नाम के लिए है मुफ़्त बिजली की घोषणाएं, हक़ीक़त में बिजली आती ही नहीं

बिजली सप्लाई का अनिश्चित होना, जब चाहे तब आना जब चाहे ना आना सामान्य घटना बन चुकी है। लेकिन गाँव में खैरात की बिजली या मुफ़्त बिजली की आदत भी शायद जटिल समस्या है। क्योंकि इस तरह की आदत बढ़ने से ही गाँव में कटिया लगाओ काम चलाओं प्रचलित है।

गाँव में बिजली की हालत यह है कि कभी दिन भर कभी रात भर और कभी दिन और रात दोनों में बिजली आती ही नहीं है। जिनके पास सोलर की सुविधा है उन्हें कुछ घंटे के लिए राहत मिल जाती है। बाकी अंधेरे में या पुराने जमाने के रोशनी के तरीकों में गुजारा करते हैं। ऐसा नहीं है कि बिजली का मीटर काम नहीं करता, बिजली का बिल अंतिम तारीख के 1 दिन पहले या दो दिन पहले आता है और उसके बाद तगड़ा टेलीफोन और विच्छेदन की धमकी शुरू हो जाती है। यह मैं मुफ्त बिजली की बातें नहीं कर रहा हूँ बल्कि जो पूरा पैसा देकर और बराबर बिल का भुगतान करके बिजली का उपयोग करना चाहते हैं उनकी बात कर रहा हूँ। 24 घंटे बिजली सप्लाई का दम भरने वाला बिजली विभाग फोन करने पर उत्तर भी नहीं दे पाता। वह फोन उठाते ही नहीं, शिकायत करें भी तो किसे करें। जब वास्तविक उपभोक्ता को बिजली नहीं मिल पा रही है तो खैरात की बिजली कहाँ से आएगी? यह दम भरने वाले लोग ही जाने मगर उपभोक्ता तो परेशानी का सामना बराबर कर रहा है। जब बिजली सप्लाई बंद हो जाती है तो सोलर की बैटरियां या इनवर्टर कुछ भी चार्ज नहीं हो पाता है। नतीजा है वैकल्पिक स्रोतों से भी काम नहीं बनता है।

सोलर पावर बिजली का एक अच्छा विकल्प हो सकता है और कहीं-कहीं पर है भी, लेकिन अधिकांश रूप में ग्रामीण इलाकों में संयंत्रों का रखरखाव कठिन हो जाता है। सोलर पैनल में तो अधिक रखरखाव की आवश्यकता नहीं पड़ती, लेकिन इनवर्टर और उसकी बैटरी में एक कठिनाई ज़रूर आती है। आवश्यकता इस बात की है कि हर तहसील स्तर पर कम से कम एक ऐसा स्थान उपलब्ध हो जहाँ पर टेक्नीशियन आसानी से मिल जाए और समस्या का समाधान हो जाए। कठिनाई वहाँ पर भी आती रहती है जब बिजली नहीं आती, तो सोलर बैटरी भी चार्ज नहीं हो पाती और तब उसका सही उपयोग नहीं हो पाता है। सोलर के अलावा एक और अच्छा स्रोत हो सकता है विंड पावर का, लेकिन पता नहीं क्यों वह सफल नहीं हुआ। हालाँकि उस पर काम भी हुआ था और गाँव में कहीं-कहीं पर विंडमिल लगाए भी गए थे। दूसरे तमाम देशों में जैसे नॉर्वे, स्वीडन में विंड पावर का पूरा लाभ उठाया जाता है। हमारे देश में जहाँ पर सूरज हमेशा उपलब्ध है उसकी ऊर्जा आसानी से उपलब्ध है उसमें सोलर पावर पर ही अधिक काम होना चाहिए। तमाम लोग सोलर पावर को स्विच करना चाहते हैं लेकिन इसमें कोई जिम्मेदार व्यवस्था नहीं जहाँ से संयंत्र खरीदा जाए और आफ्टर सेल इसका मेंटेनेंस भी होता रहे। यह एक प्रैक्टिकल समस्या है।

बिजली सप्लाई का अनिश्चित होना, जब चाहे तब आना जब चाहे ना आना यह तो सामान्य घटना बन चुकी है। लेकिन गाँव में खैरात की बिजली या मुफ़्त बिजली की आदत भी शायद जटिल समस्या है। क्योंकि इस तरह की आदत बढ़ने से ही गाँव में कटिया लगाओ काम चलाओं प्रचलित है। अफसोस है, पर नियंत्रण के लिए कुछ किया भी नहीं जा रहा है। अगर सप्लाई के स्तर से कुछ ऐसी व्यवस्था हो जिससे कटिया ना लगाई जा सके और यह संभावना समाप्त हो जाए तो शायद ये आदत छूट जाए। गाँव में जब बिजली आती है तो सभी घरों में आती है, लेकिन उनमें से कितने घरों में मीटर लगा है इसकी ना जाँच होती है ना पड़ताल और ना शायद बिजली कर्मचारियों को कोई चिंता है इस बात की। अगर बिजली कर्मचारियों के साथ उपभोक्ता का कोई रिश्ता बना हुआ है तो मैं कुछ कह नहीं सकता।

