मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश)। मिर्ज़ापुर में विंध्य की पहाड़ियों पर बसे पड़रिया गाँव में धान की काफ़ी ख़ेती होती है। लेकिन इस बार मौसम के बदले मिज़ाज से ऐसा होता नहीं दिख रहा है।
82 साल के किसान रामधनी सिंह पटेल के पास 4 बीघा खेत है। गाँव कनेक्शन से बातचीत में वे बताते हैं, “धान, गेहूँ की फ़सल लगाते थे, जब पानी पूरा मिलता था, लेकिन अब नहीं है। सूखे की आशंका है ऐसे में तिल, अरहर, बाजऱा की ख़ेती करेंगे।”
वे कहते हैं, “जब पानी ही नहीं बरसेगा तो ऐसे में क्या ख़ेती करेंगे। पानी के आधार पर सब कुछ है। अपने हौंसले से ख़ेती तो करेंगे, लेकिन सूखा से ग्रस्त रहेंगे। किसान रामधनी मायूस होकर कहते हैं।” उन्होंने बताया पिछली बार बहुत कमज़ोर फ़सल हुई थी। देर से बारिश हुई जिसकी वजह से एक सीज़न में धान की ख़ेती नहीं कर पाए। दूसरे सीज़न में गेहूँ, चना, मटर की ख़ेती किए थे पैदावार ठीक थी।
मिर्ज़ापुर में उत्तर प्रदेश के उपकृषि निदेशक अशोक उपाध्याय ने गाँव कनेक्शन से कहा, “उत्पादन और उत्पादकता का आकड़ा क्रॉप कटिंग के ज़रिए निकालते हैं। अब इसमें मॉडर्न टेक्नोलॉजी का प्रयोग हो रहा है, सरकार आकड़ा निर्धारित करने के लिए रिमोट सेंसिंग को अपना आधार बनाना चाह रही है। उत्पादन के आंकड़े को लगाकर आगे की योजना बनाने और उसे लागू करवाने के लिए इस तरह की स्कीम पर चर्चा चल रही है। यह लक्ष्य शासन स्तर से तय किया जाता है।”
वह आगे कहते हैं,”अगर बारिश कम होती है तो निश्चित रूप से कम पानी की प्रजातियाँ भी हैं। किसानों को इसकी जानकारी नर्सरी लगाने से पहले प्रचार प्रसार और गोष्ठियों के माध्यम से हमलोग पहुँचाते हैं। मोटा अनाज (श्री अन्न) में कम पानी लगता है। सरकार की मंशा है किसान ज़्यादा से ज़्यादा मिलट की ख़ेती करें। कम पानी की प्रजातियाँ सहकारी बीज़ गोदाम पर उपलब्ध हैं । इन सभी प्रजातियों के बीज़ 50 प्रतिशत अनुदान पर उपलब्ध रहेंगे।”
कैसे तय होता है कम पानी का मानक
कृषि विभाग के अनुसार हर महीने बारिश का एक मानक तय होता है। कम पानी का भी एक मानक होता है, सरकारी मानक के अनुसार जून महीने में कुल 104.50 मिमी बारिश और जुलाई में 334 मिमी बारिश का मानक है। फ़सलों में अक्सर यह देखा जाता है कि निश्चित अवधि पर पानी मिल जाता है तो उसका उत्पादन अच्छा होता है।
अशोक उपाध्याय कहते हैं, “उदाहरण के तौर पर, अगर फ़सल की बाली निकल रही है और उसको पानी अच्छे से मिल गया तो किसानों को फ़ायदा मिल जाता है, वहीं मानक की बात करें तो जून महीने का मानक 104.50 मिमी से कम बारिश का होता है। जून में नर्सरी लगाते हैं इसलिए ज़्यादा पानी की ज़रूरत जुलाई माह में होती है। धान की नर्सरी सिंचित श्रोत से लगाई जाती है। जुलाई में 304 मिमी बारिश की ज़रूरत होगी।”
उपकृषि निदेशक अशोक उपाध्याय ने कहा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में स्थित मौसम विज्ञान विभाग की तरफ से हर महीने होने वाले बारिश के आँकड़े जारी किए गए हैं। उसी के हिसाब से हम किसानों को जानकारी देते हैं।
