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गन्ने के इस देश में अचानक टमाटर खीरा की ख़ेती क्यों करने लगे हैं किसान

मॉरीशस को गन्ने का देश कहा जाता है, लेकिन बाज़ार में टमाटर और खीरे की बढ़ती मांग अब यहाँ के किसानों को आसान विकल्प लगने लगा है। कई किसान अब सब्ज़ी उगाने के तरीके सीख रहे हैं और सरकार भी प्रोत्साहित कर रही है। इन किसानों में बड़ी तादाद महिलाओं की है।
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मॉरीशस के फ़्लॉक ज़िले में आम और लीची के बागों के बीच टमाटरों को निहारती संगीता बुलिवान ख़ुशी से फूले नहीं समा रही हैं। इस बार गन्ने से ज़्यादा मुनाफा उन्हें टमाटर और खीरे से हुआ है। महज 150 दिनों में वो मालामाल हो गई हैं।

65 साल की संगीता कभी फैशन डिजाइन में अपने हुनर से अच्छी आमदनी कर लेती थीं लेकिन एक दिन अपनी खाली जमीन पर सब्ज़ी उगाने का ऐसा ख्याल आया कि टमाटर और खीरा की ख़ेती में अब वो मास्टर हो गई हैं। उनके खेत में अब तमाम महिलाएँ इसे उगाने की तरकीब सिखने आती हैं।

संगीता दो एकड़ में टमाटर और खीरा की ख़ेती कर रही है। इसे वो पॉली हाउस में उगाती हैं जिसके लिए मॉरीशस सरकार ने उन्हें बीस लाख रूपये की आर्थिक मदद की है। यहाँ की सरकार पॉली हॉउस बनाने और सब्ज़ी को सही बाज़ार तक पहुंचाने में किसानों की हर संभव मदद करती है।

संगीता बुलिवान कहती हैं, “पॉली हाउस नियंत्रित तापमान में फसल उगाने में काफी सही होता है, जिससे फसल को नुकसान होने की संभावना कम होती है। पॉलीहाउस के अंदर कीट, कीड़ों और बीमारियों के फैलने की संभावना भी कम होती है इसलिए पॉली हाउस में ही टमाटर और खीरा लगाया है।”

मॉरीशस में टमाटर खुदरा बाज़ार में 200 रूपये किलो तक बिकता है। (मॉरीशस में एक रुपया भारत के 1 रुपए 84 पैसे के बराबर होता है) इस हिसाब से देखे तो टमाटर का अच्छा बाज़ार है। यही हाल खीरे का है जो 150 रूपये किलो तक है।

मॉरीशस में कृषि वैज्ञानिक राजन दसोय कहते हैं, “अब सब्जी में भी यहाँ के लोग दिलचस्पी ले रहे हैं खास कर पॉली हाउस में। अगर खेती की प्रक्रिया का सही ढंग से पालन किया जाए तो पॉली हाउस खेती 100 प्रतिशत लाभदायक है। एक पॉलीहाउस का निर्माण महंगा हो सकता है, लेकिन सरकार की मदद और किसानों की मेहनत से अब जगह जगह आप इसे देख सकते हैं। पॉलीहाउस खेती किसानों को नई प्रौद्योगिकी नवाचार देती है ताकि हम फसलों को पर्यावरण के अनुकूल विकसित कर सकें।”

वे कहते हैं, “टमाटर एक ऐसी फसल है, जिसकी माँग बाज़ार में पूरे साल रहती है। टमाटर की खेती किसानों के लिए अतिरिक्त आय का एक बेहतरीन ज़रिया है। इसकी कुछ ऐसी किस्में हैं, जिसमें न कीट लगते हैं और न ही रोग होता है। इन किस्मों की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। आलू के बाद टमाटर दूसरी सबसे महत्वपूर्ण फसल हैं। ये अलग बात हैं कि आलू यहाँ बाहर से आता है। खीरा जरूर मॉरीशस में अब जगह जगह उगाया जाने लगा है। कई किसान अब इसकी खेती कर रहे हैं जिसमें कई महिलाएँ हैं। क्यूरपिप और मौका जिले में काफी किसान इसको कर रहे हैं।

टमाटर उत्पादन वाले बड़े देश

दुनिया भर में हर साल 177,118,248 टन टमाटर का उत्पादन होता है। चीन की अगर बात करें तो प्रति वर्ष 56,423,811 टन उत्पादन मात्रा के साथ दुनिया में सबसे बड़ा टमाटर उत्पादक है। भारत 18,399,000 टन सालाना उत्पादन के साथ दूसरे स्थान पर आता है। कनाडा , ब्राजील, तुर्की ,मिस्र, इटली,रूस और अमेरिका भी टमाटर उत्पादक देशों में हैं। इंडोनेशिया 883,242 के साथ 23 वें स्थान पर है।

भारत में टमाटर की आठ प्रमुख किस्में हैं। ये ऐसी हैं जिन्हें खेती के लिहाज से काफी बेहतर माना जाता है। इनमें कीट लगने की संभावना न के बराबर है। मॉरीशस और अफ्रीका के दूसरे कई देशों के किसान अपनी जलवायु के हिसाब से इन किस्मों को लगाने का प्रयोग कर रहे हैं।

