लखनऊ। बढ़ती महंगाई से खेती-किसानी में फसल की लागत दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। जिससे किसान परेशान होकर खेती से दूर भागता जा रहा है। लेकिन वहीं कुछ सफल किसान हैं जो कुछ देसी तरीकों से बाजार की लागत लगातर कम कर रहे हैं।
वो किसान जो जैविक खेती करते हैं या जीरो बजट प्राकृतिक खेती करते हैं। ये किसान घर पर ही देसी तरीकों से खाद और कीटनाशक दवाइयां तैयार कर लेते हैं जिसमें नाम मात्र की लागत आती है। इन तरीकों को अपनाकर ये किसान न सिर्फ शुद्ध अनाज का उत्पादन कर रहे हैं बल्कि अपनी खेती की लागत आधे तक कम कर रहे हैं। इससे इनकी मिट्टी उपजाऊ हो रही है और इनका खानपान बेहतर हो रहा है।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों से हुई बातचीत पर आधारित ये कुछ देसी तरीके हैं जिसे किसान अपनाकर बाजार से अपनी लागत और निर्भरता कम कर सकते हैं। इससे किसानों की न सिर्फ लागत घटेगी बल्कि स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा ।
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एक देसी गाय का खेती में महत्व
अगर किसान एक देसी गाय का पालन करता है तो उसे पूरे साल बाजार से खाद खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। देसी गाय के एक ग्राम गोबर में 300-500 करोड़ सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं। जो खेत की मिट्टी के लिए बहुत जरूरी है। एक गाय के गोबर और गोमूत्र से कई खादें और कीटनाशक बनाकर 30 एकड़ खेती आसानी से की जा सकती है।
केंचुओं का खेती में उपयोग
केंचुए दिन रात हमारे खेतों में करोड़ों छेद करके भूमि के नीचे के पोषक तत्वों को पौधे की जड़ तक लाकर भूमि को उपजाऊ और मिट्टी को मुलायम बनाते हैं। इन छेदों में बारिश का पानी इकट्ठा होता है और हवा का संचार होता है। रासायनिक खाद और जहरीले कीटनाशक के अंधाधुंध उपयोग से ये केंचुए खेत से समाप्त हो गये हैं। इन केंचुओं को वापस लाने के लिए किसान को अपने खेत में जैविक खाद डालनी होगी, जिससे केंचुआ वापस आ सकें और मिट्टी को उपजाऊ बना सकें।
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देसी तरीके से ऐसे करें बीज शोधन
अगर किसान बीज बुवाई से पहले बीज शोधन कर लें तो उनकी फसल में कीट-पतंग नहीं लगते और बीज का जमाव सौ प्रतिशत होता है। पांच किलो देसी गाय का गोबर, पांच लीटर गोमूत्र, 50 ग्राम बुझा हुआ चूना, एक मुट्ठी खेत की मिट्टी इन सभी चीजों को 20 लीटर पानी में मिलकर 24 घंटे मिलकर रख दें। इस घोल को दिन में दो बार लकड़ी से चला दें। इसे बीजामृत कहते हैं, ये बीजामृत 100 किलो बीज के उपचार के लिए पर्याप्त है। बीज को इसमें भिगोकर छांव में सुखाएं इसके बाद बुवाई करें। बीज शोधन के लिए जरूरी है बीज देसी और अच्छी गुणवत्ता वाला हो।
पंचगव्य के उपयोग से खेत में नहीं लगेंगे कीट-पतंग
