कैसे किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रहा अरोमा मिशन; सगंध फसलों की खेती के साथ प्रोसेसिंग का भी दिया जा रहा प्रशिक्षण

पिछले कई वर्षों से सीएसआईआर-सीमैप लगातार किसानों के लिए काम कर रहा था, जिसे एक मिशन बनाकर पूरे देश में लागू किया गया है और इसमें एक दर्जन से ज्यादा सगंध किस्मों की फसलें शामिल की गई हैं।
#aroma mission

देश में औषधीय व सगंध पौधों की खेती से किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए अरोमा मिशन की शुरुआत की गई है। इस प्रोजेक्ट की अगुवाई सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय एवं सगंध संस्थान कर रहा है। मिशन के तहत किसानों को सगंध और औषधीय गुण वाले पौधों की खेती के लिए बीज, तकनीकि और बाजार मुहैया कराया जा रहा है।

एरोमा मिशन के अंतर्गत किसानों को न सिर्फ इन पौधों की खेती की जानकारी, पौध और प्रशिक्षण दिया जाता है, बल्कि उसके प्रसंस्करण और मार्केटिंग में भी मदद की जाती है। गाँव कनेक्शन ने सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय एवं सगंध संस्थान, लखनऊ के निदेशक डॉ प्रबोध कुमार त्रिवेदी से खास बात की है।

डॉ प्रबोध कुमार त्रिवेदी बताते हैं, “अरोमा मिशन के जरिए हमारा ध्येय ये है कि हम किसानों की आय को कैसे बढ़ाएं और इंड्रस्टी की कैसे मदद करें।”

वो आगे कहते हैं, “सीमैप और जो दूसरे संस्थान हैं, उन्होंने एरोमेटिक प्लांट की कई उच्च किस्में विकसित की हैं, साथ ही उन्हें किसानों तक पहुंचाया और किसानों को ट्रेनिंग दी की किस तरह से वो इसकी खेती करें। यही नहीं प्रोसेसिंग के बाद जो ऑयल निकलकर आ रहा है उसको इंडस्ट्री तक कैसे पहुंचाएं ये भी बताया।”

इस समय सीमैप अरोमा मिशन के तहत करीब 24 राज्यों में किसानों के साथ काम कर रहा है और 3000 किसानों के क्लस्टर बने हुए हैं, इससे ये फायदा हुआ जो भी ऐरोमैटिक क्रॉप हैं उन पर बहुत अच्छा काम हुआ है।

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की सभी प्रयोगशालाएं सीमैप की अगुवाई में किसानों के लिए एरोमा मिशन के जरिए काम कर रही हैं। डॉ त्रिवेदी आगे बताते हैं, “लेमन ग्रास, जिरेनियम, मेंथा जैसी फसलों की खेती से ये हुआ कि देश में अब बाहर से ऑयल नहीं मंगाना पड़ता, अगर मेंथा की बात करें तो पिछले कई साल से भारत सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक बना है, यही नहीं लेमन ग्रास में अभी तक बाहर से मंगाना पड़ता था, लेकिन इस बार 600 टन से ज्यादा लेमन ग्रास ऑयल हमने एक्सपोर्ट किया। और लेमन ग्रास ऑयल बड़े एक्पोर्टर के रुप में हम विश्व भर में उभरकर आए हैं।

दूसरी भी फसलों के किस्में भी हमने किसानों को दिए न केवल उन्हें खेती प्रशिक्षण दिया बल्कि उन्हें प्रोसेसिंग के लिए भी प्रशिक्षित किया है। यही नहीं किसानों को इंडस्ट्री से भी संपर्क किया।

मिशन के जरिए न सिर्फ किसानों को बीज, पौध और प्रशिक्षण दिया जा रहा है बल्कि उसकी प्रोसेसिंग (प्रसंस्करण) और उसके मार्केटिंग को भी एक मंच पर लाया जा रहा है। “हम लोगों ने ये भी कोशिश की है कि किसान और इंडस्ट्री एक मंच पर आएं। किसानों को पता होना चाहिए कि उनके फसल कौन खरीद रहा है, वो इंडस्ट्री की मांग के मुताबिक खेती करें, एरोमा मिशन पर किसान और इंडस्ट्री दोनों के लिए व्यवस्था है।’ प्रो. त्रिपाठी कहते हैं। एरोमा मिशन का फायदा उठाने के लिए किसानों और व्यापारियों को वेबसाइट पर पंजीकरण कराना होगा। पंजीकृत लोग आपस में संवाद भी कर सकेंगे।

अरोमा मिशन के जरिए हम कुछ ऐसे आदिवासी क्षेत्रों तक पहुंचे हैं, जहां पहुंचना मुश्किल था, देश भर में हमने ऐसे 20 क्ल्स्टर बनाएं हैं। कुछ तो ऐसे क्षेत्र हैं जहां पहुंचने के लिए सड़क तक नहीं थी, वहां तक हमारे वैज्ञानिक पहुंचे और उन्हें बताया कि कैसे ऐरोमैटिक प्लांट से उनकी आमदनी बढ़ सकती है।

साथ ही साथ हम नॉर्थ ईस्ट के राज्यों तक पहुंचे हैं, हम किसानों से हमेशा कहते हैं कि परंपरागत फसलों की खेती तो करते ही रहें, लेकिन बाढ़ और सूखाग्रस्त क्षेत्र में खस जैसी फसलों की खेती करें।

असम के माजुली द्वीप पर जहां पर साल के ज्यादातर महीनों में पानी भरा रहता है वहां के किसान खस की खेती कर रहे हैं।

अभी भी कुछ ऐसी एरोमैटिक ऑयल हैं, जिन्हें बाहर से मंगाना पड़ता है, जैसे कि जिरेनियम को 90% अभी भी बाहर से आयात किया जाता है, हमारी कोशिश है कि अरोमा मिशन के अगले चरण में हम इन फसलों पर भी काम करें।

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