सरकार के प्याज खरीदने के फैसले के बाद भी क्यों नाराज़ हैं किसान

प्याज के निर्यात पर रोक से किसान गुस्सा हैं, लेकिन सरकार ने भरोसा दिलाया है कि इससे किसानों का कोई नुकसान वो नहीं होने देगी और बफर स्टॉक का लक्ष्य बढ़ा कर प्याज की खरीद शुरू भी कर दी है।
#OnionExport

शायद ही कोई साल हो जब किसानों की समस्या सुर्खियाँ न बनती हो। ताज़ा मामला प्याज से जुड़ा है जो काटे जाने से पहले ही खुद किसानों के आँसू निकाल रहा है।

केंद्र सरकार की तरफ से प्याज के निर्यात (एक्सपोर्ट) पर रोक लगाने के बाद से महाराष्ट्र के किसान सबसे ज़्यादा नाराज़ हैं। हालाँकि सरकार ने भरोसा दिलाया है कि प्याज के निर्यात पर बैन लगाने से किसानों पर कोई असर नहीं पड़ेगा; क्योंकि सरकार किसानों से खुद प्याज खरीद रही है।

प्याज के लिए सरकार ने बफर स्टॉक का लक्ष्य बढ़ा दिया है। खबर हैं कि सरकार ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए बफर स्टॉक का लक्ष्य बढ़ाकर सात लाख टन कर दिया है, जो पिछले साल वास्तविक स्टॉक तीन लाख टन का ही था।

बफर स्टॉक बाज़ार में उतार-चढ़ाव और कीमतों को सही रखने में एक रणनीतिक उपाय के रूप में काम करता है।

मंडियों से प्याज की खरीद शुरू

इस बीच केंद्र सरकार ने किसानों के हितों की रक्षा के लिए मंडियों से प्याज की खरीद शुरू कर दी है। यह खरीदी केंद्र सरकार की एजेंसियों के जरिए हो रही है। इसमें नेफेड और एनसीसीएफ प्रमुख हैं।

महाराष्ट्र के नासिक की मंडियों में प्याज की खरीद शुरू होने के बाद इसकी कीमतों में कमी की उम्मीद की जा रही है।

क्यों नाराज़ हैं प्याज के किसान

इससे पहले महाराष्ट्र राज्य प्याज उत्पादक संगठन ने प्याज के निर्यात से जुड़े सरकार के फैसले के ख़िलाफ तीन प्रस्ताव पारित किए थे, जिसमें प्याज उत्पादक किसानों का दिल्ली में धरना, केंद्र सरकार की प्याज आयात और निर्यात नीति के ख़िलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करना और तीसरा, महाराष्ट्र की किसी भी बाज़ार समिति में अगर प्याज की बोली 3000 रुपये प्रति क्विंटल से कम होगी तो किसान प्याज की नीलामी रद्द कर देंगे।

ज़ाहिर है तीनों फैसले न सिर्फ किसान और सरकार बल्कि आम जनता को भी प्रभावित करने वाले कह सकते हैं। इस तरह के विरोध और आंदोलनों का मंडी पर भी असर पड़ता है जहाँ से ख़ुदरा बिक्री के लिए सब्जियाँ निकल कर आम खरीददार तक पहुँचती हैं।

किसानों का कहना है जब सरकार ने 7 दिसंबर को प्याज निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था तब से उससे कई करोड़ का नुकसान हो चुका है।

महाराष्ट्र कांदा उत्पादन संगठन के अध्यक्ष भरत दिघोले

महाराष्ट्र कांदा उत्पादन संगठन के अध्यक्ष भरत दिघोले

महाराष्ट्र कांदा उत्पादन संगठन के अध्यक्ष भरत दिघोले गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “इस साल जनवरी, फरवरी, जुलाई तक किसानों को दाम नहीं मिल रहे थे। अगस्त में दाम में थोड़ी वृद्धि हुई तब सरकार ने एक्सपोर्ट पर चालीस प्रतिशत ड्यूटी लगा दी और उस बीच रेट डाउन हो गए; लेकिन जब फिर दाम जब बढ़ने लगे तो सरकार ने ड्यूटी हटा के न्यूनतम निर्यात मूल्य (एनईपी) लगा दिया, 800 डॉलर कर दिया एक टन के लिए जो सरकार को एक्सपोर्ट करने के लिए देना पड़ा।”

