तो फिर भी कहीं कहीं है लेकिन थ्रिप्स अभी तक पिछले वर्ष की तरह कहीं नहीं दिखा। आम के बौर बहुत कम संख्या में निकले हैं स्वाभाविक रुप से फसल कमजोर होगी।
सहारनपुर में 19 मार्च और लखनऊ और बाराबंकी जनपदों के बागों में 28 मार्च तक के निरीक्षण के आधार पर यह जानकारी मिली है।
डॉ शैलेन्द्र राजन आगे बताते हैं, “कोरोना की महामारी के लॉक डाउन के बाद भी यह बात संस्थान के व्हाट्सएप समूहों पर और मोबाइल पर आ रहे किसानों के संदेशों के आधार पर वर्तमान में भी लगभग यही स्थिति है। पिछले कुछ दिनों में किसानो से प्राप्त संदेशों और फरवरी से अभी तक बागों के निरीक्षण के आधार पर स्पष्ट है कि इस वर्ष मिज कीट ने किसानों को परेशान किया। शुरू से ही बौर को क्षति करता रहा और अब नन्हें फलों को भी क्षति पहुंचा रहा है।”
इस कीट की फलों पर उपस्थिति छोटे से काले धब्बे, जिसके बीचों बीच बारीक छेद हो, से की जाती है। इसका प्रबंधन क्विनाल्फोस 25 ई सी के 2 मिलीलीटर या डाईमेथोएट 30 ई सी के 2 मिलीलीटर प्रति लीटर के छिड़काव से किया जा सकता है। अगर किसी बाग में भुनगा बढ़ रहा हो तो थायमेथोकजाम 25 डब्लू जी के 1 ग्राम प्रति 3 लीटर पानी का छिड़काव करें। अधिक नमी होने की स्थिति में नन्हें फलों और नई पत्तियों पर एंथ्रेक्नोज़ रोग होने की संभावना बनी हुई है। इस पर नियंत्रण के लिए इस समय डाईफेनोकॉनाज़ोल 5 एस एल के 0.5 मिलीलीटर या कार्बेंडाज़िम 50 डब्लू पी के 1 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव कीटनाशक के साथ मिलाकर कर सकते हैं।
इस वर्ष लगातार हुई वर्षा के कारण अभी सिंचाई की अधिक जरूरत नहीं है लेकिन फलों की अच्छी वृद्धि लिए अभी से 10 से 12 दिन बाद सिचाई जरूर करें।
नन्हें फलों को झड़ने से बचाने के लिए प्लानोफिक्स 4.5 % के 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का भी छिड़काव कर सकते हैं। फलों की अच्छी वृद्धि के लिए एन पी के 19-19-19 के 5 ग्राम और सूक्षम पोषक तत्व मिश्रण के 5 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव भी कर सकते हैं। ध्यान रखें कि कीट और रोग नाशी के साथ उर्वरक न मिलाएं। जिन किसानों ने परागण कीटों को बढ़ावा देने के लिए और थ्रिप्स कीट को मिट्टी से निकलने से रोकने के लिए अभी तक जुताई नहीं की है, वह 15 अप्रैल के बाद अगर जरूरी समझें तो खरपतवार नियंत्रण हेतु जुताई कर सकते हैं।
अभी भी कई स्थानो पर खर्रा रोग के लिए तापमान अनुकूल है और यह विलंबित बौर पर क्षति कर सकता है। इसके प्रबंधन के लिए आवश्यक लगे तो हेक्सएकोनाज़ोल 5 एस एल के 1 मिलीलीटर प्रति ली का छिड़काव कर सकते हैं।