मुझे वह जमाना याद है जब कोयले से बिजली बनाई जाती थी उसे पत्थर कोयला कहते थे। क्योंकि वह ज़मीन के अंदर खुदाई करके निकाला जाता था। लेकिन उससे थर्मल पावर की प्रक्रिया में जो कार्बन डाइऑक्साइड पैदा होती थी वह वातावरण को ख़राब करती थी। उसके बदले डीजल से बिजली बनाने का क्रम आरंभ हुआ। वायु प्रदूषण तो घटा  लेकिन डीजल पर दबाव बढ़ा और उसके दाम भी बढे। अब जो कार्बन डाइऑक्साइड बनती थी अगर उसका कुछ उपयोग हो सकता तो सही होता। कोयला के भंडार तो आज भी बेतहाशा हमारे देश में मौजूद हैं और उनका प्रयोग करके विविध संयंत्रों में इस्तेमाल हो सकता है। जो भी हो, विद्युत उत्पादन का वितरण और उसका उपयोग यह एक लंबी प्रक्रिया है उसको नियंत्रित करने के लिए सजग और सतर्क कर्मचारियों की आवश्यकता है, लेकिन वह तो मीटर रीडिंग के लिए ही नहीं पहुंचते हैं और बिल पहुँच जाता है। उसके साथ न केवल अंतिम तारीख़ बता दी जाती है बल्कि विच्छेदन की तारीख़ भी बताई जाती है। जो लोग नियमित रूप से बिल का भुगतान करना चाहते हैं करते रहते हैं, उन्हें चिंता तो होती है लेकिन बाकी मैं नहीं जानता कितने लोगों का ईमानदारी के साथ विच्छेदन हो जाता है। इसकी अचानक निगरानी हो केवल दिन में नहीं, रात के समय भी तो गाँव पहुँची निगरानी टीम सच्चाई जान सकती है।

भारत के परिप्रेक्ष्य में विद्युत उत्पादन प्रबंधन खर्चा आज के बीच में संतुलन बनाए रखना आसान नहीं है। आबादी बढ़ती जाएगी विद्युत की खपत भी बढ़ती रहेगी। उत्पादन की अपनी सीमाएं हैं इसलिए एकमात्र साधन है स्वच्छ ऊर्जा के लिए वैकल्पिक साधनों को खोजना और उपयोग में लाना। वैकल्पिक स्रोतों में स्वाभाविक है सबसे टिकाऊ और शायद सस्ता भी सौर ऊर्जा है लेकिन सौर ऊर्जा का उपयोग दुनिया के तमाम देश जिस खूबी से कर रहे हैं हम उसे नहीं कर पा रहे हैं। ऐसा नहीं कि हमारे देश में लोग सौर ऊर्जा में जाने से कतराते हो लेकिन कठिनाई यह है कि सौर ऊर्जा लागू करने के पहले समुचित व्यवस्था नहीं की गई है,और यही कारण है कि सौर संयंत्र मुफ़्त में दिए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है, लेकिन उनके रखरखाव के लिए कोई टेक्नीशियन ढूंढे नहीं मिलता।

जहाँ तक शिल्प विज्ञान या टेक्निकल एजुकेशन का सवाल है वहाँ सौर ऊर्जा के आधिकारिक टेक्नीशियन तैयार किए जाने चाहिए ताकि जिस तरह मोटर मैकेनिक गली-गली मिल जाते हैं इस प्रकार सौर ऊर्जा और बिजली के कारीगर आसानी से मिल जाए। विशेष कर ग्रामीण क्षेत्रों में तो बहुत ही अभाव है और इसलिए गाँव का आदमी बेसहारा महसूस करता है। एक बार पैसा लगाना और पैनल लगवाना इनवर्टर लगवा देना यह कोई मुश्किल काम नहीं है, बहुत से लोग कर सकते हैं।  अगर घरेलू उपयोग के लिए नहीं और जहाँ पर स्थाई ऊर्जा की अत्यधिक आवश्यकता है वहाँ पर इन बातों का ध्यान देना ही चाहिए और स्थाई ऊर्जा के स्रोत विशेष कर सौर ऊर्जा पर आधिकारिक जोर देने की आवश्यकता है। खाली भाषण बाजी से काम नहीं चलेगा। जिन लोगों ने सौर ऊर्जा का उपयोग किया है या कर रहे हैं उनका अध्ययन होना चाहिए। उनकी तकलीफों का ज्ञान होना चाहिए और उसका निराकरण भी होना चाहिए तभी हम कुछ उम्मीद कर सकते हैं अन्यथा अंधकार तो आना ही है।

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