बेबी कॉर्न की खेती करना चाहते हैं? यहाँ मिलेगी पूरी जानकारी
Gaon Connection | Sep 30, 2024, 14:51 IST
पिछले कुछ वर्षों में बेबी कॉर्न का बाज़ार तेजी से बढ़ा है, लेकिन अभी भी बहुत से किसान बेबी कॉर्न की खेती के बारे में नहीं जानते हैं, जबकि कुछ ही महीनों में इससे अच्छी कमाई की जा सकती है।
बेबी कॉर्न मक्का की एक विशेष किस्म है, जिसके भुट्टे अनिषेचित और अपरिपक्व अवस्था में रेशेदार कोपल निकलने के 1-2 दिन बाद तोड़े जाते हैं। यह मुख्य रूप से सब्जी के रूप में उगाई जाती है, जिसकी शहरी क्षेत्रों में दिन-प्रतिदिन बढ़ती माँग देखी जा रही है। बेबी कॉर्न किसानों को नियमित आय के साथ-साथ पोषण युक्त भोजन और पशुओं के लिए हरा चारा भी उपलब्ध कराती है।
इसमें प्रोटीन, फॉस्फोरस, कैल्शियम, आयरन और विटामिन की अच्छी मात्रा पाई जाती है। सब्जियों के अलावा इसे अचार, हलवा, खीर, पकोड़े, सलाद, लड्डू, कैंडी, बर्फी और जैम जैसे विभिन्न व्यंजनों में भी उपयोग किया जाता है।
चलिए जानते हैं खेती का सही तरीका
क्षेत्र का चयन:
बेबी कॉर्न को सामान्य मक्का की फसल से कम से कम 400 मीटर दूर उगाना चाहिए, ताकि परागकण से इसकी गुणवत्ता प्रभावित न हो। इसे शहरी इलाकों के पास उगाना लाभकारी है, जहाँ इसकी माँग अधिक होती है।
मृदा चयन:
यह फसल जलभराव के प्रति अति संवेदनशील होती है। जलभराव की स्थिति में 1-2 दिनों तक पानी रुकने से फसल की उपज में भारी गिरावट हो सकती है। इसलिए इसे अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में ही उगाना चाहिए।
बुआई का समय:
बेबी कॉर्न को 10°C से अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में सालभर उगाया जा सकता है। हालांकि, अगस्त से नवंबर के बीच बोई गई फसल अधिक उपज देती है। उत्तरी भारत में 15 दिसंबर से जनवरी अंत तक ठंड की वजह से इसे नहीं उगाया जा सकता। अच्छी गुणवत्ता वाली फसल के लिए सामान्य मक्का और बेबी कॉर्न की बुआई में 10-15 दिन का अंतराल रखना चाहिए।
किस्में:
बेबी कॉर्न की कुछ प्रमुख किस्में हैं:
उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र: आईएमएचबी 1539, एचएम-4, विवेक हाइब्रिड 27, वीएल बेबी कॉर्न 1
मध्य पश्चिमी क्षेत्र: आईएमएचबी 1532, एचएम-4, शिशु, विवेक हाइब्रिड 27, वीएल बेबी कॉर्न 1
प्रायद्वीपीय क्षेत्र: बेबी कॉर्न जीएवाईएमएच 1, एचएम-4, शिशु
बीज की मात्रा और बीज उपचार:
बेबी कॉर्न की बुआई के लिए प्रति हेक्टेयर 20-25 किलो बीज पर्याप्त होता है। बीज को बाविस्टिन और कैप्टान (1:1) के मिश्रण से (2 ग्राम प्रति किलो बीज) उपचारित करना चाहिए। तना भेदक और तना मक्खी से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड (गाउचो) का प्रयोग करें।
बुआई विधि:
खरीफ के मौसम में बेबी कॉर्न को जलभराव से बचाने के लिए मेड पर बुआई करनी चाहिए। बीज को 3-5 सेंटीमीटर गहराई पर बोना चाहिए। पंक्तियों के बीच 60 सेमी और पौधों के बीच 15-20 सेमी की दूरी होनी चाहिए।
