अब इसकी ख़ेती से मालामाल होंगे किसान

भरतपुर के छोटे से गाँव में सोशल मीडिया से जानकारी लेकर एक किसान लाखों रूपये कमा रहा है। दूर गाँवों के किसान अब उससे सीखने आ रहे हैं ख़ेती से मालामाल होने के गुर।
#papaya farming

भरतपुर (राजस्थान)। सोशल मीडिया की एक रिपोर्ट ने विजयपुरा गाँव के किसान तेजवीर सिंह की किस्मत ही बदल दी है। कुछ अलग हट कर करने का आइडिया ऐसा हिट हुआ कि अब दूसरे उनसे मशवरा ले रहे हैं।

राजधानी जयपुर से करीब 185 किलोमीटर दूर भरतपुर ज़िले का विजयपुरा कल तक आम गाँवों जैसा ही था। लेकिन अब ये एक ख़ास किस्म के फल की ख़ेती से भी जाना जाने लगा है। जिसका पहला बीज़ तेजवीर सिंह ने अपने खेत में रोपा था। कोटा यूनिवर्सिटी से वेटनरी साइंस में ग्रेजुएट तेजवीर सिंह ताइवानी पपीता ‘रेड लेडी’ की ख़ेती से यहाँ अच्छी आमदनी कर रहे हैं।

“पहले पूरे साल मेहनत करता, लागत भी ख़ूब आती पर फ़सल बेचकर हिसाब लगाता, तो मुनाफ़े के नाम पर बहुत कम पैसे हाथ में आते थे। यही वज़ह है परंपरागत ख़ेती छोड़कर ताइवानी पपीता उगाना शुरू किया, “25 साल के तेजवीर ने गाँव कनेक्शन को बताया।

 पपीते की फसल में ही इंटरक्रॉपिंग करके गेंदा, गोभी, टमाटर की फसल भी उगाई। एक बीघा जमीन को उन्होंने ताइवानी पपीते के पौधे लगाने के काम लिया

 पपीते की फसल में ही इंटरक्रॉपिंग करके गेंदा, गोभी, टमाटर की फसल भी उगाई। एक बीघा जमीन को उन्होंने ताइवानी पपीते के पौधे लगाने के काम लिया

दरअसल सामान्य प्रजाति का पपीता लगभग एक साल में फल देना शुरू करता है और उसमें कुछ पौधे ऐसे होते हैं, जो फल नहीं देते हैं। जबकि ‘रेड लेडी’ प्रजाति के सभी पौधे फल देते हैं।

तेजवीर ने पिछले साल पाँच बीघा खेत में रेड लेडी ताइवानी पपीता की फसल बोई। साथ ही तीन बीघा में तरबूज और छह बीघा में मिर्ची की पैदावार की। पपीते की फसल में ही इंटरक्रॉपिंग करके गेंदा, गोभी, टमाटर की फसल भी उगाई। एक बीघा जमीन को उन्होंने ताइवानी पपीते के पौधे लगाने के काम लिया। इंटरक्रॉपिंग में गेंदा लगाने का मकसद पपीते को जड़ गाँठ रोग (निमेटोड) से बचाना भी था।

तेजवीर के पास कुल 50 बीघा जमीन है। उन्होंने बाकी 35 बीघा ज़मीन में सरसों और गेहूँ जैसी फसल उगाई, ताकि पपीता या दूसरे फसलों में सफलता नहीं मिली तो कोई नुकसान नहीं हो। उनके मुताबिक पपीता सहित दूसरी सब्ज़ियों की बुवाई, सिंचाई, खाद-बीज़ और मज़दूरी पर उन्होंने तीन से चार लाख रूपये ख़र्च किए। जबकि 5 से 6 लाख रुपए वह इंटरक्रॉपिंग फसल और तरबूज बेचकर ही हासिल कर चुके हैं।

युवा किसान तेजवीर ने खेती के दौरान ड्रिप सिस्टम, मल्च और लो टनल तकनीक का इस्तेमाल किया, जिस पर उन्हें बागवानी विभाग से अनुदान मिला है। 