वो आगे कहते हैं, “अब इसके बाद दाम फिर से गिर गए, अब जब पिछले आठ-दस दिनों में प्याज के दाम दोबारा बढ़ने लगे तो 7 तारीख की आधी रात को सरकार ने प्याज के एक्सपोर्ट को बैन कर दिया; इससे ये हुआ कि नासिक की मंडी में जिस प्याज का दाम 4000 रुपए क्विंटल मिल रहा था, वो इस समय 1000 से 2000 रुपए क्विंटल हो गया; पिछले चार-पाँच दिनों में 40 से 60 प्रतिशत रेट डाउन हो गया है।”

इस साल पहले सूखा और बाद में बेमौसम बारिश के साथ ओला गिरने से दूसरी फसलों के साथ ही प्याज किसानों को भी काफी नुकसान उठाना पड़ा है। ऐसे में सरकार के इस फैसले के बाद वो नाराज हैं।

भरत दिघोले आगे कहते हैं, “इस साल महाराष्ट्र में सूखा भी है महाराष्ट्र में, ओले भी गिरे थे; जिससे फसल का बहुत नुकसान हुआ था। ऐसे में किसान जब फसल उगाता है और जब दाम मिलने का वक़्त आता है तो सरकार ऐसे कदम उठाती है तो बुरा लगता है और किसानों में गुस्से का माहौल है।”

नवंबर महीने में हुई बारिश से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था।

नवंबर महीने में हुई बारिश से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था।

महाराष्ट्र के नाशिक जिले के चांदवड तालुका के किसान कैलाश जाधव को इस बार काफी नुकसान उठाना पड़ा था, किसी तरह उन्होंने प्याज की बुवाई की थी। वो गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “इस साल महाराष्ट्र में सूखा था हमारे पास पानी का कोई साधन नहीं था, किसी तरह पानी के टैंकर खरीद कर खेतों में पानी लगाया और जब बीज थोड़ा ज़मीन से ऊपर आया। तब फिर बारिश हुई जब उसकी ज़रुरत नहीं थी, उसके ऊपर ओले भी गिरे; जिससे फसल का बहुत नुकसान हुआ ये सब होने के बाद भी हमने कांदा बचाया।”

वो आगे कहते हैं, “एक एकड़ में करीब 60-70 कुंटल कांदा निकलता है, लेकिन इस बार एक एकड़ में सिर्फ चालीस क्विंटल कांदा निकला है। उसके बाद जब हमारा माल तैयार हो गया मंडी में जाने के लिए तो सरकार ने एक्सपोर्ट पर ही बैन लगा दिया की प्याज बाहर जाएगा ही नहीं जिसकी वजह से रेट गिर गया।”

किसान और सरकार के बीच विवाद नया नहीं है। किसान संगठन आरोप लगाते रहे हैं कि उनसे जुड़े कुछ फैसले बिना उनकी सलाह के लिए जाते हैं जो व्यावहारिक नहीं होते हैं। हालाँकि सरकार जब भी कृषि या किसानों के हितों से जुड़े फैसले करती है तो सलाहकार समिति या मंत्री परिषद की कमेटी से विचार विमर्श के बाद ही उसे लागू करने के लिए कदम बढ़ाती है।

साल 2020 का किसान आंदोलन अगर याद हो तो उस समय भी यही आरोप लगे थे। कुछ लोग जहाँ तब सरकार के फैसले को सही ठहरा रहे थे, वहीँ कुछ किसान विरोधी मान रहे थे। अंत में सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा।

20 और 22 सितंबर, 2020 को देश की संसद ने कृषि संबंधी तीन विधेयकों को पारित किया था। 27 सितंबर 2020 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इन विधेयकों को मंजूरी दी थी, जिसके बाद ये तीनों कानून बन गए। इनमें कृषि कानून, आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020, कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून , 2020 और कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर करार कानून , 2020 शामिल था। लेकिन किसान इन कानूनों के प्रवाधानों के विरोध में सड़कों पर उतर आए।

किसानों की सबसे बड़ी चिंता और डर ये थी कि सरकार एमएसपी और सरकारी ख़रीद की व्यवस्था को ख़त्म कर देगी। उन्हें लगा कि सरकार कृषि क्षेत्र को निजी क्षेत्रों को सौंपना चाहती है। इसमें सबसे विवादास्पद कानून रहा कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून। इसमें प्रावधान था कि निजी क्षेत्र कृषि उत्पाद मंडी समिति (एपीएमसी) कानून के तहत स्थापित मंडियों के बाहर का क्षेत्र ट्रेड एरिया होगा और वहाँ पर कोई भी व्यक्ति या कंपनी किसानों से सीधे उनके उत्पादों की ख़रीद कर सकती है, जिस पर राज्य सरकार कोई टैक्स नहीं लगा सकती है।