पांच किलो गोबर, 500 ग्राम देसी घी को मिलाकर मटके में भरकर कपड़े से ढक दें। इसे सुबह-शाम चार दिन लगातार हिलाना है। जब गोबर में घी की खुशबू आने लगे तो तीन लीटर गोमूत्र, दो लीटर गाय का दूध, दो लीटर दही, तीन लीटर गुड़ का पानी, 12 पके हुए केले पीसकर सभी को आपस में मिला दें। इस मिश्रण को 15 दिन तक 10 मिनट तक रोज हिलाएं। एक लीटर पंचगव्य के साथ 50 लीटर पानी मिलाकर एक एकड़ खेत में उपयोग करें। यह मिश्रण छह महीने तक खराब नहीं होगा। इसके उपयोग से फसल की उपज और गुणवत्ता बढ़ती है, कीट-पतंग का खतरा कम रहता है।
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जीवामृत के उपयोग से बढ़ेगी अनाज की गुणवत्ता
एक ग्राम जीवामृत में लगभग 700 करोड़ से अधिक सूक्ष्म जीवाणु होते हैं। ये पेड़-पौधों के लिए कच्चे पोषक तत्वों से भोजन तैयार करते हैं। इसे तैयार करने के लिए 10 किलो गोबर, 5-10 लीटर गोमूत्र, दो किलो गुड़ या फलों के गूदों की चटनी, एक से दो किलो किसी भी दाल का बेसन, बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की 100 ग्राम मिट्टी इस सभी चीजों को 200 लीटर पानी में एक ड्रम में भरकर जूट की बोरी से ढककर छाया में 48 घंटे के लिए में रख देते हैं।
रोज सुबह-शाम डंडे से घड़ी की सुई की दिशा में मिश्रण को घोलें। इतना जीवामृत एक एकड़ भूमि के लिए पर्याप्त हैं। यह घोल सात दिन के लिए ही उपयोगी होता है। इसे सिंचाई के माध्यम से खेतों में पहुंचा सकते हैं। जीवामृत एक अत्यधिक प्रभावशाली जैविक खाद है जो पौधों की वृद्धि और विकास में उपयोगी है। इससे जमीन की उत्पादन क्षमता बढ़ती है, फसल में रोग नहीं लगते हैं।
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घन जीवामृत के उपयोग से खेत में बढ़ती है उत्पादन क्षमता
घन जीवामृत एक सूखी खाद है जिसे बुवाई के समय या पाने देने के तीन दिन बाद दे सकते हैं। इसे बनाने के लिए 100 किलो गोबर, एक किलो गुड़, एक किलो किसी भी गाय का बेसन, 100 ग्राम खेत की जीवाणुयुक्त मिट्टी, पांच लीटर गोमूत्र इन सभी चीजों को फावड़ा से अच्छे से मिला लें। इस खाद को 48 घंटे छांव में फैलाकर जूट की बोरी से ढक दें। इस खाद का छह महीने तक उपयोग किया जा सकता है। एक एकड़ जमीन में एक कुंतल घन जीवामृत देना जरूरी है। इसका उपयोग करने से खेत की मिट्टी उपजाऊ होगी, जिससे उपज ज्यादा होगी।
आच्छादन (मल्चिंग)
भूमि को ढककर (आच्छादन कर) इसकी नमी को संरक्षित करना चाहिए जिससे देसी केंचुवे और सूक्ष्म जीवाणुओं के कार्य करने के लिए जरूरी ‘सूक्ष्म पर्यावरण’ उपलब्ध हो सके।’सूक्ष्म पर्यावरण’ का मतलब है कि पौधे के बीच हवा का तापमान 25-32 डिग्री, नमी 65-72 प्रतिशत एवम भूमि की सतह पर अंधेरा हो। जब भूमि को फसल अवशेष से या किसी दूसरे तरीके से आच्छादन करते हैं तो सूक्ष्म पर्यावरण का तेजी से निर्माण होने लगता है।
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ऐसे करें पानी की बचत, कम लागत में ज्यादा पैदावार
बेड व नाली व्यवस्था अपनाकर खेत में पानी की बचत की जा सकती है और मल्टीलेयर फॉर्मिंग (बहुउद्देशीय खेती) से लागत कम करके ज्यादा उपज ली जा सकती है। एक साथ अगर हम कई फसलें लगाते हैं तो लागत एक ही बार देनी पड़ती है, उत्पादन कई फसलों का एक साथ होता है।