युवा किसान तेजवीर ने खेती के दौरान ड्रिप सिस्टम, मल्च और लो टनल तकनीक का इस्तेमाल किया, जिस पर उन्हें बागवानी विभाग से अनुदान मिला है। 

तेजवीर के खेत में ताइवानी पपीता के अब दो-दो किलोग्राम के फल आने लगे हैं, जिन्हें अब बेचने की तैयारी की जा रही है। उनके पास इसके करीब 600 पेड़ हैं। ताइवानी पपीते के एक पेड़ से 50 किलोग्राम से एक क्विंटल तक पपीते की पैदावार होती है। वे कहते हैं, अगर पैदावार कुछ कम हुई तो भी 15 से 20 लाख रुपए के पपीते बिक जाएँगे।

तेजवीर कहते हैं, “जयपुर से करीब 40 हज़ार रुपए का बीज मंगाकर खुद ही ताइवानी रेड लेडी पपीता की पौध तैयार किया, इस पपीते का बीज करीब साढ़े 4 लाख रुपए किलो मिलता है।”

उद्यान विभाग के उपनिदेशक जनकराज मीणा ने बताया कि रेड लेडी ताइवानी पपीता की नस्ल भरतपुर की आबोहवा और भौगोलिक परिस्थितियों में बहुत सफल है। एक बीघा में 300 से अधिक पौधे लगाए जा सकते हैं। एक पौधा दो साल तक फल देता है। औसतन एक पौधा एक साल में 50 से 100 किलो तक पैदावार दे सकता है। ऐसे में ताइवानी पपीता की खेती से प्रति बीघा हर साल करीब 3 से 4 लाख रुपए तक की आय ली जा सकती है।

गाँव कनेक्शन से बातचीत में मीणा बताते हैं, “प्रगतिशील तरीके से खेती करने वाले किसानों को उद्यान विभाग की कई योजनाओं का लाभ मिलता है। युवा किसान तेजवीर ने खेती के दौरान ड्रिप सिस्टम, मल्च और लो टनल तकनीक का इस्तेमाल किया, जिस पर उन्हें अनुदान दिलाया गया। साथ ही ऐसे किसानों को विभाग की आत्मा योजना के तहत ब्लॉक, ज़िला और राज्य स्तर पर पुरस्कृत भी किया जाता है।

तेजवीर सिंह कहते हैं, साल 2018 में मेरे पिता की ब्लड कैंसर से मौत हो गई, दादा जी को पैरालाइस है, ऐसे हाल में मेरा घर से बाहर जाकर नौकरी करना संभव नहीं था। मेरे पास 50 बीघा ज़मीन है, सोचा क्यों न इसी को अपनी आय का ज़रिया बनाया जाए।”

“ताइवानी रेड लेडी पपीता के बारे में जब सोशल मीडिया से जानकारी मिली तो कृषि और उद्यान विभाग के अधिकारियों से चर्चा की। उनकी सलाह पर खेत की मिट्टी की जाँच कराई तो उसमें जिंक, कैल्सियम नाइट्रेट, कार्बन, बोरोन की कमी पाई गई। मिट्टी में इन पोषक तत्वों की पूरी मात्रा डलवाया। करीब तीन महीने की कोशिश के बाद ताइवानी पपीते के पौधे लगाने में कामयाबी मिल गई।” तेजवीर ने गाँव कनेक्शन को बताया।

उन्होंने बताया कि देशी पपीता के पौधे की ऊँचाई ज़्यादा होती है और फल कम देता है। जबकि ताइवानी रेड लेडी पपीते की खूबी है उसकी कम हाईट और ज़्यादा फल। लेकिन किसानों को चाहिए कि तैयार फल को बेचने के लिए समय से पहले ही मंडी की तलाश कर लें।

भरतपुर के अलावा राजस्थान के कई अन्य ज़िलों से अब किसान तेजवीर सिंह का खेत और पपीता देखने आते हैं ताकि फसल उपजाने के लिए ज़रूरी जानकारी ले सके। तेजवीर भरतपुर के ही उटारदा गाँव में 5 बीघा ज़मीन में ताइवानी पपीते की पौध तैयार करा चुके हैं। एक अन्य गाँव जीवद बाँसी में पौध तैयार कराने का काम चल रहा है।

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