तानों की परवाह किए बिना शुरू की खेती; आज विदेशों में भी जाता है जैविक गुड़

शहर की सुख-सुविधाओं वाली ज़िंदगी छोड़कर खेती की तरफ वापस लौटना आसान नहीं होता, इसके लिए हिम्मत की ज़रूरत होती है, राकेश दुबे जो वापस लौट आए और आज बन गए हैं एक सफल किसान।

जब राकेश दुबे ने गाँव आकर खेती करने का फैसला किया तो लोगों के ताने मिले, यहाँ आकार क्या कर लोगे? खेती में क्या रखा है? लेकिन वो अपने फैसले पर अडिग रहे और आज उनके जैविक गन्ने से बना गुड़ दूसरे देशों में भी जाता है। 

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर ज़िले के करताज गाँव के रहने वाले राकेश दुबे बताते हैं, “लोगों ने जो मुझे ताने दिए, लोगों ने मुझे पिंच किया, वो मेरी जिंदगी की पहली ताकत उस दिन से लेकर आज तक है। आज भी जब मैं कुछ नया करता हूँ, कोई न कोई पिंच करता है, और वो मेरी ज़िद बन जाती है कि इसको तो करना ही है।”

राकेश दुबे की कहानी बदलाव और परंपरागत जड़ों से फिर से जुड़ने की है। वो जमीन, जो कभी बंजर हो चुकी थी, उसे अपने परिश्रम और नई सोच से फिर से उपजाऊ और हरी-भरी बनाने का उनका सपना था। एक समय था जब केमिकल्स और कृत्रिम बीजों से जमीन का हाल बुरा था, लेकिन राकेश ने जैविक खेती की ओर रुख किया और आज उनका फार्म सफलता की मिसाल है।

राकेश पारंपरिक किसानी परिवार से थे, लेकिन उनका पालन-पोषण शहरी माहौल में एक सर्विस क्लास फैमिली में हुआ। उनके पिता के हिस्से में जो जमीन आई थी, वह लगभग बंजर हो चुकी थी। 1994 में उन्होंने गन्ने की खेती शुरू की, लेकिन आस-पास के लोग उनकी मेहनत पर हँसते थे। गन्ने की पेराई की कोई सुविधा नहीं थी, और लोग मजाक करते थे- “अब इस गन्ने को कैसे खाओगे?” पर राकेश ने हार नहीं मानी और अपने दिल में उमंग और जुनून को बनाए रखा।

तब राकेश के पिता ने उन्हें जैविक खेती और पारंपरिक बीजों के उपयोग का सुझाव दिया। उन्होंने दो एकड़ जमीन पर जैविक गन्ना उगाना शुरू किया, जो अब उनके फार्म की मुख्य फसल बन गई है। आज वो गन्ने से 36 अलग-अलग उत्पाद बनाते हैं, जिनमें औषधीय गुण और मसालों का स्वाद होता है।

राकेश के प्रयास यहीं नहीं रुके। एक बच्चे के सवाल से प्रेरित होकर उन्होंने भारत की पहली गुड़ की चॉकलेट बनाई। पिछले साल, उन्होंने 18 क्विंटल गुड़ की चॉकलेट बच्चों तक पहुंचाई, जिससे उनका नया व्यवसाय भी शुरू हो गया।

राकेश की पत्नी, शालिनी दुबे, गर्व से बताती हैं, “हमें संतोष है कि हम अपना काम कर रहे हैं, किसी की नौकरी नहीं। और हम अपने काम से 500 से ज्यादा लोगों को रोजगार दे रहे हैं, उनका चूल्हा जल रहा है।”

कुशल मंगल नाम से है मशहूर है गुड़

इनके जैविक गुड़ का रजिस्ट्रेशन हो चुका है। राकेश दुबे के गुड़ की मांग विदेशों में बढ़ी है। ये गुड़ ऑनलाइन अमेज़न पर भी उपलब्ध है, कार्गो सर्विस पोस्टल सर्विस, कोरियर ट्रांसपोर्ट के द्वारा दूसरे स्टेट में ये गुड़ भेजा जाता है।

राकेश बताते हैं, “ जैविक गुड़ की मार्केटिंग खुद करनी पड़ती है, भाव अच्छा मिलने से मुनाफा ज्यादा होता है। जैविक गन्ने की लागत भी कम आती है।” अभी सबसे ज्यादा इनका गुड़ चंडीगढ़ जाता है, हैदराबाद, जयपुर, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान में भी इसकी मांग है।

कुशल मंगल नाम से है मशहूर है गुड़
इनके जैविक गुड़ का रजिस्ट्रेशन हो चुका है। राकेश दुबे के गुड़ की मांग विदेशों में बढ़ी है। ये गुड़ ऑनलाइन अमेज़न पर भी उपलब्ध है, कार्गो सर्विस पोस्टल सर्विस, कोरियर ट्रांसपोर्ट के द्वारा दूसरे स्टेट में ये गुड़ भेजा जाता है।

राकेश बताते हैं, “ जैविक गुड़ की मार्केटिंग खुद करनी पड़ती है, भाव अच्छा मिलने से मुनाफा ज्यादा होता है। जैविक गन्ने की लागत भी कम आती है।” अभी सबसे ज्यादा इनका गुड़ चंडीगढ़ जाता है, हैदराबाद, जयपुर, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान में भी इसकी मांग है।

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