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किसानों से रूठकर क्यों चले गए उनके दोस्त केंचुए?

एक समय था जब बारिश के मौसम में सैकड़ों केंचुए दिखाई देने लगते थे, लेकिन आज शायद ही ये केंचुए कहीं दिखाई देते हैं, आखिर केंचुए किसानों से रूठकर कहाँ चले गए? गाँव कनेक्शन के ख़ास कार्यक्रम खेती के डॉक्टर में केचुआ बचाओ, खेती बचाओ मेवालाल इन केंचुओं की अहमियत बता रहे हैं?

पचास साल पहले की तुलना में आज हमारी कृषि और पर्यावरण को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। एक समय था जब एक एकड़ जमीन में करीब चालीस से पैंतालीस लाख केंचुए पाए जाते थे। ये केंचुए मिट्टी में लाखों छेद करते थे, जिससे बारिश का पानी जमीन के भीतर गहराई तक पहुंच जाता था और भूजल का स्तर लगातार रिचार्ज होता रहता था। इससे किसानों को कम सिंचाई की आवश्यकता पड़ती थी, और मिट्टी में ऑक्सीजन की मात्रा भी संतुलित रहती थी। लेकिन आज हालात बदल चुके हैं।

केंचुओं की घटती संख्या से बढ़ती समस्याएँ
किसानों द्वारा अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग के कारण केंचुओं की संख्या में भारी गिरावट आई है। इससे हमारी मिट्टी की संरचना भी बदल गई है, जो पहले मुलायम और छिद्रयुक्त होती थी, अब कठोर और संकुचित हो गई है। इसके कारण बारिश का पानी गहराई तक नहीं जा पाता, जिससे भूजल का स्तर घट रहा है और किसानों को बार-बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ रही है। इसके साथ ही, पानी की खपत बढ़ने से किसानों की ऊर्जा लागत में भी वृद्धि हो रही है, क्योंकि उन्हें अपने पंपिंग सेट अधिक चलाने पड़ रहे हैं।

केचुआ: मिट्टी का प्राकृतिक रक्षक
आज के समय में खेती की उत्पादकता बढ़ाने के लिए केंचुओं की अहम भूमिका को पुनः समझने की आवश्यकता है। यदि हम “केचुआ बचाओ, खेती बचाओ” अभियान की शुरुआत करें, तो हमारी मिट्टी फिर से उपजाऊ हो सकती है और भूजल स्तर भी संतुलित हो सकता है। केंचुआ मिट्टी को न सिर्फ पोली बनाता है, बल्कि इसके मल से प्राकृतिक खाद भी बनती है, जो फसलों की उत्पादकता को बढ़ाने में मदद करती है। यदि हम रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग कम करें, तो केंचुआ अपने आप मिट्टी में वापस आ जाएगा।

रासायनिक खेती का दुष्प्रभाव
1965 तक, हमारी खाद्य सुरक्षा इतनी कमजोर थी कि हमें अनाज के लिए अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से आयात करना पड़ता था। इसके बाद, किसानों ने रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल शुरू किया, जिससे केंचुए मर गए और हमारी मिट्टी की गुणवत्ता भी गिरने लगी। आज, हमारी मिट्टी में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की कमी हो गई है, जिसके परिणामस्वरूप हमें बार-बार सिंचाई की जरूरत पड़ती है।

जैविक खेती से लौट सकती है हरियाली
अगर किसान रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कम करें और जैविक खेती अपनाएं, तो केंचुए फिर से वापस आ सकते हैं। पुणे के अर्थवर्म रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों ने इस पर गहन शोध किया है। उनके अनुसार, एक केंचुआ एक अंडा देता है, जिससे 6 बच्चे निकलते हैं। अगर हम सही तरीके से खेती करें तो केंचुओं की संख्या में बढ़ोतरी हो सकती है, और हमारी मिट्टी की गुणवत्ता भी सुधर सकती है।

माइक्रो कल्चर: समाधान की ओर कदम
इसके लिए, हमने एक माइक्रो कल्चर विकसित किया है, जिसे किसान फ्री में प्राप्त कर सकते हैं। यह खेतों की उत्पादकता को 25 से 40 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है और लागत को 60 से 70 प्रतिशत तक कम कर सकता है। इसके साथ ही, अगर हम गाजर घास, मदार, नीम, और धतूरा जैसी वनस्पतियों से लिक्विड फर्टिलाइज़र बनाएं, तो यह कीटनाशकों के उपयोग को भी कम कर सकता है।

मिट्टी की सेहत के लिए आवश्यक कदम
यदि हम सही तरीके से जैविक खेती अपनाएं, तो हमारी फसल की जड़ें गहराई तक जाएंगी, जिससे पौधे मजबूत होंगे और बारिश या तेज हवाओं के कारण गिरेंगे नहीं। इससे हमारी उत्पादन क्षमता भी बढ़ेगी, और सिंचाई की जरूरत कम हो जाएगी।

सरकार और किसान मिलकर करें प्रयास
यह आवश्यक है कि सरकार और किसान मिलकर इस दिशा में काम करें। सरकार को “केचुआ बचाओ, खेती बचाओ” अभियान चलाना चाहिए, ताकि केंचुओं की संख्या बढ़ाई जा सके और हमारी मिट्टी पुनः उपजाऊ हो सके। अगर हम इस पर काम करें, तो न केवल हमारी कृषि उत्पादकता बढ़ेगी, बल्कि हमारी ऊर्जा लागत भी कम होगी, और हमारी मिट्टी की सेहत सुधर जाएगी।

हमारी मिट्टी का स्वास्थ्य और हमारी फसलों की उत्पादकता दोनों ही केंचुओं की उपस्थिति पर निर्भर करते हैं। अगर हम इस दिशा में काम नहीं करेंगे, तो आने वाले समय में हमें गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए, यह समय है कि हम अपनी पुरानी खेती की पद्धतियों की ओर लौटें और केंचुओं को बचाने के लिए ठोस कदम उठाएं।

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