लगा सकते हैं दूसरी फ़सलें
बेबी कॉर्न एक कम अवधि वाली फसल है, जो अंतःफसलीकरण के लिए बहुत उपयुक्त है। सब्जियों, दालों और फूलों के साथ इसे अंतःफसल के रूप में उगाने से अतिरिक्त आय प्राप्त होती है। सर्दियों में मेथी, धनिया, पालक, गाजर जैसी फसलों के साथ इसे उगाया जा सकता है।
सिंचाई और पोषण प्रबंधन:
बेबी कॉर्न में सिंचाई की जरूरत बहुत महत्वपूर्ण होती है, खासकर अंकुरण, घुटनों तक की ऊँचाई, रेशम निकलने और तुड़ाई की अवस्थाओं में। हल्की और बार-बार सिंचाई से फसल की गुणवत्ता और उपज बेहतर होती है।
पोषक तत्वों का प्रबंधन:
बेबी कॉर्न में बुआई, चार पत्ती अवस्था, आठ पत्ती अवस्था और नर पुष्पन से पहले उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है।
तुड़ाई और डिटेसलिंग (नर पुष्प हटाना):
बेबी कॉर्न की तुड़ाई सुबह या शाम के समय करनी चाहिए। खरीफ की फसल 45-50 दिनों में और रबी की फसल 70-80 दिनों में तैयार हो जाती है। बेबी कॉर्न की तुड़ाई सिल्क के 1-3 दिन बाद करनी चाहिए, जब सिल्क की लंबाई 1-2 सेंटीमीटर हो।
उत्पादन और लाभ:
बेबी कॉर्न की खेती से प्रति हेक्टेयर 1.8-2.0 टन छिलका रहित भुट्टे (7-9 टन छिलके सहित) का उत्पादन लिया जा सकता है। इसके अलावा, 25-30 टन हरा चारा भी प्राप्त होता है। एक हेक्टेयर में इसकी खेती से 50,000-60,000 रुपये का शुद्ध लाभ हो सकता है।
साभार (शांति देवी बम्बोरिया, सीमा सेपट और सुमित्रा देवी बम्बोरिया) शांति देवी बम्बोरिया, सीमा सेपट, भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान, लुधियाना, में वैज्ञानिक हैं जबकि सुमित्रा देवी बम्बोरिया पंजाब श्री करण नरेंद्र कृषि महाविद्यालय, जोबनेर, जयपुर, राजस्थान में)
इसमें प्रोटीन, फॉस्फोरस, कैल्शियम, आयरन और विटामिन की अच्छी मात्रा पाई जाती है। सब्जियों के अलावा इसे अचार, हलवा, खीर, पकोड़े, सलाद, लड्डू, कैंडी, बर्फी और जैम जैसे विभिन्न व्यंजनों में भी उपयोग किया जाता है।
चलिए जानते हैं खेती का सही तरीका
क्षेत्र का चयन:
बेबी कॉर्न को सामान्य मक्का की फसल से कम से कम 400 मीटर दूर उगाना चाहिए, ताकि परागकण से इसकी गुणवत्ता प्रभावित न हो। इसे शहरी इलाकों के पास उगाना लाभकारी है, जहाँ इसकी माँग अधिक होती है।
मृदा चयन:
यह फसल जलभराव के प्रति अति संवेदनशील होती है। जलभराव की स्थिति में 1-2 दिनों तक पानी रुकने से फसल की उपज में भारी गिरावट हो सकती है। इसलिए इसे अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में ही उगाना चाहिए।
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बेबी कॉर्न को 10°C से अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में सालभर उगाया जा सकता है। हालांकि, अगस्त से नवंबर के बीच बोई गई फसल अधिक उपज देती है। उत्तरी भारत में 15 दिसंबर से जनवरी अंत तक ठंड की वजह से इसे नहीं उगाया जा सकता। अच्छी गुणवत्ता वाली फसल के लिए सामान्य मक्का और बेबी कॉर्न की बुआई में 10-15 दिन का अंतराल रखना चाहिए।