भारत में टमाटर की खेती ओडिशा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, बिहार, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल और आंध्रप्रदेश में ज़्यादा में की जाती है। इन राज्यों से पड़ोस के दूसरे राज्यों में भेजा जाता है। टमाटर की फसल औसतन 150 दिनों में तैयार हो जाती है। दुनिया भर में टमाटर 15000 से अधिक किस्मों में आते हैं वहीं भारत में टमाटर की लगभग 1000 प्रजातियाँ पाई जाती हैं ,लेकिन कुछ ही व्यावसायिक रूप से उपलब्ध किस्में हैं।

दिव्या – यह टमाटर की संकर किस्म रोपाई से 75 से 90 दिन में फल देने लगती है, यह किस्म पछेता झुलसा और आँख सडन रोग रोधी किस्म है, इसके फल लम्बे समय तक ख़राब नहीं होते है। पैदावार प्रति हेक्टेयर 400 से 500 क्विंटल तक प्राप्त होती है।

अर्का विशेष – इस किस्म के टमाटर का उपयोग प्यूरी, पेस्ट, केचअप, सॉस, बनाने के लिए किया जाता है। इस किस्म से किसान 750 से 800 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन ले सकते हैं। इसके एक फल का वजन 70 से 75 ग्राम का होता है।

पूसा गौरव – इसके फल चिकने मध्यम आकार के और पूरी तरह लाल रंग के होते हैं। फलों का छिलका मोटा होता है। इसलिए इन्हें दूर बाजारों में बिक्री के लिए भेजा सकता है। इसे बसंत गर्मी और खरीफ के मौसम में उगाया जा सकता है और इसकी औसत पैदावार 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

अर्का अभिजीत – इस किस्म के पौधे अर्ध-दृढ़ होते हैं और गहरे हरे पत्ते वाले होते हैं। फल गोल और मध्यम आकार (65 से 70 ग्राम) हरे कंधे वाले होते हैं। मोटे गूदे वाले फलों को 17 दिन भंडारित करना और लंबे समय तक परिवहन करना आसान है। यह पौधा जीवाणु विल्ट के प्रति प्रतिरोधी है। यह ख़रीफ़ और रबी सीज़न के दौरान 140 दिनों में पक जाता है।

अर्का रक्षक- ये संकर किस्म मानी जाती है, जो टमाटर के तीन प्रमुख रोगों, पत्ती मोड़क विषाणु, जीवाणु झुलसा और अगेती धब्बे की प्रतिरोधी है। 140 दिन में तैयार हो जाने वाली टमाटर की ये किस्म भी फ़ूड प्रोसेसिंग प्रॉडक्ट्स के लिए सही है। इस किस्म से खेती करने में प्रति हेक्टेयर 75 से 80 टन उत्पादन मिलता है। इसके फल चौकोर से गोल, वज़न मध्यम से भारी 75 से 100 ग्राम गहरे लाल रंग के होते हैं। इसे खरीफ, रबी और गर्मी के मौसम में उगाया जा सकता है।

अर्का अभेद – टमाटर की ये एक हाइब्रिड किस्म है। इसके पौधे गहरे हरे पत्ते के साथ अर्ध-निर्धारित होते हैं। ये किस्म 140 से 150 दिनों की फसल है। इसका एक फल 90-100 ग्राम वजनी होता है। टमाटर की इस किस्म की खेती से किसान प्रति हेक्टेयर 70 से 75 टन की उपज ले सकते हैं। इस किस्म की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अच्छी है।

अर्का मेघली – टमाटर की इस किस्म की उत्पादन क्षमता तकरीबन 18 टन प्रति हेक्टेयर है। अगर बात करे इसके फल की तो वो मध्यम आकार का 65 ग्राम वजनी होता है। टमाटर की ये किस्म 125 दिनों में तैयार हो जाती है। बारिश वाले क्षेत्रों में भी टमाटर की इस किस्म की खेती की जा सकती है ,ये किस्म खरीफ़ मौसम के लिए सही है।

अभिनव – यह एक अर्ध-निश्चयी पौधा है, इसे कही दूर भेजा जा सकता है। इस किस्म का फल रंग में चमकदार और गहरा लाल होता है और फसल रोपण के 60-65 दिन बाद तैयार हो जाती है। खरीफ मौसम में टमाटर की इस किस्म की खेती अधिक होती है। इस किस्म के फल ठोस होते हैं। इस किस्म के फल अच्छी गुणवत्ता वाले और मध्यम आकार (80 से 100 ग्राम) के साथ बहुत मजबूत होते हैं।

मॉरीशस में प्रवासी भारतीयों के संगठन गोपियों और आईएमएफएफ अब खेती बागवानी में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को भारतीय तकनीक और कृषि संबंधी जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं। कोशिश है कि दोनों देशों के किसानों को एक दूसरे की आधुनिक तकनीक और जानकारी मिल सके। मॉरीशस में करीब 70 फीसदी किसान गन्ने की खेती करते हैं। टमाटर और खीरा की खेती में हालाँकि नए किसान अब ज़्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं।    

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