ओडिशा के पहाड़ी इलाकों में स्ट्रॉबेरी उगा रहे हैं आदिवासी किसान

कोरापुट और नुआपड़ा जिलों के आदिवासी किसानों ने जिला प्रशासन के सहयोग से स्ट्रॉबेरी की खेती की शुरुआत की थी। आज वो सब प्रति एकड़ 6 लाख रुपये तक का मुनाफा कमा रहे हैं।
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कोरापुट और नुआपड़ा के पहाड़ी इलाकों में दूर-दूर तक जहां भी नजर जाएगी, चमकीले लाल रंग से सजे खेत नजर आएंगे। ये लाल निशान और कुछ नहीं बल्कि स्ट्रॉबेरी के खेत हैं। स्ट्रॉबेरी की खेती ओडिशा के इन आदिवासी बहुल जिलों की सुरम्य पहाड़ियों में रहने वाले 40 आदिवासी परिवारों के जीवन को बदल रही है।

स्ट्रॉबेरी की खेती करने के लिए आदिवासियों को राज्य सरकार की तरफ से खासा प्रोत्साहन दिया गया है। उन्हें न सिर्फ आर्थिक और तकनीकी सहायता दी गई बल्कि इसे आमदनी का एक जरिया बनाने के लिए स्ट्रॉबेरी उगाने का प्रशिक्षण भी दिया गया है।

कोरापुट जिले के जानीगुडा, गलीगादुर, फतुसिनेर और डोलियांबा गाँवों से कुटिया कोंध जनजाति की तीस महिला किसान और नुआपड़ा जिले के झुनापानी, सोनाबाहिली, कुतुराबेरा, सलेपाड़ा, चिनमुंडी और सुनाबेड़ा गाँवों से चुक्टिया भुंजिया जनजाति के दस किसान स्ट्रॉबेरी की खेती में सक्रिय रूप से शामिल हैं। चुक्टिया भुंजिया विशेष रूप से एक कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) है, जो सबसे कमजोर जनजातीय समूहों में से एक है।

साल 2021 में नुआपाड़ा जिले के सुनाबेड़ा ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले दो गाँवों ने भी दस एकड़ से ज्यादा जमीन पर स्ट्रॉबेरी उगाना शुरू कर दिया था।

साल 2021 में नुआपाड़ा जिले के सुनाबेड़ा ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले दो गाँवों ने भी दस एकड़ से ज्यादा जमीन पर स्ट्रॉबेरी उगाना शुरू कर दिया था।

एक साल पहले 2021 में इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट एजेंसी(ITDA),ने कोरापुट जिले के चार गाँवों की 30 आदिवासी महिलाओं को पहली बार जिले के डोलियांबा गाँव में पांच एकड़ जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती करने में मदद की थी। ये महिलाएं तीन स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी)-माँ सुभद्रा, माँ तारिणी और माँ बरुआ- से जुड़ी हुईं थीं। आज ये आदिवासी महिलाएं सफल स्ट्रॉबेरी किसान हैं।

इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट एजेंसी, कोरापुट के प्रोजेक्ट एडमिनिस्ट्रेटर कारू सोरेन ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हमने कोरापुट जिले के जानीगुडा, गलीगादुर, डोलियांबा और फतुसिनेरी गांवों की 30 महिला किसानों को मुफ्त में स्ट्रॉबेरी के पौधे मुहैया कराए. उन्होंने 20 एकड़ जमीन पर स्ट्रॉबेरी उगाने से शुरुआत की थी।”

उसी साल 2021 में नुआपाड़ा जिले के सुनाबेड़ा ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले दो गाँवों ने भी दस एकड़ से ज्यादा जमीन पर स्ट्रॉबेरी उगाना शुरू कर दिया था।

चुक्टिया भुंजिया विकास एजेंसी (CBDA), नुआपाड़ा के विशेष अधिकारी हिमांशु कुमार महापात्रा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हमने दस एकड़ से ज्यादा जमीन पर स्ट्रॉबेरी उगाने के लिए दस आदिवासी परिवारों को पौधे और अन्य कई तरह की सहायता मुहैया कराई थी.” CBDA की स्थापना राज्य सरकार ने 1994 में चुक्टिया भुंजिया पीवीटीजी के कल्याण को ध्यान में रखते हुए की थी।

नुआपाड़ा जिले के सोनाबाहिली गाँव के आदिवासी किसान बिजय झंकारा ने गाँव कनेक्शन को बताया “स्ट्रॉबेरी उगाने के लिए हमें सीबीडीए से आर्थिक मदद और समर्थन मिला। हमने अक्टूबर 2021 में पहली बार स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की और एक एकड़ जमीन से छह लाख रुपये का मुनाफा कमाया।”

कोरापुट और नुआपाड़ा जिले समुद्र तल से लगभग 3,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित हैं और वहां का ठंडा मौसम स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए उपयुक्त है।

