देश में बढ़ रहा है समुद्री शैवाल की खेती का क्षेत्रफल, आप भी कर सकते हैं शुरु

देश में समुद्री शैवाल (सीवीड) के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कई योजनाएँ चल रहीं हैं। ऐसे में जानना ज़रूरी है कि सीवीड है क्या और किसमें इसका इस्तेमाल होता है।
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बढ़ती आबादी के लिए पौष्टिक खाने का उत्पादन करने के लिए समुद्री शैवाल की खेती को बेहतर माना जाता है। स्थलीय फसलों के उलट, समुद्री शैवाल को उर्वरक, कीटनाशकों, मीठे पानी या ज़मीन की जरूरत नहीं होती है, और यह तेजी से बढ़ता है। कुछ समुद्री शैवाल छह सप्ताह से भी कम समय में कटाई के लिए तैयार हो सकते हैं।

पच्चीस जुलाई को राज्यसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह ने बताया है कि इस समय तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप जैसे राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में समुद्री शैवाल की खेती की जाती है, जो लगभग 1354.79 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई है।

भारत में सीवीड के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए गुजरात के भावनगर में स्थित केंद्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान (CSMCRI) पिछले कई साल से काम कर रहा है। भारत में लगभग 8,118 किमी समुद्र तटीय क्षेत्र है, जहाँ पर समुद्री शैवाल के उत्पादन की अपार संभावनाएँ हैं।

केंद्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अंकुर गोयल सीवीड के उत्पादन के महत्व को समझाते हैं, “समुद्री शैवाल बहुत तरीके के होते हैं, इनमें से कुछ पर देश में काम होता है, यहाँ संस्थान में भी इस पर काम हो रहा है; सारी की सारी लड़ाई ज़मीन की है, हमारे यहाँ जनसंख्या बढ़ती जा रही है, लेकिन ज़मीन तो उतनी ही है; भारत तीन तरफ से समुद्र से घिरा हुआ है, समुद्र के किनारे रहने वाले ज्यादातर परिवार मछुआरा समुदाय से आते हैं। मछुआरा समुदाय के लिए सीवीड उत्पादन कमाई का ज़रिया बन रहा है।”

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार, दुनिया भर में 2016 में लगभग 30.1 मिलियन टन सीवीड का उत्पादन हुआ था। इसमें से 95% उत्पादन खेती के जरिए और 5% उत्पादन प्राकृतिक तरीके से उगे समुद्री शैवाल से मिलता है। चीन, जापान, कोरिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया और वियतनाम जैसे प्रमुख सीवीड उत्पादक देश हैं।

डॉ. अंकुर गोयल शैवाल के उपयोग के बारे में कहते हैं, “कुछ सीवीड ऐसे हैं, जिनसे हमें बहुत से महत्वपूर्ण उत्पाद मिलते हैं, उदाहरण के लिए सीवीड से हमें बायो स्टीमुलेंट मिलता है जिसके उपयोग से फसलों में 16 से 40 प्रतिशत तक वृद्धि हो जाती है। आईसीएआर के रिसर्च इंस्टीट्यूट ने इस पर प्रयोग भी किया है। जिस तरह से ऑर्गेनिक खेती की बढ़ावा दिया जा रहा है, सीवीड से बने प्रोडक्ट ऑर्गेनिक खेती में मददगार बन सकते हैं।”

भारत में प्राकृतिक रूप से हरे शैवाल की 900, लाल शैवाल की 4,000 और भूरे शैवाल की 1,500 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से 221 तरह की प्रजातियों का प्रयोग उत्पाद बनाने में होता है, जिसमें 145 खाद्य उत्पाद और 110 का फ़ाके कोलोइड्स उत्पादन के लिए इस्तेमाल होता है।

“सीवीड के उत्पादन से गरीब मछुआरों को मदद मिलेगी, जैसे इसकी माँग बढ़ेगी, वैसे ही इसका दायरा भी बढ़ेगा; गुजरात और तमिलनाडु में इस पर काम हो रहा है, खासकर के तमिलनाडु में सीवीड से 10 से 14 हजार तक की आमदनी होने लगी है, इसका उत्पादन ज्यादातर महिलाएं ही करती हैं, क्योंकि पुरुष मछुआरे समुद्र में मछली पकड़ने चले जाते हैं, महिलाओं को आय का अलग ज़रिया मिल जाता है, “डॉ. अंकुर गोयल ने आगे कहा।

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) में अन्य बातों के साथ-साथ तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के संभावित स्थलों में समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा देने की परिकल्पना की गई है। इस योजना के ज़रिए तटीय क्षेत्रों में आजीविका और पारिवारिक आय बढ़ाने के लिए स्वयं सहायता समूहों/सहकारी समितियों के माध्यम से महिलाओं और युवाओं की समुद्री शैवाल की खेती में भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

पिछले चार साल में बढ़ा रकबा और उत्पादन

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने राज्यसभा बताया कि पिछले चार वर्षों (2020-21 से 2023-24) के दौरान, पीएमएमएसवाई के तहत विभाग ने महाराष्ट्र सहित तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 193.80 करोड़ रुपये की समुद्री शैवाल खेती परियोजनाओं को मंजूरी दी है। स्वीकृत परियोजनाओं में महाराष्ट्र में समुद्री शैवाल की खेती के लिए 1000 राफ्ट की स्थापना सहित 46,095 राफ्ट और 65,330 मोनोलाइन की स्थापना शामिल है।

महाराष्ट्र सरकार के मुताबिक स्वीकृत 1000 राफ्ट में से, रत्नागिरी जिले में 742 समुद्री शैवाल राफ्ट पहले ही स्थापित किए जा चुके हैं (6,678 वर्ग मीटर क्षेत्र को कवर करते हुए)।

पीएमएमएसवाई के तहत स्वीकृत अन्य परियोजनाओं में तमिलनाडु में 127.71 करोड़ रुपये की कुल लागत से एक बहुउद्देशीय समुद्री शैवाल पार्क की स्थापना और दादरा नगर हवेली और दमन और दीव में 1.20 करोड़ रुपये की कुल लागत से एक समुद्री शैवाल बीज बैंक की स्थापना शामिल है।

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