पौधों की जड़े सीधे पानी नहीं लेती हैं बल्कि ये मिट्टी के कणों के बीच 50 प्रतिशत हवा और 50 प्रतिशत वाष्प के द्वारा लेती हैं। सतह से ऊँचे तैयार किए गये बेड फसलों को नालियों द्वारा पौधों को आवश्यक सिंचाई और वाष्प के रूप में उपलब्ध कराने से पानी की बचत होती है। कई फसलें और फसल चक्र अपनाने से भूमि को नाइट्रोजन अपनेआप ही मिल जाता है।
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ऐसे करें फसल सुरक्षा
जरूरत पड़ने पर कीट-पतंग को रोकने के लिए गोबर, गोमूत्र, छाछ और पत्तियों से तैयार नीमास्त्र, पंचवर्णीय, षष्टवर्णीय, दसवर्णीय अर्क तैयार करके फसल के कीट-पतंगों को रोका जा सकता है। इसे बनाने के लिए दो किलो नीम की पत्ती, दो किलो धतूरे की पत्ती, तीन किलो मदार के पत्ते, दो किलो बेल पत्र, शरीफा के पत्ते लेकर इन सबको पीस लें।
20 किलो गोमूत्र में इसे उबालें, उबालते समय इसमें आधा किलो तम्बाकू एक किलो लाल पिसी लाल मिर्च भी डाल दें। एक या दो उबाल आने के बाद इसे उतार लें और ठंडा होने के बाद छान लें। ये कई महीने तक खराब नहीं होता है इसलिए इसे किसी बर्तन में भरकर रख दें। इसमें 20 गुना पानी मिलाकर एक एकड़ खेत में छिड़काव कर सकते हैं। अगर कोई पत्ती न मिले तो जितनी भी पत्ती मिले उसे ही पीसकर मिला दें।
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पांच पत्ती काढ़ा बनाने की विधी
किसी भी फसल में अगर कीट-पतंग लगने की शुरूवात हो गयी है तो पहली खुराक के रूप में पांच पत्ती का काढ़ा बनाकर छिड़काव किया जाता है। पांच प्रकार के पत्ते जिसमें नीम, आक, धतूरा, बेसरम, सीताफल की पत्तियों को पांच लीटर देसी गाय के गोमूत्र में भरकर मिट्टी के बर्तन में रख दें। इसे छानकर 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ फसल में इसका छिड़काव करने से फसल में कीट-पतंग नहीं लगेंगे।
लहसुन आधारित जैविक कीटनाशक
लहसुन, अदरक, हींग का छिड़काव करने से कीटपतंग मरते नहीं हैं। इसके छिड़काव के बाद इसकी गंध से फसल में कीट पतंग लगते नहीं हैं।
फफूंदनाशक दवा
खट्टी छाछ में दो दिन के लिए एक तांबे का टुकड़ा डालकर रखा रहने दें, दो दिन बाद इस छाछ की आधा लीटर मात्रा को 15 लीटर पानी में खूब अच्छी तरह मिलाकर फसल में छिड़काव करें। इससे फसल में फफूंदनाशक नहीं लगेगी।
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फसल को वायरस से ऐसे बचाएं
पौधों को वायरस के संक्रमण से बचाने के लिए पूरे फसल चक्र में तीन बार एक लीटर देशी गाय के दूध में 15 लीटर पानी, 50 ग्राम हल्दी प्रति टंकी के हिसाब से स्प्रे करें। इसके अलावा पानी में हींग, हल्दी मिलकर फसल की जड़ों में ड्रिन्चिग करने से वायरस नहीं लगेगा।
फेरोमेन ट्रैप और स्ट्रिकी ट्रैप से फसल में नहीं लगते कीट पतंग
प्रभावी कीट नियंत्रण के लिए स्वनिर्मित लाईट ट्रैप, फेरोमेन ट्रैप और स्ट्रिकी ट्रैप का उपयोग करने से फसल में कीट नहीं आते हैं। फेरोमेन ट्रैप में मादा का लेप करने से इसकी गंध से कीट मर जाते हैं। एक एकड़ में 10 फेरोमेन ट्रैप या फिर 10 पीले रंग के स्ट्रिकी ट्रैप में गिरीस का लेप लगाने से कीट उसी स्ट्रिकी ट्रैप में चिपक जायेंगे।