सूअर पालते हैं तो सावधान हो जाइए, तेजी से फ़ैल रहा है अफ्रीकन स्वाइन फीवर

जब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस तबाही मचा रहा था, उसी दौरान देश के पूर्वोत्तर राज्यों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर पाव फैला रहा था। जिससे आज तक पशुपालक नहीं उबर पाए हैं।
Kisaan Connection

एक बार फिर कई राज्यों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर का संक्रमण देखा जा रहा है। केरल के त्रिशूर जिले में संक्रमण रोकने के लिए 300 से अधिक सूअर को मार दिया गया है।

त्रिशूर जिले के माडाक्कथरा पंचायत में पिछले हफ्ते एक निजी फार्म पर सूअर की मौत होने पर जब जाँच की गई तो अफ्रीकन स्वाइन फीवर की जानकारी हुई। इसके बाद यहाँ पर माडाक्कथरा पंचायत में सूअरों को मारने का आदेश दे दिया गया। संक्रमण रोकने के लिए एक किमी दायरे में सुअर के माँस और चारे के आने-जाने पर रोक लगा दी गई है।

केरल के साथ ही नॉर्थ-ईस्ट के कई राज्यों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर के संक्रमण से सूअरों की मौत हो रही है।

सबसे पहले साल 2020 के जनवरी-फरवरी महीने में असम में संक्रमण पता चला था। देखते ही देखते अप्रैल तक शिवसागर, धेमाजी, लखीमपुर, बिस्वनाथ चारली, डिब्रूगढ़ और जोरहाट जिलों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर संक्रमण बढ़ गया। इससे लाखों की संख्या में सूअरों की मौत हुई।

तब से हर साल नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में सुअर पालक इस बीमारी से उबर नहीं पाए हैं। पशुपालन विभाग मिजोरम के मुताबिक राज्य में फरवरी से अफ्रीकी स्वाइन फीवर के प्रकोप के कारण सूअर पालकों को 20 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है, जिसके कारण 5,430 से अधिक सूअरों की मौत हो गई और 10,300 से अधिक सूअरों को मार दिया गया।

पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों की तरह ही मिजोरम में भी बहुत से लोगों का आय का जरिया सुअर पालन ही है, ऐसे में यहाँ पर लोगों की मुश्किलें और बढ़ गई है।

पशुपालन और पशु चिकित्सा (AHV) विभाग के अधिकारियों ने कहा कि ASF का प्रकोप जारी रहने के कारण हर दिन औसतन 100 से अधिक सूअरों की मौत हो रही है, जबकि संक्रामक रोग के कारण विभिन्न जिलों में हर दिन 200 से अधिक सूअरों को मारा जा रहा है।

नॉर्थ ईस्ट प्रोग्रेसिव पिग फार्मर्स एसोसिएशन के अनुसार ये संख्या कहीं ज़्यादा है। “नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर के कारण बहुत सारे लोगों ने अपने फार्म बंद कर दिए हैं; अब वो चाहे, असम हो, अरुणाचल प्रदेश हो या फिर मिजोरम, सरकारी आंकड़ों में जितने भी नंबर्स दिख रहे हैं, उनसे कहीं ज़्यादा सुअरों की मौत हुई है।” एसोसिएशन के सचिव तिमिर बिजॉय श्रीकुमार ने गाँव कनेक्शन से कहा।

पशुपालन विभाग द्वारा उन्हीं सूअरों की मौत का मुआवजा दिया जाता है, जिन्हें संक्रमण रोकने के लिए मारा जाता है। संक्रमण से मर चुके पशुओं का मुआवजा नहीं दिया जाता है।

सुअरों को मारने वाले मुआवजे में 50 प्रतिशत केंद्र और 50 प्रतिशत राज्य सरकार देती है। केंद्र सरकार ने सूअरों के लिए अलग-अलग मुआवजा निर्धारित किया है। छोटे सुअर जिनका वजन 15 किलो तक होगा, उनके लिए 2200 रुपए, 15 से 40 किलो वजन के सूअर के लिए 5800 रुपए, 40 से 70 किलो वजन के सूअर के लिए 8400 रुपए और 70 से 100 किलो तक के सुअर को मारने पर 12000 हजार रुपए दिया जाता है।

असम के गोहपुर जिले की घागरा बस्ती में पोथार एग्रोवेट पिग फार्म चलाने वाले राजीव बोरा के पास साल 2021 में छोटे-बड़े लगभग 300 के करीब सुअर थे, लेकिन अफ्रीकन स्वाइन फीवर फैलने के बाद अब राजिब के फ़ार्म पर एक भी सूअर नहीं बचा है। राजीव के पास अब फिर से फार्म शुरू करने की हिम्मत नहीं बची है

राजिब गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “तीन साल हो गए सुअर फार्म को बंद किए हुए, तब से पोल्ट्री फार्मिंग शुरू कर दी है अगर सब सही रहा तो इस साल अक्टूबर-नवंबर में फिर से पिग फार्मिंग शुरू करूँगा, लेकिन अगर एक बार फिर एएसएफ दिखा तो हिम्मत नहीं होगी।”

क्या इन राज्यों में घट गई सूअरों की संख्या?

