तकरीबन 15 साल पहले बिहार के मुंगेर के पाटम गाँव में लगभग एक हजार परिवार पान की खेती या व्यापार में लगे हुए थे, लेकिन आज यह संख्या काफी कम हो गई है।
“हमारा पान झारखंड और उत्तर प्रदेश तक जाता है, लेकिन अब हम उन्हें अपने ही जिले में बेचने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है। मुश्किल से 13 किसान हैं जो पान की खेती कर रहे हैं।” जमालपुर प्रखंड के पाटम गाँव के 57 वर्षीय अमर चौरसिया ने गाँव कनेक्शन को मौजूदा स्थिति से रूबरू कराते हुए कहा।
पड़ोसी जिले भागलपुर के भदरिया गाँव में रहने वाले लेखक परमानंद प्रेमी के मुताबिक, बिहार कई तरह के पान की खेती के लिए जाना जाता था। मुंगेर जिले का पाटम अपनी सांची, कपूरी, बंगला और मघई किस्मों के लिए मशहूर था। लेकिन आज पान के किसानों को डर सता रहा है कि अगर ऐसी ही स्थिति बनी रही तो पान के पत्ते की खेती बहुत जल्द अतीत की बात हो जाएगी।
पाटम के पान किसान शिवनाथ शान के लिए 2022 का साल काफी खराब रहा। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैंने दो बीघा जमीन में पान की खेती की थी। लेकिन मेरी 40 फीसदी उपज सूखे के कारण खराब हो गई।”
शाह ने कहा “मुझे 50,000 रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ था। किसानों को पम्पसेट चलाने के लिए प्रति घंटा करीब 150 रुपये देने पड़ते हैं। वहीं एक बीघा जमीन को सींचने में सात से आठ घंटे लग जाते हैं। यानी 700 रुपये से लेकर 900 रुपये प्रति बीघा के बीच खर्चा। लेकिन इसके बावजूद हम अपनी फसल को नहीं बचा सके।’
मौसम की बेरुखी से पान किसान बेहाल
बिहार के कृषि विभाग के मुताबिक, पिछले साल 2022 में राज्य ने 11 जिलों के 7,841 गांवों को सूखाग्रस्त घोषित किया था। मुंगेर इन प्रभावित जिलों में से एक था।
पाटम के 72 वर्षीय किसान कैलाश चौरसिया ने गाँव कनेक्शन को बताया, “पान की फसल के फलने-फूलने के लिए 40 डिग्री (सेल्सियस) से ज्यादा का तापमान नहीं होना चाहिए। हालांकि गर्मियों में यह नियमित रूप से 45 डिग्री या उससे अधिक पर पहुंच जाता है। बारिश और गर्मी का चक्र पूरी तरह से गड़बड़ा गया है।”
उनके अनुसार, पश्चिमी हवाएं पहले कभी-कभार ही आती थीं। लेकिन अब गर्मियों और सर्दियों दोनों के दौरान इनका असर देखने को मिल जाता है। ये हवाएं पान की खेती पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
कैलाश चौरसिया ने कहा, “अब पान उगाने का कोई आदर्श समय नहीं बचा है। और वैसे भी पान के पौधे की देखभाल एक बच्चे की तरह करनी पड़ती है। इसकी खेती करना बड़ी मेहनत का काम है। एक समय था जब इस गाँव के किसान दूसरी जगहों से खेतिहर मजदूर लेकर आते थे। लेकिन अब तो इस गाँव के खेतिहर मजदूरों के लिए ही पर्याप्त काम नहीं है।”
पाटम के एक अन्य किसान विजय चौरसिया ने समझाया कि अगर पान मार्च में बोया जाएगा तो यह अगस्त में कटाई के लिए तैयार हो जाता है। यह छह महीने का चक्र है। विजय ने गाँव कनेक्शन को बताया, “ हर पौधे से पांच साल तक पान के पत्ते निकलते हैं और एक बीघा जमीन पर करीब 4,000 रुपये का खर्चा आता है।”
हाइब्रिड पान ने ली जगह
विजय कहते हैं, “एक समय था जब हमारे गाँव में पान की कई किस्में उगाई जाती थीं, अब सिर्फ बांग्ला और मघई की किस्में ही बची हैं। उनकी भी सीमित मात्रा में खेती की जा रही है। इन किस्मों की मांग भी कम हुई है।”
उन्होंने कहा कि ऐसा हाइब्रिड किस्मों की अधिक मांग के कारण है, जबकि वे स्वदेशी किस्मों की तरह स्वादिष्ट भी नहीं होते हैं।
किसान विक्रम कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, ‘ऐसा नहीं है कि आजकल लोग पान कम खा रहे हैं। सच्चाई यह है कि हाइब्रिड किस्मों ने यहां अपना कब्जा जमा लिया है। पाटम और मुंगेर क्षेत्र में उगाई जाने वाली सांची, कपूरी और बंगला की स्थानीय किस्में अधिक सुगंधित हैं और क्षेत्र की पहाड़ी मिट्टी में अच्छी तरह से बढ़ती हैं। इस खेती में मेहनत की काफी दरकार होती है।”
पान किसानों को आर्थिक सहायता
उन्होंने माना कि किसानों को अनुदान के रूप में मदद की जरूरत है। अगर ऐसा होता है तो पान की खेती फिर से शुरू हो सकती है। लेकिन अभी तक किसानों को किसी भी तरह की कोई मदद नहीं मिली है। वह कहते हैं, “ज्यादातर किसानों ने पान की खेती छोड़ दी है क्योंकि उनके पास अपनी फसलों की सिंचाई करने और उन्हें कीटों से सुरक्षित रखने के लिए पैसे नहीं हैं।”
2020 में बिहार सरकार ने हर पान किसान को 4 लाख रुपये तक का अनुदान देने की एक योजना शुरू की थी। पाटम गाँव में सिर्फ एक या दो ग्रामीणों को ही यह अनुदान मिला है। राहुल कुमार गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “मेरे पिता राजकुमार चौरसिया को 2021 में 4 लाख रुपये का अनुदान मिला था।”
पान की खेती करने वाले बिक्रम कुमार ने गाँव कनेक्शन से कहा, “पाटम में सिर्फ मुट्ठी भर किसानों को यह अनुदान मिला है। इसे ज्यादा से ज्यादा किसानों को दिया जाना चाहिए।”
मुंगेर जिले के बागवानी अधिकारी अनिल कुमार गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “सभी किसानों को अनुदान उपलब्ध कराने में कुछ समय लगेगा, लेकिन हम पान किसानों की मदद के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं।”
बिहार में नालंदा जिले के पान अनुसंधान केंद्र के एक शोधकर्ता शैलेंद्र ने आशा की किरण दिखाते गाँव कनेक्शन को बताया, “बिहार ने औषधि के तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले पान के पत्तों से तेल का उत्पादन शुरू कर दिया है। बहुत जल्द मुंगेर और अन्य जिलों के किसानों को परियोजना में शामिल किया जाएगा। इस पर काम चल रहा है।” उन्होंने कहा कि तीन लाख पत्तियों में से सिर्फ एक प्रतिशत ही तेल निकालने के लिए उपयुक्त होती हैं। इसलिए यह तेल काफी महंगा होगा।