ऊसर जमीन को सुधारने के लिए जिप्सम की सही मात्रा की जरूरत होती है, लेकिन खेत में कितना जिप्सम डालें, इसको पता करने के लिए पहले मिट्टी की जांच करानी होती है, जिसमें काफी समय लग जाता है। ऐसे में वैज्ञानिकों ने जिपकिट तैयार की है, जिससे घर पर ही किसान मिट्टी की जांच कर लेंगे।
क्षेत्रीय मृदा लवणता संस्थान, लखनऊ के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी किट तैयार की है, जिससे किसान खुद से मिट्टी की जांच कर लेंगे। संस्थान के निदेशक डॉ. विनय कुमार मिश्रा गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “ऊसर जमीन को सुधार की जरूरत होती है जिसे सिर्फ जिप्सम से सुधारा जा सकता है। ऐसे में जिप्सम की कितनी मात्रा लगनी चाहिए, इसकी मात्रा को निर्धारित करने के लिए हम लोग अभी तक मिट्टी की जांच करते हैं, जिसके लिए पहले मिट्टी का सैंपल लेते हैं, फिर उसे प्रयोगशाला में ले जाया जाता है, जिसे पहले सुखाया जाता है और उसकी पूरी तरह से जांच करने में 15-20 दिन लग ही जाते हैं। तो इन 15 से 20 दिनों के बाद किसान को बताया जाता है कि उस खेत में जिप्सम कितना लगेगा।”
वो आगे कहते हैं, “इसमें दो तरह की परेशानियां आती हैं, एक तो ज्यादा समय लगता है और दूसरा इसके लिए प्रयोगशाला होनी चाहिए, साथ ही प्रयोगशाला में काम करने वाले आदमी को भी पूरी जानकारी होनी चाहिए। इसलिए इन सभी परेशानियों को कैसे दूर किया जाए, ये हमारे सामने समस्या थी। इसलिए हमने जिपकिट को विकसित किया है।”
केंद्रीय मृदा लवणता संस्थान के अनुसार देश में लगभग 67 लाख हेक्टेयर भूमि ऊसर है, जिसमें से उत्तर प्रदेश में ऊसर भूमि का क्षेत्रफल लगभग 13.7 लाख हेक्टेयर है।
जिपकिट के बारे में डॉ मिश्रा बताते हैं, “जिपकिट में एक छोटा सा किट होता है, उसमें पांच से छह बार आप जांच कर सकते हैं और पता कर सकते हैं कि जिप्सम की मात्रा लगेगी। अगर एक किसान ये किट ले जाता है तो पांच से दस सैंपल एनालिसिस कर सकता है। यही नहीं इसे एक-दो घंटे में कर सकता है। किसी को कहीं जाने की जरूरत नहीं है, जिपकिट में पूरी गाइडलाइन दी गई है कि किस तरह से मिट्टी का सैंपल लें, किस तरह से जांच करें। स्टेप बाई स्टेप पूरी जानकारी दी गई है।”
अभी संस्थान ने जिपकिट को विकसित किया है, आईसीएआर के संस्थान कोई भी तकनीक विकसित करते हैं, एक तो वो खुद किसानों तक पहुंचाते हैं या फिर किसी कंपनी के जरिए किसानों तक तकनीक उपलब्ध कराते हैं। कंपनियों के जरिए उन तकनीक को पहुंचाया जाता है, जिसे बनाने में लागत लगती है। हम दो-चार किसानों को दे सकते हैं, इसलिए वाराणसी की एक कंपनी किसानों तक ये तकनीक पहुंचाएगी, कंपनी को हमने तीन दिन की ट्रेनिंग दी है, कि उसमें क्या केमिकल प्रयोग किया जाता है। कंपनी प्रदेश सरकार, कृषि विज्ञान केंद्र या फिर एग्री जंक्शन के जरिए किसानों को ये तकनीक उपलब्ध कराएगी।