कम लागत में प्याज की अधिक रोपाई के लिए वैज्ञानिकों ने बनाई ‘जादुई’ मशीन

दक्षिण भारत में कई राज्यों में प्याज़ की इस ख़ास किस्म की खेती की जाती है; किसानों का समय और लागत बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने इसकी रोपाई की नई मशीन बनाई है।
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अगर आप शैलोट्स या मद्रासी प्याज़ के किसान हैं तो आपके लिए वैज्ञानिकों ने एक ऐसी जादुई मशीन तैयार की है जो पलक झपकते ही एक दो नहीं बल्कि खेत की चार क्यारियों में 15 -20 प्याज के बीज (कंदों को) रोप देगी।

इस यंत्र को तैयार किया है आईसीएआर-भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरु ने।

ख़ास बात ये है कि एक एकड़ प्याज के खेत में जहाँ रोपाई के लिए कई मज़दूर और घंटों मेहनत लगती थी वो अब घट कर मिनटों में हो गई है।

देश में तीन तरह के प्याज का उत्पादन होता है, एक सामान्य प्याज, एक उससे छोटा और तीसरा जिसे मल्टीप्लायर या शैलोट्स जिसे मद्रासी प्याज़ कहा जाता है। इसकी खेती में समय और लागत दोनों ज़्यादा लगता है।

मल्टीप्लायर प्याज, 5-6 बल्ब गुच्छों में पैदा होते हैं। इसकी खेती ज़्यादातर तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, दक्षिण कर्नाटक, ओडिशा के कुछ हिस्सों और केरल में की जाती है। देश का लगभग 90 प्रतिशत मल्टीप्लायर प्याज तमिलनाडु से उत्पादित होता है।

इस प्याज का इस्तेमाल दक्षिण भारत में सांभर, चटनी जैसे व्यंजनों के बनाने में किया जाता है।

कैसे तैयार होता है इसका बीज

खेती के लिए छह महीने भंडारित प्याज के बीजों का इस्तेमाल होता है। रोपाई में हर बीज की दूरी 15 से 20 सेमी रखनी होती है। ऐसे में इसे लगाने में काफी समय लग जाता है। इससे लागत 11 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।

भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान ने ट्रैक्टर से चलने वाले रेज्ड बेड प्याज बल्ब लेट प्लांटर बनाया है। इससे प्याज रोपाई का काम आसान हो जाता है। इसमें एक चेन लगी होती है जो एक साथ चार क्यारियों में प्याज के कंदों की रोपाई करता जाता है। चाहे तो इसे और बढ़ा सकते हैं।

ऐसे करता है काम

हॉपर में प्याज के बल्ब भरे जाते हैं और ट्रैक्टर को 1.5 किमी/घंटा की गति से चलाया जाता है। आगे का उठा हुआ हिस्सा 850-900 मिमी चौड़ाई और 200 मिमी ऊंचाई का एक बेड बनाता जाता है।

प्याज के बल्ब लगाने के लिए 50 मिमी चौड़ाई और 50 मिमी गहराई का कुंड बनाता है। बीज मीटरिंग प्रणाली बीज भंडारण से प्याज के बल्बों की मीटरिंग करती है और उन्हें बीज ट्यूब तक पहुँचाती है। इसके अलावा, प्याज के बल्बों को कुडों में डालकर मिट्टी से ढक दिया जाता है।

इस मशीन की काम करने की क्षमता 0.12 हेक्टेयर/घंटा है। इस मशीन की मदद से 35 प्रतिशत मेहनत, लागत की बचत हो जाती है।

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