इस नई तकनीक से आम में नहीं लगते कीट, बाज़ार में मिलता है 4 गुना अधिक दाम

दुनिया भर में अपने आम के लिए मशहूर मलिहाबाद में किसान बागवानी में नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं; इससे न केवल उनकी लागत कम हुई है बल्कि बाज़ार में अच्छा दाम भी मिलने लगा है।
#mango farming

इन दिनों यूपी के अमलौली और मलिहाबाद गाँव में आम की बहार है, लेकिन अगर आप वहाँ जाकर इन्हें देखने की कोशिश करेंगे तो नज़र कुछ नहीं आएगा। आम की जगह दिखेंगी डालियों पर झूलती भूरी और सफेद रंग की थैलियाँ, जो कागज की बनी हैं।

करीब से जाकर देखेंगे तो पता चलेगा कि आम को इन थैलियों के अंदर बंद कर दिया गया है। अब आपको लग रहा होगा कि आखिर पेड़ पर लगे आम को पैक करने की ज़रूरत क्यों पड़ रही? तो इसके लिए आपको भी बाग में जाना होगा।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 33 किमी दूर माल ब्लॉक के अमलौली गाँव के राजकुमार सिंह पिछले कई साल से आम की बागवानी कर रहे हैं। पूरी आम पट्टी में उनकी पहचान प्रगतिशील किसान के रुप में होती है। आम को ढकने वाले फ्रूट बैग के बारे में वो गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “एक समय था जब आम की क्वालिटी बहुत अच्छी होती थी, लेकिन मौसम के उतार-चढ़ाव की वजह से रोग और कीट भी ज़्यादा लगने लगे हैं; इसकी वजह से हम किसानों की लागत काफी बढ़ जाती है।”

वो आगे कहते हैं, “पिछले साल सीआईएसएच (केंद्रीय बागवानी एवं उपोष्ण संस्थान) के वैज्ञानिकों ने कुछ किसानों को फ्रूट बैग उपलब्ध कराए थे; उसको लगाने के बाद आम की क्वालिटी बहुत अच्छी हो गई, इससे हम लोग हम लोगों को कॉन्फिडेंस आया और इस बार भी हमने इसका इस्तेमाल किया है।”

लखनऊ के रहमानखेड़ा में स्थित आईसीएआर-केंद्रीय बागवानी एवं उपोष्ण संस्थान के वैज्ञानिकों ने यहाँ किसानों से पहली बार फ्रूट बैगिंग तकनीक से परिचय कराया। संस्थान के अनुसार इस बार मलिहाबाद फल पट्टी में लगभग एक करोड़ फ्रूट बैग लगाए गए हैं।

सीआईएसएच के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ मनीष मिश्रा फ्रूट बैगिंग तकनीक के बारे में गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “आम की खेती एक व्यापक पैमाने पर उत्तर प्रदेश में होती है और जैसा कि आप जानते हैं कि आम बहुत सारी बीमारी कीड़ों आंधी तूफान बारिश सबकी मार झेलता है; अब बैगिंग टेक्नोलॉजी सहारा है, जिसे पिछले कई साल से केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान किसानों के बीच बड़े पैमाने पर फैला रहा है।”

वो आगे कहते हैं, “यूपी में इसकी शुरुआत सबसे पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुई थी, अब तो पूरे प्रदेश में हो रही है; इसमें दो तरह के बैग इस्तेमाल होते हैं, एक तो सफेद और दूसरा रंगीन, इसके इस्तेमाल के कई सारे फायदे भी हैं।”

आम में प्रमुख समस्या कीटों की हैं, जिनसे बचाने के लिए इनमें अंधाधुंध पेस्टिसाइड का छिड़काव किया जाता है। पद्मश्री कलीमुल्लाह खान इस बारे में गाँव कनेक्शन से अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं, “आम का भविष्य मलिहाबाद में कम हो रहा है, हमारे बचपन में यहाँ पर दवाओं का कोई ज़िक्र नहीं था, सब पेड़ ज़मीन में लगे थे, आपस में नहीं लगे थे; इस कदर फलते थे कि मिसाल दी जाती थी कि फला की बाग में पत्ते कम हैं और आम ज़्यादा हैं।”

ऐसे में बैगिंग तकनीक काफी कारगर साबित हो रही है। डॉ मनीष मिश्रा आगे कहते हैं, “बैगिंग से कई लाभ होते हैं, सबसे पहला लाभ तो ये है कि इसमें जो अंधाधुंध पेस्टिसाइड का स्प्रे होता है तो एक तो उससे रोकथाम होती है, दूसरा कोई बीमारी इसमें नहीं लगती है और यह जो फल पकते हैं तो इनकी शेल्फ लाइफ दूसरे फलों के मुकाबले सात-आठ दिन ज्यादा होती है।”

यही फलों के पकने के बाद सभी का रंग एक तरह ही होता है। एक बैग को चार-पाँच साल तक आराम से इस्तेमाल किया जाता सकता है।

एक आकड़े के मुताबिक भारत अकेले करीब आधी दुनिया का आम उत्पादन करता है जो साल 2019-20 (जुलाई-जून) के दौरान 20.26 मिलियन टन तक पहुँच गया था। यहाँ आम की लगभग 1,000 किस्में उगाई जाती हैं, लेकिन व्यावसायिक रूप से केवल 30 का ही इस्तेमाल किया जाता है।

भारतीय बागवानी के रिकॉर्ड के अनुसार, उत्तर प्रदेश देश में आम का सबसे बड़ा उत्पादक है। इसके बाद आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और बिहार हैं।

मलिहाबाद जैसे क्षेत्रों में आम उत्पादक किसान अब जागरुक हो रहे हैं, लेकिन फ्रूट बैगिंग के साथ एक समस्या भी है, किसान इन्हें छोटे पेड़ों पर तो लगा सकता है, लेकिन यहाँ पर ज़्यादातर पेड़ इतने पुराने और बड़े हो गए हैं कि इनका रखरखाव करने में मुश्किल आ रही है।

बेतहाशा बढ़ते आम के पेड़ पर पद्मश्री कलीमुल्लाह कहते हैं, “पहले यहाँ पर फल पट्टी थी, लेकिन अब वन पट्टी हो गई है, ये हमने गौर किया है , हमने सरकार से भी कहा, अभी जल्द ही मीटिंग हुई थी, तब भी कहा कि पेड़ ज़मीन पर लगे आपस में लगे तो बाग है, लेकिन याद रखिए पेड़ ज़मीन पर लगने के बजाय आपस में लड़ने लगे तो समझिए मुकाबला कर रहा है वो जंगल बन गया है।”

लेकिन अब उद्यान विभाग, वन विभाग और सीआईएसएच ने मिलकर इसका भी हल निकाल लिया है। अब किसान पेड़ों की कटाई-छटाई कर सकते हैं। राजकुमार कहते हैं, “पिछले पाँच साल पहले चले जाएँ, यहाँ के किसान डिप्रेशन में आ गए थे, समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें; क्योंकि इतने ज़्यादा पेड़ बढ़ गए थे, किसान उसे कटवा नहीं सकता था, लेकिन अब किसानों को परमिशन मिल गई कि एक सीमा तक पेड़ की छटाई कर सकते हैं।”

ऐसे में किसानों आने वाले समय में 80 फीट लंबे पेड़ों पर बैगिंग तकनीक का इस्तेमाल करने में कोई परेशानी नहीं होगी, क्योंकि इसकी छटाई की जा सकती है।

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