पिता का कारोबार छोड़कर कैसे लेमनग्रास की ख़ेती से इस किसान ने किया कमाल

अगर किसान चाहे तो ख़ेती से भी अच्छा मुनाफ़ा कमा सकता है, ऐसे ही एक युवा किसान हैं समीर चड्ढा। पिता का कारोबार छोड़कर एक एकड़ से इन्होंने लेमनग्रास की ख़ेती की शुरूआत की जो आज 20 एकड़ तक पहुँच गई है।
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लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। एक तरफ गाँव से युवा खेती छोड़कर नौकरी की तलाश में बड़े शहरों की तरफ जा रहे हैं, वहीं कुछ युवा ऐसे भी हैं जो शहरों से गाँव आकर न सिर्फ ख़ेती कर रहे हैं, बल्कि अच्छा कमा भी रहे हैं। समीर चड्ढा भी ऐसे ही एक युवा किसान हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 40 किमी दूर हरौनी गाँव में 32 साल के किसान समीर लेमन ग्रास की ख़ेती करते हैं। समीर चड्ढा से पहले उनके यहाँ कोई पूरी तरह से ख़ेती से नहीं जुड़ा था, लेकिन आख़िर वो कैसे ख़ेती करने लगे के सवाल पर वे गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “मेरे पिता जी ने एक बार कहा था कि एक बीज़ से हज़ार बीज़ बन जाता है, ये आइडिया मुझे इतना अच्छा लगा कि ये अपने आप में बड़ी चीज है। यही मेरे लिए ख़ेती में आने का एक मोटिवेशन था।”

ख़ेती की शुरूआत समीर ने सब्ज़ियों की फ़सलों से की, लेकिन इनमें लागत तो ज़्यादा लग ही रही थी, इसके साथ मेहनत भी अधिक लगती है और मुनाफा उस हिसाब से बहुत कम था।

समीर के पूर्वज भारत-पाकिस्तान के बँटवारे के समय लखनऊ आए थे। समीर बताते हैं, “पिता जी बताते थे कि मेरे दादा जी और मेरी ग्रेट ग्रैंड मदर लोग पार्टिशन के बाद इण्डिया आए थे। और उन्होंने अपना कारोबार शुरू किया। साल 2010 में मेरे पिता ने ये खेत लिए थे कि आगे कभी काम आएँगे। जब मैंने ख़ेती की शुरुआत सब्ज़ियों से की तो इससे हमें बहुत घाटा हुआ और फिर मार्केट में हमें अच्छा रेट नहीं मिला मिलता हैं तो बहुत निराशा हुई।”

सब्ज़ियों की ख़ेती में घाटा सहने के बाद समीर ने परंपरागत ख़ेती से कुछ हटकर करने का फैसला किया। समीर बताते हैं, “मेरे दिमाग में ये शुरु से था कि परम्परागत ख़ेती से हट के करना है। कुछ ऐसा करना हैं कि जिसका हम प्रोडक्शन करें तो वो नायाब हो।”

वो आगे कहते हैं, “मार्केट में ऐसी चीजों को सर्च करते हुए एरोमैटिक और मेडिशनल फसलों के ऊपर मैंने थोड़ा शोध किया और उससें मुझें पता चला की इंसेंशियल ऑयल की मार्केट में बहुत ज़्यादा डिमांड है। तो बड़े-बड़े देशों जैसे यूएसए, यूरोप, जापान और चाइना में हमारे यहाँ के इसेंसियल ऑयल की बहुत माँग है। बस तभी से मैंने लेमनग्रास की ख़ेती के बारे में सोचा।”

पहले ही साल में समीर की मेहनत रंग लायी उनका मुनाफा दोगुना हो गया और तीसरे साल के आते आते एक एकड़ की फसल अब 20 एकड़ तक फैल गई है। इस पौधे से निकलने वाले तेल की बज़ार में बहुत माँग है। लेमन ग्रास से निकले तेल को कॉस्मेटिक्स, साबुन और फार्मा इंडस्ट्री में काफ़ी इस्तेमाल होता है। यही वज़ह है कि किसानों का इस फसल की ओर रूझान भी बढ़ा है।

