अगर आपसे पूछा जाए कि भारत में सेब की खेती कहाँ होती है, तो जवाब होगा, हिमाचल प्रदेश और कश्मीर; लेकिन अब ये बात पुरानी हो गई है। अब मैदानी क्षेत्रों में भी सेब उगाया जा सकता है।
मैदानी क्षेत्रों में सेब की बागवानी के लिए अभी तक विदेशी शोध संस्थानों द्वारा कुछ प्रजातियाँ विकसित की गई थी। लेकिन उनका भारत की उपोष्ण जलवायु में परीक्षण या मूल्यांकन नहीं होने के कारण इसके बारे में जागरूकता का अभी तक अभाव था।
भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान ने सेब की फसल को मैदानी क्षेत्रों में लोकप्रिय बनाने के लिए काफी काम किया है। इसके तहत सेब की कम शीतलन आवश्यकता वाली प्रजातियों, जिनमें फूल आने के लिए 250- 300 सर्दी की ज़रूरत होती है, इस किस्म का परीक्षण उपोष्ण जलवायु में किया गया।
इस अध्ययन से मिले रिजल्ट में यह भ्रम दूर हो गया कि सेब की बागवानी उपोष्ण जलवायु क्षेत्रों में ही संभव है। यह अध्ययन उपोष्ण क्षेत्रों में कृषि और बागवानी के विविधीकरण में नया विकल्प प्रदान करने की क्षमता रखता है।
कम शीतलन की ज़रूरत वाली प्रजातियों में अन्ना, डॉर्सेट गोल्डन, एचआर एमएन-99, इन शेमर, माइकल, बेबर्ली हिल्स, पार्लिन्स ब्यूटी, ट्रापिकल ब्यूटी, पेटेगिल, तम्मा शामिल हैं। संस्थान में अन्ना, डार्सेट गोल्डन और माइकल प्रजाति के पौधे पर 4 वर्षों के अध्ययन से प्राप्त अनुभव के आधार पर किया गया।
अन्ना – यह सेब की दोहरी उद्देश्य वाली प्रजाति है जो गर्म जलवायु में अच्छी तरह से विकसित होती है और बहुत जल्दी पककर तैयार भी होती है। पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाली सेब की प्रजातियों को पुष्पन और फलन के लिए कम से कम 450- 500 घंटे ठंड की ज़रूरत होती है। इस प्रजाति के फल जून माह में परिपक्व हो जाता है। फलों के परिपक्व होने पर रंग का विकास पीली सतह पर लाल आभा के साथ होता है।
फल देखने में गोल्डन डिलीशियस जैसे लगते हैं। यह जल्दी और अधिक फलन वाली किस्म है। जून महीने में सामान्य तापमान पर लगभग 7 दिनों तक इनका भण्डारण किया जाता है। वर्गीकरण के अनुसार अन्ना सेब एक सेल्फ स्टेराइल प्रजाति है। अध्ययन के तीसरे साल वर्ष के दौरान परागण दाता किस्म डार्सेट गोल्डन के पौधे के पुष्पन के कारण अन्ना के वृक्षों पर फलन अधिक पाया गया। इसलिए कि अन्ना सेब की बागवानी करते समय परागण दाता प्रजाति जैसे डोर्सेट गोल्डन किस्में भी लगा देनी चाहिए।
डार्सेट गोल्डनः- डार्सेट गोल्डन भी सेब की ऐसी प्रजाति है जो कि गर्म क्षेत्रों के लिए विकसित की गई है। जहाँ शीत ऋतु में 250- 300 घंटे सर्दी होती है । अन्ना किस्म की सफल बागवानी में अगर उचित दूरियों पर 20 प्रतिशत पौधे डोर्सेट गोल्डन प्रजाति के लगाए जाए जिससे पूरे बाग में उनके द्वारा उत्पन्न परागकण उपलब्ध हो सके तो अच्छे परिणाम आते हैं।
पौध रोपण की तैयारियाँ और जानकारी
सबसे पहले सरकारी पौधशाला या राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त पौधशाला से पौधों के बारे में जानकारी ले लेनी चाहिए ताकि आपको समय पर पूरा मिल सके।
बागवानी करने वाले किसान को यह सलाह दी जाती है कि सेब की बागवानी के लिए आदर्श पी-एच मान 6- 7 है, मृदा में जलजमाव नहीं होना चाहिए साथ ही उचित जल निकास वाली मिट्टी खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है।
इन्हें सूर्य के प्रकाश की कम से कम 6 घंटे की आवश्यकता होती है। प्रति पौधा 15 किग्रा. सड़ी गोबर की खाद का इस्तेमाल किया जा सकता है। सेब की प्रजातियों की चयनित प्रजातियों को वर्गाकार 5X5 या 6X6 मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए। पौध रोपण के समय यह ध्यान रखना जरुरी रहता है कि मूलवृंत और साकुर के जोड़ के स्थान, जोकि एक गांठ के रूप में आसानी से दिखाई देता है, कभी भी भूमि में दबना नहीं चाहिए।
नवम्बर से जनवरी तक पौधों की लगभग 60 प्रतिशत पत्तियाँ गिर जाती हैं। पत्तियों के गिरने पर किसान भाइयों को चिंता नहीं करनी चाहिए। यह इन पौधों को ठंड के मौसम में न्यूनतम तापमान को सहने और अगले मौसम में फूल लगने की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
इन कीट बीमारियों से करें सुरक्षा
हानिकारक कीटों में मुख्य रूप से अगस्त- सितम्बर में हेयर कैटर पिलर का प्रकोप होता है इसके बचाव लिए डाइमेथोएट- 2 मिली लीटर की दर से तुरन्त छिड़काव करनी चाहिए। जुलाई के समय बरसात के साथ कुछ फलों में सड़न की समस्या दिखाई पड़ती है जिसके उपचार के लिए किसी भी सुरक्षित फफूंदीनाशक कार्वेन्डाजिम या थियोफेनेट मिथाइल का 0.1 प्रतिशत की दर से छिड़काव करके किया जा सकता है। बेहतर तो यही होता है, कि बरसात के पहले ही फलों को तोड़ लिया जाए।