चुक्टिया भुंजिया विकास एजेंसी के महापात्र ने कहा, “नुआपाड़ा, कोमना, सिनापाली, खरियार और जिले के स्थानीय बाजारों और अन्य जगहों पर स्ट्रॉबेरी लगभग 400 रुपये प्रति किलो बिकती है और किसानों को लगभग 5 से 6 लाख रुपये प्रति एकड़ का मुनाफा हो जाता है।”

उनके अनुसार, जिला प्रशासन ने सुनाबेड़ा नेचुरल्स प्रोड्यूसर ग्रुप के साथ मिलकर चुक्टिया भुंजिया पीवीटीजी परिवारों की भी मदद की है। यह ग्रुप ‘सुनाबेड़ा स्ट्रॉबेरी’ ब्रांड के तहत स्ट्रॉबेरी की मार्केटिंग करता है।

कोरापुट जिले के गाँवों की स्ट्रॉबेरी को कोटिया स्ट्रॉबेरी के नाम से बेचा जाता है।

महापात्र ने कहा कि सर्दियों के इस मौसम में किसानों को मिलने वाली बढ़िया कीमतों के चलते राज्य सरकार अगले सीजन तक स्ट्रॉबेरी की खेती का रकबा 60 एकड़ तक बढ़ाने की योजना बना रही है। उन्होंने कहा कि प्रशासन किसानों को कटक, भुवनेश्वर और राज्य के अन्य कस्बों और शहरों में अपनी फसल को बेचने के लिए तैयार कर रहा है।

महापात्रा ने कहा, ‘यहां उगाई जाने वाली स्ट्रॉबेरी पहले से ही खबरें बना रही हैं और कई खरीदार थोक खरीद में रुचि दिखा रहे हैं।’

 उन्हें न सिर्फ आर्थिक और तकनीकी सहायता दी गई बल्कि इसे आमदनी का एक जरिया बनाने के लिए स्ट्रॉबेरी उगाने का प्रशिक्षण भी दिया गया है।

 उन्हें न सिर्फ आर्थिक और तकनीकी सहायता दी गई बल्कि इसे आमदनी का एक जरिया बनाने के लिए स्ट्रॉबेरी उगाने का प्रशिक्षण भी दिया गया है।

आईटीडीए के अधिकारी सोरेन के अनुसार, महाराष्ट्र के महाबलेश्वर में एक सरकारी फार्म से स्ट्रॉबेरी के पौधे की ‘विंटर डॉन’ किस्म खरीदी गई थी। एक पौध की कीमत 30 रुपये है और एक किसान को एक एकड़ भूमि के लिए लगभग 11,000 पौधे चाहिए होते हैं।

सोरेन ने कहा, “आईटीडीए ने एक एकड़ जमीन पर स्ट्रॉबेरी उगाने के लिए लगभग 6 लाख रुपये खर्च किए और किसानों ने उस एक एकड़ से 6 लाख रुपये तक का मुनाफा कमाया।” औसतन, स्ट्रॉबेरी को कटाई के लिए तैयार होने में लगभग 45 दिन लगते हैं।

इस सब की शुरुआत करने से पहले किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती से होने वाले फायदों के बारे में बताया गया था। उन्हें खेती करने के तरीके की सही जानकारी देने के लिए कई प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए गए और उन्हें पूरक सहायता दी गई, मसलन उन्हें बाजारों से जोड़ना, सिंचाई में मदद करना आदि। एक अधिकारी ने बताया, “हम उन्हें पौधे मुहैया कराते हैं और उन्हें सही तरीके से पौधे लगाने के लिए ट्रेनिंग भी देते हैं। बागवानी विभाग के अधिकारी भी किसानों को अपनी जमीन पर स्ट्रॉबेरी उगाने में मदद करते हैं।”

कोरापुट जिले के डोलियांबा गाँव की एक महिला आदिवासी किसान माता गोमंगा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “ITDA के अधिकारियों ने हमें स्ट्रॉबेरी उगाने के फायदों के बारे में बताया था. उसके बाद हमने उन्हें अपने गाँव में उगाने का प्रयास करने का फैसला लिया था. इसके लिए हमें उनकी तरफ से आर्थिक सहायता भी दी गई थी।”

उन्होंने आगे कहा, “हमारे समूह (एसएचजी) माँ बरुना ने 2021 में एक एकड़ स्ट्रॉबेरी से लगभग पांच लाख रुपये कमाए थे।”

सोरेन के अनुसार, अक्टूबर 2022 के अंतिम सप्ताह में पौध लगाई गई थी और दिसंबर, 2022 में एक एकड़ जमीन से लगभग 100 क्विंटल स्ट्रॉबेरी काटी गई. स्ट्राबेरी की कटाई के बाद आदिवासी किसान अपने खेतों में मिर्च, बैंगन, टमाटर और अन्य मौसमी सब्जियां उगाते हैं।

फिलहाल कोरापुट में 20 एकड़ और नुआपाड़ा जिले में 10 एकड़ में कटाई का काम चल रहा है। महापात्रा ने बताया, ‘कुछ जगहों पर मार्च 2023 तक फसलें उपज दे देंगी।”

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