अपनी इस सफलता के बारे में समीर बताते हैं, “किसान चाहे तो छोटे स्तर पर भी इसकी ख़ेती शुरू कर सकता है। आप कोई भी काम करें छोटे स्तर से करना चाहिए, हम लोग इस समय अलग अलग टाइप की इरोमैटिक क्राप्स करतें हैं मेडिशनल क्राप्स भी करतें हैं। मैंने अपने पिता को जब कहा कि ख़ेती करना चाहता हूँ उन्होनें मुझें बहुत सहयोग किया और उसी की वज़ह से आज चड्ढा अरोमा फार्मस को खड़ा कर पाया हूँ।

समीर के पिता जे के चड्ढा बताते हैं, “अगर कोई युवा हो और घर से थोड़ा सपोर्ट मिल जाए तो अपने आप राह मिल जाती है। मैंने इसे आज़ादी दे दी कि तुम अपने तरीके से करो मैं पूरी तरह से सपोर्ट करूंगा।”

समीर ने जिस सपने को सच कर दिखाया है वो अब कई किसान खुद पूरा करना चाहते हैं। आज समीर दूसरे किसानों को भी खेती की ट‍्रेनिंग देते हैं। समीर बताते हैं, “मैं ख़ेती को भी एक मार्डन डे बिज़नेस मानता हूँ। हर साल कम से कम 100 से 150 किसानों को ट्रेनिंग दे चुका हूँ, वो लगातार मुझसे जुड़े हुए हैं।”

आप भी कर सकते हैं लेमनग्रास की ख़ेती

अगर आप भी लेमनग्रास की ख़ेती करना चाहते हैं तो यहाँ पूरी जानकारी दी जा रही है। लेमनग्रास की ख़ेती में सिंचाई की बहुत कम ज़रूरत होती है और दूसरी फ़सलों की तुलना में इसमें बीमारियाँ भी कम लगती हैं। इसे छुट्टा गाय और नीलगाय जैसे पशु भी नुकसान नहीं पहुँचाते हैं।

सभी पौधों की तरह लेमनग्रास के पौधों को लगाने की भी एक विधि होती हैं। पौधों में पत्तियाँ ज़्यादा से ज़्यादा हो इसके लिए इसको एक-एक फीट के दूरी पर लगाया जाता है। समीर के मुताबिक़ पौधा लगाने के बाद यह लगभग छह महीने में तैयार हो जाता है। उसके बाद हर 70 से 80 दिनों पर इसकी कटाई कर सकते हैं। साल भर में इसकी पाँच से छह कटाई संभव है।

लेमनग्रास की ख़ेती सूखा प्रभावित इलाकों जैसे मराठवाड़ा, विदर्भ और बुंदेलखंड तक में की जा रही है। केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौध संस्थान, के अनुसार एक हेक्टेयर लेमनग्रास की ख़ेती में शुरु में 30000 से 40000 हज़ार की लागत आती है। एक बार फ़सल लगाने के बाद साल में पाँच से छह कटाई ली जा सकती है, जिससे करीब 100 से 150 किलो तेल निकलता है। ख़र्चा निकालने के बाद एक हेक्टेयर में किसान को हर साल 70 हज़ार से 1 लाख 20 हज़ार रूपये तक का मुनाफ़ा हो सकता है।

एक एकड़ में लगाए गए लेमनग्रास के पौधे से एक कटाई में तकरीबन पाँच टन तक पत्तियाँ निकलती हैं। समीर बताते हैं, “पाँच टन की पत्तियों से 25 लीटर तक तेल निकाला जा सकता है। इसी तरह साल भर में छह कटाई से 100 से 150 लीटर तेल की प्राप्ति हो सकती है। अगर एक लीटर तेल 1200 से 1300 रुपये प्रति लीटर बिके तो भी किसान को तकरीबन एक लाख तक का मुनाफ़ा आसानी से मिल सकता है।”