अभी प्याज के निर्यात पर रोक के फैसले को कई किसान संगठन उसी तरह से देख रहे हैं।

प्याज के निर्यात पर रोक का असर

भारत की मंडियों में अगर प्याज का खुदरा मूल्य देखें तो 70 से 80 रूपये किलो तक है। कुंटल के हिसाब से दिल्ली की आज़ादपुर सब्जी मंडी में ये 2800 रूपये से अधिकतम 4000 रूपये कुंटल पहुँच गया है।

महाराष्ट्र की मंडी में हालाँकि प्याज की खरीद शुरू होने के बाद इसके दाम कम होने की उम्मीद की जा रही है। कुछ जगह कम हुए भी हैं।

प्याज के निर्यात पर ताज़ा प्रतिबंध से देश के बाहर कुछ असर दिखने लगा है। बांग्लादेश, मॉरीशस ,नेपाल, भूटान, श्रीलंका और मालदीव के बाज़ारों में प्याज की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है।

बांग्लादेश में प्याज की कीमतों में भारी बढ़ोतरी देखी गई, यहाँ प्याज का दाम 200 टका प्रति किलोग्राम तक है , जो एक ही दिन में 130 टका से काफी अधिक है। भूटान में 150 न्यूया प्रति किलोग्राम है जबकि नेपाल में खुदरा बिक्री 200 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई हैं; व्यापारियों को उम्मीद है कि इसकी कीमतों में और बढ़ोतरी हो सकती है क्योंकि नेपाल ज़्यादातर प्याज बाहर से लेता है।

उधर अफ्रीका के देश मॉरीशस में प्याज 88.82 से 177 रूपये तक प्रति किलो पहुँच गया है। श्रीलंका में इसकी कीमत स्थानीय खुदरा बाज़ार में करीब 300 रुपये प्रति किलो हो गई है।

प्याज में क्या है ख़ास

प्याज एक महत्वपूर्ण सब्ज़ी और मसाला फसल है। इसमें प्रोटीन और बिटामिन भी कुछ मात्रा में रहते हैं; इसके अलावा बहुत से औसधीय गुण भी पाये जाते हैं।

प्याज का सूप, अचार और सलाद के रूप में भी काफी इस्तेमाल किया जाता है। ख़ास बात ये है कि इसके हर रूप का इस्तेमाल हर देश में होता है। छोटे प्याज से लेकर हरे प्याज को अलग अलग तरीके से खाने में उपयोग में लाया जाता है।

भारत में कहाँ कहाँ होता है प्याज का उत्पादन

पुणे में स्थित प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय (ICAR – DOGR) के अनुसार देश में सबसे अधिक प्याज उत्पादन महाराष्ट्र में होता है, उसके बाद मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, बिहार, और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य आते हैं। महाराष्ट्र के नाशिक, अहमदनगर, पुणे, धुले, शोलापुर जिले में किसान प्याज की खेती करते हैं।

जबकि मध्य प्रदेश में प्याज की खेती खंण्डवा, शाजापुर, रतलाम छिंन्दवाडा सागर और इंदौर में मुख्य रूप से की जाती है। सामान्य रूप में सभी जिलो में प्याज की खेती की जाती है।

महाराष्ट्र में साल में चार बार (अगेती खरीफ, खरीफ, पछेती खरीफ और रबी) प्याज की खेती होती है। अगेती खरीफ में फरवरी-मार्च में बीज की बुवाई, अप्रैल-मई में प्याज की रोपाई और अगस्त-सितम्बर महीने में प्याज की हार्वेस्टिंग होती है।

खरीफ में मई-जून में बीज की बुवाई, जुलाई-अगस्त में रोपाई और अक्टूबर-दिसम्बर महीने में हार्वेस्टिंग होती है।

पछेती खरीफ में अगस्त-सितम्बर में बीज की बुवाई, अक्टूबर-नवंबर में रोपाई और जनवरी-मार्च में हार्वेस्टिंग होती है। जबकि रबी मौसम में अक्टूबर-नवंबर में बीज बुवाई, दिसम्बर-जनवरी में रोपाई और अप्रैल मई में प्याज की हार्वेस्टिंग होती है।

भारत से प्याज का निर्यात मलेशिया, मॉरीशस, यूएई, कनाडा , जापान, लेबनान और कुबेत, नेपाल तक में किया जाता है।

Recent Posts



More Posts

popular Posts