हम सभी जानते हैं भारत में डायबिटीज रोग तेज़ी से पैर पसार रहा है, शायद ही कोई घर हो जिसमे शुगर के रोगी न हो। डायबिटिक से क्या क्या नुकसान हो रहे है यह बताने की ज़रूरत नहीं है।
हाल ही में एक मेडिकल जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार शलजम का किसी भी रूप में प्रयोग करने से डायबिटीज जैसे रोग भी नियंत्रित होते हैं।
शलजम में क्वेरसेटिन, इंडोल, एल्कलॉइड आदि जैसे कई तत्व पाए जाते हैं। ये तत्व उच्च रक्त शर्करा के स्तर को कम करके शलजम की मधुमेह रोधी गुण के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। हालांकि, आपको नियमित रूप से अपने शुगर के स्तर की जाँच करते रहनी चाहिए और उच्च शुगर के मामले में चिकित्सा सलाह लेनी चाहिए।
शलजम बहुत ही कम समय में तैयार हो जाती है, जिससे किसान भाई एक सीजन में एक से अधिक फसल ले सकते हैं। शुगर के रोगियों के लिए फायदेमंद होने की वजह से अचानक इसकी माँग बढ़ गई है। इसकी खेती करके किसान कम समय में अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
शलजम जड़ वाली सब्जी है, जिसकी खेती सर्दी में की जाती है। ये गोल, लम्बी सफेद या बैंगनी जड़ों के रूप में दुनिया भर के कई आहारों में प्रमुख हैं। शलजम को उगाना अपेक्षाकृत आसान है और यह विभिन्न प्रकार की जलवायु के लिए सही है।
शलजम की इन किस्मों की कर सकते हैं खेती
शलजम की खेती करने से पहले, उपलब्ध शलजम की विभिन्न किस्मों को जानना ज़रूरी है।
मानक शलजम: ये पारंपरिक शलजम हैं जो आमतौर पर उनकी खाद्य जड़ों के लिए उगाए जाते हैं।
बेबी शलजम: इन्हें छोटे होने पर काटा जाता है, जिससे ये छोटे और अधिक कोमल होते हैं।
पर्पल-टॉप शलजम: अपने विशिष्ट बैंगनी शीर्ष और सफेद जड़ों के लिए जाना जाता है।
गोल्डन शलजम: इनका गूदा पीला या नारंगी होता है और ये थोड़े मीठे होते हैं।
जापानी शलजम: इनका स्वाद हल्का, मीठा होता है और इन्हें अक्सर सलाद में कच्चा खाया जाता है।
चारा शलजम: ये मुख्य रूप से पशुओं के चारे के लिए उगाए जाते हैं।
किस मिट्टी में कर सकते हैं शलजम की खेती
शलजम को विभिन्न जलवायु में आसानी से उगाया जा सकता है, लेकिन ठंडे मौसम में ये अच्छे से पनपते हैं। शलजम के लिए 10°C से 24°C के बीच का तापमान सबसे सही है।
अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ मिट्टी इसके लिए आदर्श होती है। शलजम एक विस्तृत पीएच रेंज को सहन कर सकता है लेकिन तटस्थ मिट्टी की तुलना में थोड़ी अम्लीय मिट्टी को पसंद करते हैं। शलजम को प्रतिदिन कम से कम 6 घंटे सूरज की रोशनी की आवश्यकता होती है।
ऐसे करें खेती की तैयारी
रोपण क्षेत्र से खरपतवार और मलबे को साफ करें। मिट्टी को लगभग 6-8 इंच की गहराई तक जुताई करें। मिट्टी की उर्वरता में सुधार के लिए खाद जैसे कार्बनिक पदार्थ को शामिल करें।
बुवाई का सही तरीका
शलजम के बीज सीधे तैयार मिट्टी में बोयें। गहराई लगभग 1/4 इंच से 1/2 इंच होनी चाहिए। 12-18 इंच की पंक्तियों में बीज को लगभग 2 इंच की दूरी पर रखें।
सिंचाई कब करें
मिट्टी को लगातार नम रखें लेकिन जलभराव न होने दें। शलजम को कड़वा होने से बचाने के लिए सूखे के दौरान पानी देना महत्वपूर्ण है।
बुआई करते समय या मिट्टी परीक्षण के निर्देशानुसार संतुलित उर्वरक का उपयोग करें। अतिरिक्त नाइट्रोजन से बचें, क्योंकि इससे पत्ते हरे-भरे और जड़ें छोटी हो सकती हैं।
एफिड्स, बीटल और पत्ता गोभी कीड़े जैसे सामान्य कीटों की निगरानी करें। क्लब रूट जैसी बीमारियों के खतरे को कम करने के लिए फसल चक्र अपनाएँ।
मानक शलजम आम तौर पर 30-60 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं, जबकि छोटे शलजम की कटाई पहले की जा सकती है। जब वे वांछित आकार (आमतौर पर 2-3 इंच व्यास) तक पहुँच जाएँ तो उन्हें ज़मीन से खींच लें।
भंडारण: काटी गई शलजम को ठंडी, नमी वाली जगह पर रखें। अगर सही तरीके से संग्रहित किया जाए तो ये कई महीनों तक चल सकते हैं।
प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह, सह निदेशक, अनुसंधान, विभागाध्यक्ष,पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना , डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर बिहार