ख़ेती का सही तरीका

लेमनग्रास की जड़ लगाई जाती है, जिसके लिए पहले नर्सरी तैयार की जाए तो लागत कम हो सकती है। अप्रैल से लेकर मई तक इसकी नर्सरी तैयार की जाती है, एक हेक्टेयर की नर्सरी के लिए लेमनग्रास के करीब 10 किलो बीज़ की ज़रूरत होगी। 55 से 60 दिन में नर्सरी रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। अगर बीज़ उपलब्ध नहीं है तो किसी किसान से लेमनग्रास की जड़ें लेकर भी रोपाई कर सकते हैं।

हर तरह की मिट्टी और जलवायु में पैदा होनी वाली इस फ़सल में गोबर की खाद और लकड़ी की राख सबसे ज़्यादा काम करती है। लेमनग्रास को ज़्यादा निराई गुड़ाई की ज़रूरत नहीं होती, साल में दो से तीन निराई गुड़ाई बहुत हैं। ज़्यादा सूखे इलाकों में पूरे साल में 8 से 10 सिंचाई की ज़रूरत होगी।

लेमनग्रास से तेल निकालने की प्रक्रिया

लेमनग्रास के पत्तियों से तेल निकालने के लिए एक विशेष टंकी आती है, जिसकी क्षमता लगभग एक टन की होती है। उस टंकी में पहले पत्तियों को अच्छे तरीके से भरा जाता है फिर पिंजरे से पत्तियों को इस तरीके से दबाया जाता है ताकि कहीं भी से टंकी के अंदर हवा बनने की जगह नहीं रहे।

इसके बाद टंकी को सावधानी से से बंद कर दिया जाता है। पिंजरे के नीचे टंकी के नीचे वाले हिस्से में पानी होता है। पानी भाप बनकर पाइप के सहारे टंकियों में रखे पत्तियों से होकर गुजरती है । वह पत्तियों का सारा तेल खींचते हुए ऊपर की ओर निकलती है। जिसे पाइप के माध्यम से एक कंडेनसर में ले लिया जाता है।

समीर बताते हैं, “भाप को कंडेनसर में लेने के बाद सबसे पहले उसे ठंडा करने की प्रक्रिया अपनाते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान तेल और पानी अलग अलग दिखता है। तेल का भार पानी से हल्का होता है तो ऊपर रह जाता है पानी नीचे। इस प्रक्रिया के बाद तेल की परत को हम अलग कर देते हैं। इस तरीके से हम लेमन ग्रास के पौधे से तेल निकलते हैं ।”

इस बातों का रखें ध्यान

किसी भी प्रक्रिया को अपनाने के लिए कई सावधानियाँ अपनाई जाती हैं। एक छोटी सी लापरवाही पूरी मेहनत बर्बाद कर सकती है। लेमन ग्रास से तेल निकालने की प्रक्रिया में भी कई सावधानियां अपनानी पड़ती हैं। समीर बताते हैं अगर फ़सल को धूप नहीं मिली हो तो उस समय तेल न निकालें। क्योंकि ऐसे समय बहुत कम तेल की प्राप्ति होगी। फ़सल ज़्यादा पक गई है तो भी निकलने वाले तेल की कमी हो सकती है।

टंकी बहुत अच्छे से बंद होनी चाहिए ताकि भाप की लीकेज नहीं हो। लेमन ग्रास की पत्तियों को करीब तीन से चार घंटे तक आँच देनी चाहिए। सही आँच मिलने पर ही तेल निकलना शुरू होता है। अगर आँच सही से नहीं दी गई तो तेल अच्छी मात्रा में नहीं निकलेगा।

लेमनग्रास की ख़ेती की अधिक जानकारी के लिए यहाँ कर सकते हैं संपर्क :

केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौध संस्थान (सीमैप)

फोन नंबर : 91- 522-2718595, 91- 522-2718513

किसान से संपर्क करें : समीर चड्ढा (91 – 9554180717)

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