किसानों की ख़ेती की योजना
अशोक उपाध्याय बताते हैं, “ज़िले में कुछ ऐसे पहाड़ी क्षेत्र हैं जहाँ बारिश कम होती है। मिर्ज़ापुर में विकास खंड लालगंज, हलिया, मड़िहान और राजगढ़ कम पानी वाला इलाका है। यहाँ की ज़मीन पर पानी ज़्यादा देर तक नहीं रुकता। इसके अलावा सीखड़ और छानबे सामान्य पानी वाला इलाका है। यह इलाका गंगा नदी के किनारे का है। जमालपुर और नारायणपुर का कुछ भाग ज़्यादा पानी वाला इलाका है। यहाँ बड़े डैम हैं। नहरों में सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था है। इस तरीके से हम हर ब्लॉक में पानी के हिसाब से बीज़ का वितरण करवाते हैं।”
उपकृषि निदेशक कहते हैं, “अब कम पानी वाले धान की फ़सल किसानों को लगानी चाहिए। जिसमे मुख्य रूप से नरेंद्र 118 (85 से 90 दिन), नरेंद्र 97 (85 से 90 दिन) , सुरसम्राट, सहभागी, सरयू 52, नरेंद्र 359, सीओ 51 हमारे बीज़ गोदामों पर उपलब्ध हैं । किसानों को मोटे अनाज की तरफ भी ध्यान देना चाहिए। श्री अन्न, ज्वार, बाजरा, कोदो, सांबा की भी काफी माँग है।
उत्पादन का लक्ष्य
एक रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2023 में 4347 हेक्टेयर में ज्वार की ख़ेती करवाने का लक्ष्य है। जबकि 10454 हेक्टेयर में बाजरा की खेती का लक्ष्य है। 87379 हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य निर्धारित किया गया है । पिछले साल 2022 में 86514 हेक्टेयर में धान की खेती हुई थी। श्रीअन्न में ज्वार 4304 हेक्टेयर और बाजरा 10351 हेक्टेयर उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित हुआ था।
अनुदान के लिए कराना होगा पँजीकरण
बीज़ पर अनुदान लेने के लिए किसानों को www.upagriculture.com पर पँजीकरण कराना होगा। इसके लिए बैंक का पासबुक, खतौनी, आधार कार्ड की ज़रूरत होगी। इसे लेकर किसी भी सहज जन सेवा केंद्र के माध्यम से ऑनलाइन पँजीकरण करवा सकते हैं।
किसानों को कितनी है जानकारी
पटेहरा ब्लॉक के सुगापांख गाँव के किसान मोतीलाल सिंह (81 वर्ष) गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “टेलीविज़न से हमे जानकारी मिली है कि इसबार सामान्य बारिश होगी। इसलिए हम ज्वार, बाजरा, हल्का धान, अरहर, तिल की खेती करेंगे लेकिन पैदावार की चिंता है। असमंजस की स्थिति भी है क्योंकि यहाँ धान और गेहूँ की ख़ेती ज़्यादा होती है। लेकिन जब पानी ही नहीं बरस रहा है तो श्री अन्न की ख़ेती करनी होगी।”
पटेहरा कलां (बहरछठ) गाँव के तुलसीराम यादव की भी यही समस्या है। पहाड़ के चट्टानों के बीच मिट्टी के घर में उनका बसेरा है। गाँव कनेक्शन से कहते हैं,”कम पानी में ख़ेती की पैदावार कम होती है, ज़्यादा पानी पर धान की ख़ेती हो सकती है। पिछले साल हमने कोई ख़ेती नहीं किया वजह है बारिश का नहीं होना। हमारे पास तो पीने तक को पानी नहीं है।” वह कहते हैं, पिछले साल पानी के अभाव में कोई ख़ेती नहीं कर पाए। आगे आने वाले सीज़न में बारिश होगी तो धान की ख़ेती करेंगे, लेकिन आसान नहीं लगता है।