यूपी के किसानों के लिए ज़रूरी सलाह: खेती से लेकर पशु पालन में निपटा लें ये काम

उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद ने यूपी के किसानों के लिए ज़रूरी सलाह जारी की है। इसमें खेती, पशुपालन से लेकर मछली पालकों के काम की बात है।
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बारिश के साथ ही फसलों की बुवाई तो शुरू हो ही जाती है, साथ ही पशुओं में भी कई तरह की बीमारियाँ लगने लगती हैं। इसलिए ये जानना ज़रूरी है कि इस समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

धान की तैयार पौध की रोपाई के लिए मौसम अनुकूल है, इसलिए किसान भाई युद्धस्तर पर रोपाई करें क्योंकि 13 जुलाई के बाद इस सप्ताह कम वर्षा का अनुमान है। किसान भाई धान की कम अवधि की किस्मों की सीधी बुवाई ड्रम सीडर (खेत तैयार कर) या सीड ड्रिल (सूखी बुवाई) से कर सकते हैं।

अगर 20-25 दिन की पौध तैयार है तो धान की रोपाई 2-3 पौधा प्रति हिल और प्रति वर्ग मीटर 40 से 50 हिल को 3-4 सेमी. की गहराई पर रोपाई करें। धान के पौध की चोटी ऊपर से एक इंच काटकर रोपाई करने से कीट और बीमारियों के प्रकोप की संभावना कम हो जाती है।

धान की रोपाई के बाद जो पौधे गल गए हों उनकी जगह पर तीन से पाँच दिन के अन्दर दूसरे पौधों को तुरन्त लगा दें, ताकि प्रति इकाई पौध सुनिश्चित की जा सकें।

धान की ‘‘डबल रोपाई या सण्डा प्लाटिंग’’ के लिए तीन सप्ताह की अवधि के पौधों की प्रथम रोपाई 20 गुणा 10 सेमी. की दूरी पर करना चाहिए।

रोपाई किए गए धान में 20 से 25 दिन पर पहली बार यूरिया की टापड्रेसिंग और जिंक की कमी होने पर 20 से 25 किग्रा. जिंक सल्फेट का प्रयोग यूरिया के साथ मिलाकर करें।

खरपतवार नियंत्रण के लिए रोपाई के 18 से 21 दिन पर विसपाइरीबैक सोडियम 10 प्रतिशत एसी. 0.20 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से नमी की स्थिति में लगभग 500-700 लीटर पानी में घोलकर फ्लैट फैन नाजिल से छिड़काव करें।

मक्के में फाल आर्मी वर्म का प्रकोप होने पर 10 से 20 प्रतिशत क्षति की अवस्था में प्रभावी नियंत्रण के लिए क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 18.5 प्रतिशत एस.सी. 0.4 मिली. प्रति लीटर पानी अथवा स्पाइनोसेड 0.3 मिली. प्रति लीटर पानी या थियामेथॉक्सम 12.6 प्रतिशत लैम्ब्डा सिहलोथ्रिन 9.5 प्रतिशत 0.5 मिली. प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

मोटे अनाज की खेती

श्रीअन्न सावां की संस्तुत प्रजातियों में आई.पी.-149, यू.पी.टी.-8, आई.पी.एम.-97, आई.पी.एम.-100, आई.पी.एम.-148 व आई.पी.एम.-151 की बुआई कर सकते हैं। कोदों की संस्तुत प्रजातियों जे.के.-6, जे.के.-62, जे.के.-2, ए.पी.के.-1, जी.पी.वी.के.-3 की बुआई करें। ज्वार की संस्तुत संकुल प्रजातियों में वर्षा, सी.एस.वी.-13, सी.एस.वी.-15, एस.पी.बी.-1388 (बुन्देला), विजेता और संकर प्रजातियों सी.एस.एच.-16, सी.एस.एच.-9, सी.एस.एच.-14, सी.एस.एच.-18, सी.एस.एच.-13 व सी.एस.एच.-23 की बुवाई अच्छी रहती है।

बाजरा की उन्नतशील संकुल किस्मों में धनशक्ति, आई.सी.एम.बी.-155, डब्लू.सी.सी.-75, न.दे.पफ.बी.-3 (नरेन्द्र चारा बाजरा-3), राज-171 और संकुल किस्मों में 86 एम. 84, आई.सी.एम.एच.-451, पूसा-322 तथा पूसा-23 की बुवाई कर सकते हैं।

