अगर आपसे कहा जाए बिना रासायनिक खाद के भी फसल का बेहतर उत्पादन हो सकता है तो शायद आपको यकीन नहीं होगा; लेकिन ये सच है। कृषि वैज्ञानिक नाडेप कम्पोस्ट को किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं मान रहे हैं।
नाडेप कम्पोस्ट तकनीक के तहत जमीन पर टांका बनाया जाता है। इसमें कम से कम गोबर का इस्तेमाल करके ज्यादा मात्रा में अच्छी खाद तैयार की जा सकती है। इस तकनीक से सड़ी खाद बहुत अच्छी गुणवत्ता की होती है और बेकार उपयोग में न आने वाले पदार्थों का इस्तेमाल होता है।
कृषि विज्ञान केन्द्र शाहजहाँपुर में सहायक प्राध्यापक (कृषि प्रसार) के पद पर तैनात डॉ नरेन्द्र प्रसाद जैविक खाद को तैयार करने पर जोर देते हैं। किसानों को लाभ पहुँचाने वाली और मिट्टी की सेहत सुधारने की पूरी क्षमता रखने वाली नाडेप कंपोस्ट कम समय में तैयार होने वाली खाद है।
डॉ नरेन्द्र प्रसाद इसको तैयार करने की विधि बहुत सरल ढंग से समझाते हैं, “एक तरफ रासायनिक खाद जहाँ सेहत के लिए ठीक नहीं है वहीं दूसरी तरफ मिट्टी की सेहत पर भी इसका बहुत बुरा असर पड़ता है।”
वह आगे बताते हैं कि “मिट्टी की सेहत सुधारने के लिए जैव उर्वरक काफी उपयोगी होते हैं इसके अलावा खाद तैयार करने के विभिन्न तरीके हर किसान को सीखने चाहिए।”
नाडेप कंपोस्ट एक ऐसी ही खाद है जो मिट्टी की सेहत के लिए काफी अच्छी है।
नाडेप कम्पोस्ट बनाने का तरीका
इसे बनाने के लिए जमीन के ऊपर ईट का एक आयताकार टांका बनाया जाता है जिसकी दीवारें 9 इंच चौड़ी होती है। यह टांका 12 फीट लंबा 5 फुट चौड़ा तथा 3 फीट ऊंचा होता है। टैंक को बनाते समय नीचे की दो ईंटें जोड़ने के पश्चात तीसरी ईंट के समय प्रत्येक ईट इस तरह जगह छोड़ कर लगाएं कि एक उनमें छेद तैयार होते जाएँ। 7 इंच का छेद चारों तरफ की दीवारों में छोड़ देना चाहिए।
इन छेदों की वजह से जीवाणु द्वारा खाद जल्दी तैयार होती है। नाडेप कंपोस्ट बनाने के लिए एक छायादार स्थान चुनें। इसे छायादार स्थान में तैयार किया जाता है। नाडेप कंपोस्ट बनाने के लिए आवश्यक सामग्रियों की बात करें तो इसमें वानस्पतिक पदार्थ जैसे पौधों के सूखे पत्ते, टहनियाँ , जड़, छिलके, डंठल, खरपतवार, भूसा, पैरा, सब्जियों के छिलके, गौशाला का बिछावन और घास आदि शामिल हैं। इसमें कांच पत्थर और प्लास्टिक नहीं होनी चाहिए।
इसमें लगभग एक कुंतल गोबर की आवश्यकता होती है इसके अतिरिक्त सूखे खेत की मिट्टी या काली मिट्टी लगभग दो कुंतल के करीब इकट्ठा कर लेनी चाहिए। इस मिट्टी को भुरभुरा बना लें। गोमूत्र से युक्त मिट्टी विशेष लाभ कर होती है और फिर लगभग डेढ़ से दो हजार लीटर पानी की आवश्यकता होती है।