किस्में:
बेबी कॉर्न की कुछ प्रमुख किस्में हैं:
उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र: आईएमएचबी 1539, एचएम-4, विवेक हाइब्रिड 27, वीएल बेबी कॉर्न 1
मध्य पश्चिमी क्षेत्र: आईएमएचबी 1532, एचएम-4, शिशु, विवेक हाइब्रिड 27, वीएल बेबी कॉर्न 1
प्रायद्वीपीय क्षेत्र: बेबी कॉर्न जीएवाईएमएच 1, एचएम-4, शिशु
बीज की मात्रा और बीज उपचार:
बेबी कॉर्न की बुआई के लिए प्रति हेक्टेयर 20-25 किलो बीज पर्याप्त होता है। बीज को बाविस्टिन और कैप्टान (1:1) के मिश्रण से (2 ग्राम प्रति किलो बीज) उपचारित करना चाहिए। तना भेदक और तना मक्खी से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड (गाउचो) का प्रयोग करें।
बुआई विधि:
खरीफ के मौसम में बेबी कॉर्न को जलभराव से बचाने के लिए मेड पर बुआई करनी चाहिए। बीज को 3-5 सेंटीमीटर गहराई पर बोना चाहिए। पंक्तियों के बीच 60 सेमी और पौधों के बीच 15-20 सेमी की दूरी होनी चाहिए।
लगा सकते हैं दूसरी फ़सलें
बेबी कॉर्न एक कम अवधि वाली फसल है, जो अंतःफसलीकरण के लिए बहुत उपयुक्त है। सब्जियों, दालों और फूलों के साथ इसे अंतःफसल के रूप में उगाने से अतिरिक्त आय प्राप्त होती है। सर्दियों में मेथी, धनिया, पालक, गाजर जैसी फसलों के साथ इसे उगाया जा सकता है।
सिंचाई और पोषण प्रबंधन:
बेबी कॉर्न में सिंचाई की जरूरत बहुत महत्वपूर्ण होती है, खासकर अंकुरण, घुटनों तक की ऊँचाई, रेशम निकलने और तुड़ाई की अवस्थाओं में। हल्की और बार-बार सिंचाई से फसल की गुणवत्ता और उपज बेहतर होती है।
पोषक तत्वों का प्रबंधन:
बेबी कॉर्न में बुआई, चार पत्ती अवस्था, आठ पत्ती अवस्था और नर पुष्पन से पहले उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है।
तुड़ाई और डिटेसलिंग (नर पुष्प हटाना):
बेबी कॉर्न की तुड़ाई सुबह या शाम के समय करनी चाहिए। खरीफ की फसल 45-50 दिनों में और रबी की फसल 70-80 दिनों में तैयार हो जाती है। बेबी कॉर्न की तुड़ाई सिल्क के 1-3 दिन बाद करनी चाहिए, जब सिल्क की लंबाई 1-2 सेंटीमीटर हो।
उत्पादन और लाभ:
बेबी कॉर्न की खेती से प्रति हेक्टेयर 1.8-2.0 टन छिलका रहित भुट्टे (7-9 टन छिलके सहित) का उत्पादन लिया जा सकता है। इसके अलावा, 25-30 टन हरा चारा भी प्राप्त होता है। एक हेक्टेयर में इसकी खेती से 50,000-60,000 रुपये का शुद्ध लाभ हो सकता है।
साभार (शांति देवी बम्बोरिया, सीमा सेपट और सुमित्रा देवी बम्बोरिया) शांति देवी बम्बोरिया, सीमा सेपट, भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान, लुधियाना, में वैज्ञानिक हैं जबकि सुमित्रा देवी बम्बोरिया पंजाब श्री करण नरेंद्र कृषि महाविद्यालय, जोबनेर, जयपुर, राजस्थान में)