दलहनी फसलें

उड़द की किस्मों में आजाद उर्द-1, आजाद उर्द-2 (हरा दाना), शेखर-1, शेखर-2, आई.पी.यू.-94-1 (उत्तरा), टा-27 तथा टा-65, आईपीयू 11-02, आईपीयू 13-1, पंत उर्द-9, पंत उर्द-8, पंत उर्द-12 एवं मूंग की किस्मों नरेन्द्र मूंग-1, सम्राट, मालवीय जन चेतना, टी.एम.-9937, मालवीय जनकल्याणी, एम.एच.-215, आई.पी.एम. 2-3, श्वेता, स्वाति, विराट, आई.पी.एम. 2-14, आजाद मूंग-1, पूसा 14-31, मेहा 99-125, वर्षा, कनिका की बुवाई से अच्छा उत्पादन पा सकते हैं।

गन्ना की खेती

शरद काल में बोए गए गन्ने को मानसून में गिरने से बचाने के लिये गन्ने की बँधाई करें। प्रथम बुआई के लिए गन्ना जब लगभग 5 फुट का हो जाये तो 2 फुट की ऊॅंचाई पर गन्ने की लाइनों में प्रत्येक क्लम्प को नीचे की सूखी पत्तियों से बांध दें।

गन्ने में पोक्का बोइंग रोग के नियंत्रण के लिए कॉपर आक्सीक्लोराइड 0.2 प्रतिशत अथवा कार्बेन्डाजिम 0.1 प्रतिशत का घोल बनाकर पत्तियों पर छिड़काव करें। लालसड़न रोग के लक्षण गन्ने की पत्तियों की मध्य शिरा के पिछले भाग पर दिखने पर पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें।

उखाड़े गए स्थान पर थायोफिनेट मिथाइल 0.2 प्रतिशत की ड्रेचिंग करें। चूसक कीटों से बचाव के लिए प्रोफेनोफॉस 40 प्रतिशत साईपर 4 प्रतिशत की 750 एम.एल. मात्रा को 625 ली. पानी में घोल बनाकर पत्तियों पर छिड़काव करें।

अगेती सब्जियों की खेती

खरीफ मौसम की अगेती सब्जियों के बीज को ट्राइकोडर्मा पाउडर 5 से 6 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बुवाई करें।

लोबिया, करेला, लौकी, तोरिया, पेठा, भिन्डी, चौलाई और मूली की बुवाई कर सकते हैं। फूलगोभी की अगेती किस्मों में अर्ली कुवारी, पूसा अर्ली सिंथेटिक, पंत गोभी-3, पूसा दीपाली आदि किस्मों का 500 से 600 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से नर्सरी तैयार करें।

बागवानी फसलें

आम, अमरूद, लीची, आंवला, कटहल, नींबू, जामुन, बेर, केला, पपीता के पौधों का रोपण कर नये बाग लगायें। केले के नवीन बाग लगाने के लिए ऊतक संवर्धन रोगरोधी जी-9 प्रजाति लगाएँ।

पशुपालकों के लिए ज़रूरी काम

वर्तमान में गलघोटू बीमारी का 15 जुलाई तक निःशुल्क टीकाकरण चल रहा है। यह सुविधा पशु चिकित्सालयों पर निःशुल्क उपलब्ध है।

खुरपका और मुंहपका (एफ.एम.डी.) बीमारी का टीकाकरण 15 जुलाई से 30 अगस्त तक 60 जनपदों में निःशुल्क किया जायेगा। इसके लिये दवाईयां पशु चिकित्सालयों पर निःशुल्क उपलब्ध हैं।

कतला, रोहू, नैन, सिल्वर कार्प और ग्रास कार्प मत्स्य प्रजातियों का मत्स्य बीज वर्तमान में उ.प्र. मत्स्य विकास निगम और निजी क्षेत्र की हैचरियों पर उपलब्ध है।

पौधशाला में अंकुरण क्यारियां तैयार कर आम, गुलमोहर, महुआ, कटहल, जामुन, कंजी, नीम आदि के बीजों की बुआई शीघ्र कर लें। अंकुरित पौधों को रूट ट्रेनर/थैलियों में प्रतिरोपित कर रख दें। वृक्षारोपण के लिए आवश्यक पौधे प्राप्त कर रोपण कार्य करें।

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