20वीं पशुगणना के आंकड़े बताते हैं कि ऐसे में जब पूरे देश में सूअरों की संख्या में कमी आयी थी, पूर्वोत्तर राज्यों में इनकी संख्या में इजाफा हुआ था। 19वीं पशुगणना के अनुसार देश में सूअरों की आबादी 103 करोड़ थी, जो 20वीं पशुगणना के दौरान घटकर 91 करोड़ हो गई। असम में 19वीं पशुगणना के दौरान 1.64 मिलियन सुअर थे, 20वीं पशुगणना के दौरान इनकी संख्या बढ़कर 2.10 मिलियन हो गई।

वहीं मेघालय में 19वीं पशुगणना के दौरान 0.54 मिलियन सुअर थे, 20वीं पशुगणना के दौरान इनकी संख्या बढ़कर 0.71 मिलियन हो गई। जबकि मिजोरम में 19वीं पशु गणना के दौरान 0.25 मिलियन सुअर थे, 20वीं पशुगणना के दौरान इनकी संख्या बढ़कर 0.29 मिलियन हो गई। लेकिन पिछले तीन-चार वर्षों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर के चलते इनकी संख्या घट गई।

तिमिर बिजॉय श्रीकुमार कहते हैं, “जब से पोल्ट्री फार्मिंग में कई बड़ी कंपनियाँ आयी हैं, जब तक पिग फार्मिंग में ऐसा नहीं होगा, यहाँ का फार्मर नुकसान उठाता रहेगा; आज भी यहाँ के हज़ारों किसान पिग फार्मिंग कर रहे हैं, लेकिन यूपी-पंजाब जैसे राज्यों से यहाँ पिग आती हैं।”

इंसानों को नुकसान नहीं पहुँचाती है यह बीमारी

अफ्रीकन स्वाइन फीवर का वायरस कोरोनावायरस जैसा नहीं है, जिससे ये पशुओं से इंसानों में नहीं पहुँचता है। लेकिन ये पशुओं को तेजी से संक्रमित करता है, इसे रोकने के लिए कोई दवा या फिर वैक्सीन नहीं है और संक्रमण के बाद मृत्यू दर 100 प्रतिशत है। पशुपालकों की माने तो अभी भी संक्रमण खत्म नहीं हुआ है।

दूसरे कई देशों में भी हुई हजारों सूअरों की मौत

इस बीमारी की जानकारी पहली बार 1900 के दशक में हुई थी। भारत के साथ ही पिछले कुछ सालों में दूसरे कई देशों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर से सूअरों की मौत हुई थी। खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, मंगोलिया, चीन, रिपब्लिक ऑफ कोरिया, फिलीपींस, इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे दूसरे कई देशों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर की वजह से सूअरों की मौत हुई।

खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, जनवरी 2022 से 57 देशों और क्षेत्रों ने एएसएफ की उपस्थिति की सूचना दी है, जिसने 506,000 सूअरों और 20,400 से अधिक जंगली सूअरों को प्रभावित किया है।

कैसे करें अफ्रीकन स्वाइन फीवर से बचाव?

इस बीमारी को रोकने के लिए इससे संक्रमित पशुओं का तुरंत पता लगा कर उन्हें मानवीय तरीके से ख़त्म करना चाहिए। दूसरे पशुओं में ये बीमारी ना फैले इसके लिए पूरी तरह से सफाई रखनी चाहिए। जानकरी होते ही विशेषज्ञों से राय लेकर सही प्रबंधन करना चाहिए।

इसमें प्रभावित देशों से आने वाले विमानों, जहाजों या वाहनों से निकलने वाले अपशिष्ट खाद्य पदार्थों का सही उपचार और निपटान जरुरी है। प्रभावित देशों से जीवित सूअरों और सूअर के मांस से बने उत्पादों के अवैध आयात पर नज़र रखनी चाहिए जिससे इस बीमारी को फैलने से रोका जा सके।  

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