नाडेप कंपोस्ट खाद को बनाने के लिए सबसे पहले उसके अंदर की दीवार और फर्श पर गोबर और पानी का घोल छिड़क कर गीला कर देना चाहिए। पहली परत में वनस्पति पदार्थ भर कर उसके बाद उसमें 100 से 125 किलोग्राम सामग्री इकट्ठा अवशेष की भर दें। इसके साथ नीम की पत्तियाँ मिलना विशेष लाभदायक होता है इससे दीमक पैदा नहीं होती है।
दूसरी परत में 125 से 250 लीटर पानी में 10 किलोग्राम गोबर घोलकर पहली परत पर इस प्रकार छिड़कते हैं कि पूरा वानस्पतिक सामग्री अच्छी तरह से भीग जाए। तीसरी परत में 60 से 70 किलोग्राम सूखी हुई मिट्टी जो खेत की भुरभुरी काली मिट्टी हो। समतल भरते हुए फिर ऊंचाई से एक से डेढ़ फुट तक झोपड़ी नुमा आकार में भरते हैं टांका ऊपर तक भरने के बाद दो से तीन इंच मोटी मिट्टी की परत जमा कर गोबर से लिपाई करते हैं जिससे इसमें दरार न पड़े। इसके बाद दूसरी बार 20 से 22 दिन बाद आती है।
दरअसल पहले की प्रयुक्त सामग्री सिकुड़ कर टांका के बराबर मुंह तक आ जाती है। इसके बाद होती है इसमें दूसरी भराई। इसे भी उसी तरह करते हैं और एक झोपड़ी नुमा आकार देते हैं। और फिर झोपड़ी नुमा आकार देकर इसे ठीक वैसे ही बंद किया जाता है।
इस खाद की सबसे खास बात बताते हुए डॉ नरेंद्र कहते हैं, “नाडेप कंपोस्ट को पकाने में 90 से 100 दिन का समय लगता है और यह खाद कितना उपयोगी है इसे खेत में प्रयोग करने के बाद किसान स्वयं देख सकते हैं।”
इस प्रकार 3 माह के बाद जब कंपोस्ट लगभग तैयार हो जाए तो पीएसबी जैव उर्वरक का घोल बनाकर बस या पाइप से कंपोस्ट के मध्य डालनी चाहिए ऐसा करने पर संपूर्ण कंपोस्ट में लाभदायक जीवाणुओं की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हो जाती है 90 से 100 दिन की गहरी भूरे रंग की खाद बनाकर तैयार हो जाती है खाद में दुर्गंध समाप्त होकर अच्छी खुशबू आती है लेकिन खाद सूखनी नहीं नहीं चाहिए।
इसमें 15 से 20% नमी होनी चाहिए तैयार कंपोस्ट को बाहर निकालने के बाद इसमें राइजोबियम कल्चर मिलाकर तीन से चार दिन ढेर बनाकर छायादार स्थान में रखने के बाद प्रयोग करना विशेष लाभदायक होता है। कंपोस्ट खाद के प्रयोग की विधि भी बहुत आसान है। नाडेप कंपोस्ट पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने पर प्रति एकड़ प्रति फसल 30 से 50 कुंतल खाद बुवाई के 15 दिन पहले खेत में फैलाकर खेत में हल चलाकर मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए।
कंपोस्ट खाद पहले साल में 33% दूसरे वर्ष में 45% तथा तीस वर्ष में 22% लाभ देती है। इस प्रकार पूरे लाभ के लिए खाद का लगातार प्रयोग करते रहना चाहिए। नाडेप कंपोस्ट अगर लगातार प्रयोग की जाती है तो रासायनिक उर्वरक की आवश्यक मात्रा खेत के लिए बहुत कम होती चली जाती है यह भी हो सकता है कि रासायनिक खाद का प्रयोग बिल्कुल बंद हो जाए। इस तरह नाडेप कंपोस्ट किसानों के लिए एक वरदान जैसी है।