भारत में मानसूनी बारिश की शुरुआत दक्षिण पश्चिम मानसून के जरिए होती है। भारत मौसम विभाग (आईएमडी) की मानें तो इस साल भारत समेत दक्षिण एशिया में मानसून सीजन यानी जून से सितंबर के दौरान सामान्य से अधिक वर्षा होने का अनुमान है। सामान्य तौर पर भारत में केरल से 2 जून से मानसून की शुरुआत हो जाती है; जोकि पूरे देश में 30 सितंबर तक रहती है। इस बार अच्छी मानसूनी बरसात को देखते हुए किसान धान जैसी अधिक पानी वाली फसल उगा सकते हैं।
साउथ एशियन क्लाइमेट आउटलुक फोरम (एसएएससीओएफ) ने 2024 के मानसून के लिए जारी पूर्वानुमान में कहा है कि दक्षिण एशिया के उत्तरी, पूर्वी और उत्तर-पूर्वी हिस्सों के कुछ क्षेत्रों में सामान से कम वर्षा हो सकती है। इस दौरान अधिकतर क्षेत्रों में सामान्य से ऊपर तापमान रह सकता है। यह क्षेत्रीय जलवायु पूर्वानुमान दक्षिण एशिया के सभी नौ राष्ट्रीय मौसम विज्ञान और जल विज्ञान सेवाओं (एनएमएचएस) ने तैयार किया है। इसमें एसएएससीओए के अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की मदद ली गई है। फोरम ने कहा है कि वर्तमान में भारत में मध्यम अल नीनो की स्थितियां बनी हुई है। चार महीने के मानसून सीजन के पहले दो महीने यानी जून-जुलाई के दौरान अल नीनो की स्थिति तटस्थ बने रहने की उम्मीद है। उसके बाद के दो महीने यानी अगस्त-सितंबर के दौरान ला नीना की अनुकूल स्थिति बनने की पूरी संभावना है।
एलएएससीओएफ की रिपोर्ट आने से पहले ही भारत मौसम विज्ञान (आईएमडी) ने देश में पहले ही सामान्य से अधिक बारिश होने का पूर्वानुमान जता चुका है। पिछले महीने आईएमडी ने दक्षिण पश्चिम मानसून सीजन के लिए जारी अपने पूर्वानुमान में कहा था कि भारत में दीर्घकालिक औसत (एलपीए) का 106 फीसदी बारिश होगी। आईएमडी का कहना है कि चार महीने के मानसून सीजन के बाद के दो महीने अगस्त-सितंबर में अधिक वर्षा होगी, क्योंकि तब ला नीना की अनुकूल परिस्थितियाँ बनेगी। इस बार भारत में मानसून के सामान्य रहने के साथ अच्छी वर्षा होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
क्या है अल नीनो और ला नीना
भारतीय मौसम विज्ञान द्वारा भी भारत में 106% तक वर्षा होने की घोषणा की गई है, क्योंकि इस बार अल नीनो की जगह पर ला नीना का प्रभाव देखा जा रहा है। यह अल नीनो और ला नीना कैसे उत्पन्न होता है और यह क्या है इसके बारे में समझने की ज़रूरत है।
भारत के आम जनमानस और किसान अल नीनो व ला नीना के बारे में बहुत अधिक नहीं जानते हैं। सामान्य तौर पर अल नीनो दक्षिणी हवाओं से पैदा हुआ मौसम का एक चक्र है जिससे कि विश्व के पूरे मौसम के तापमान पर असर पड़ता है। अल नीनो समुद्री सतह में औसतन से ज़्यादा गर्मी होने के कारण 4 से 5 साल के बाद विकसित होता रहता है। समुद्री सतह के गर्म होने के कारण गर्मी पैदा होती है और जो हवाएं चलती हैं उन हवाओं में और ज़्यादा गर्मी उत्पन्न होती है। इस कारण वर्षा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। फल स्वरुप कई इलाकों में कम वर्षा और सूखा की स्थिति पैदा होती है।
समुद्री सतह का तापमान जब कम या ठंडा होता है तब ला नीना की स्थिति उत्पन्न होती है। इसके कारण समुद्री सतह पर ठंडी और नम हवाएं चलती हैं। ऐसी स्थिति में ज़्यादा वर्षा की संभावना रहती है। इस प्रकार से हम साधारण भाषा में समझ सकते हैं कि अल नीनो समुद्री सतह के गर्म होने और गर्म हवाओं से संबंधित है। वहीं दूसरी तरफ ला नीना समुद्री सतह के ठंडे और नम हवाओं से संबंधित है।
पिछले तीन साल से भारत अल नीनो के फेज में चल रहा था। गर्मी ज़्यादा बढ़ रही थी और मानसून के पैटर्न में गर्मी के कारण ज़्यादा भाप बनती थी। इसके चलते एक स्थान पर ज़्यादा बारिश हो जाती थी तथा लंबे अंतराल तक फिर सूखा रहता था। हम कह सकते हैं कि पूरे देश में एक प्रकार से समान (यूनिफॉर्म) रूप से वर्षा नहीं हो रही थी। इस वर्ष भारत ला लीना के फेज में जा रहा है। इसके चलते अगस्त-सितंबर में ला नीना प्रभाव सक्रिय रूप से ज़्यादा रहेगा। मानसून समय से आएगा तथा सामान्य वर्षा होगी। मौसम विभाग के पूर्वानुमान स्पष्ट रूप से इस बात के भी संकेत दे रहे हैं कि इस बार ज्यादातर क्षेत्रों में एक समान वर्षा होगी। वहीं अगस्त-सितंबर में बहुत अच्छी वर्षा होने के संकेत हैं।
अच्छी बारिश की उम्मीद
इस समय में मई माह में भी बहुत तीव्र गर्मी पड़ रही है। उत्तर भारत के कई राज्यों एवं शहरों में तापमान 47 और 48 डिग्री तक जा रहा है। मई-जून में अच्छी गर्मी इस बात का संकेत देती है कि मानसून तय समय पर आकर अच्छी बरसात की शुरुआत करेगा। किसानों को भी पिछले कुछ सालों की तुलना में इस वर्ष अच्छी वर्षा की भविष्यवाणी के चलते खरीफ मौसम में फसलों से अच्छा उत्पादन मिलने की उम्मीद जगी है। अब देखना यह होगा कि मानसून तय समय पर आकर पूरे बरसाती सीजन में लगातार समय-समय पर समान रूप से बरसता रहे।
हालांकि पिछले एक दशक में देखने को मिल रहा है कि मानसूनी बरसात में बहुत अधिक असमानता देखी जा रही है। इसके चलते बरसात के दिन घटने, कुछ ही दिन में पूरे माह की बरसात हो जाने इसके बाद काफी लंबे समय तक बरसात नहीं होने और एक समान रूप से काफी लंबे क्षेत्र में एक साथ बरसात नहीं होने की स्थिति देखी गई है। यह सभी स्थितियां वर्षा जल संचयन और खरीफ मौसम की फसलों के हिसाब से अच्छी नहीं मानी जा सकती हैं।
मानसून सीजन में अगर समय-समय पर आवश्यकतानुसार पानी बरसता रहे, ज़्यादा लंबा ड्राई स्पेन न हो और बहुत अधिक वर्षा एक साथ ना हो, ऐसी स्थितियां बहुत अच्छी मानी जाती हैं। आशा करते हैं कि इस साल किसानों के लिए ऐसी परिस्थितियाँ बनेगी और पूरे खरीफ सीजन में समय-समय पर अच्छी बरसात होगी। जिसका सीधा लाभ खरीफ फसलों के साथ ही आगामी रवी फसलों को भी मिल सकेगा। इतना ही नहीं अच्छी मानसूनी बरसात का सबसे अधिक लाभ जमीन की भूगर्भ जल धारण क्षमता को बढ़ाने में मददगार साबित होगा। इसलिए किसानों को चाहिए कि वह गर्मियों के इस मौसम में खेतों की गहरी जुताई और मेड़बंदी पर विशेष ध्यान दें। जिससे वर्षा जल को अधिक से अधिक अपने खेतों के अंदर संचित किया जा सके।
(डॉ सत्येंद्र पाल सिंह, कृषि विज्ञान केंद्र लहार (भिंड) मध्य प्रदेश के प्रधान वैज्ञानिक हैं)