अपने देश में मिलती है दुनिया की सबसे छोटी गाय, आप भी पाल सकते हैं

मकर संक्रांति के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छोटे कद की गायों को चारा खिलाते नज़र आए। सोशल मीडिया पर कुछ लोग इस गाय को बछड़ा बता रहे हैं, तो कुछ इन गायों की मासूमियत के दीवाने हो रहे हैं। आखिर क्यों ये गाय है इतनी ख़ास और कहाँ है इनका मूल निवास, इसी से जुड़ी है ये रिपोर्ट।

मकर संक्रांति की सुबह पीएम मोदी की ये तस्वीर खूब वायरल हुई , इसकी बड़ी वजह थी तीन फ़ीट तक की ‘पुंगनूर’ गायें ।

जी हाँ, आंध्र प्रदेश की पुंगनूर नस्ल की ये गायें दुनिया की सबसे छोटी गायों की नस्लों में शामिल हैं।

हिंदुस्तान में 43 से अधिक देसी गाय की नस्लें हैं, इन्हीं में से एक है पुंगनूर गाय, जिसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कायल हैं।

क्या ख़ास है इस पुंगनूर गाय में

भारत की हर देसी गाय की नस्ल अपने आप में ख़ास है, ऐसी ही एक विलुप्त होती गाय की नस्ल है पुंगनूर; जो अपने छोटे कद के लिए मशहूर है। इसे अब संरक्षित करने की दिशा में काम चल रहा है।

आम गाय के दूध में जहाँ 3.5 प्रतिशत फैट होता है वहीँ पुंगानुर में 8 प्रतिशत फैट पाया जाता है।

110 से 200 किलोग्राम वजन वाली ये गाय एक दिन में दो से तीन लीटर तक दूध देती है। अगर इसके चारे की बात करें तो एक दिन में 5 किलो तक चारा खा लेती है।

पुंगानुर मुख्य रूप से दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले की नस्ल है, गाय की इस नस्ल का नाम दक्कन पठार के दक्षिण-पूर्वी सिरे पर स्थित चित्तूर जिले के पुंगनूर के नाम पर रखा गया है।

आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के लिंगमपट्टी गाँव में 4 एकड़ में फैली नादीपति गौशाला में पुंगनूर नस्ल के 1058 गोवंश हैं, जिसे करीब 16 साल पहले कृष्णम राजू ने एक गाय से शुरू किया था। यहाँ पर कृष्णम राजू पुंगनूर गायों का संरक्षण कर रहे हैं।

वो आगे कहते हैं “पुंगानुर एक प्राचीन नस्ल है, यह एक ऋषि-मुनि भी इस नस्ल को पालते थे, इस छोटी गाय को ज़्यादा खिलाना भी नहीं होता, जबकि इसका दूध भी बढ़िया होता है; लेकिन धीरे-धीरे विदेशी नस्लों के आने के बाद से हमारी देश की पुरानी नस्ले विलुप्त होने लगी, उन्हीं में से एक पुंगानुर भी थी।”

पुंगनूर गाय की सबसे खास बात ये है की इसको खाना बहुत कम खिलाना पड़ता है और इसका दूध भी काफी अच्छा और पौष्टिक होता है।

पुंगनूर गाय का दक्षिण भारत से संबंध

इस गाय की सबसे अच्छी बात है कि ये सूखा प्रतिरोधी किस्म होती है, इसलिए दक्षिण भारत में इसे लोग पालते थे।

कृष्णम के अनुसार उनकी गौशाला दुनिया की सबसे बड़ी पुंगानुरू नस्ल की गोशाला है। वो बताते हैं, “हमारे पास 1058 गोवंश हैं, यह दुनिया की सबसे छोटी पुंगनूर गाय की सबसे बड़ी गौशाला है।”

नादीपति गौशाला शुरू करने के बारे में डॉ कृष्णम राजू बताते हैं, “शुरू से ही मुझे गायों से लगाव था, फिर मुझे पुंगनूर के बारे में पता चला; शुरू में एक गाय लेकर आया, जिसका गुंटूर के सरकारी फार्म पर कृत्रिम गर्भाधान (आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन) कराया था, उसके बाद फिर तो इनकी संख्या बढ़ने ही लगी।”

प्रधानमंत्री की गायों के साथ वीडियो वायरल होने के बाद देश भर से उनके पास फोन आ रहें हैं, राजू गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “कल से मेरे पास बहुत सारे फोन आए हैं, हर कोई इस गाय के बारे में जानना चाहता है।”

नस्ल सर्वेक्षण के आधार पर पशुधन जनसंख्या-2013 के अनुसार आंध्र प्रदेश में पुंगानुर गायों की संख्या सिर्फ 2,772 थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में पुंगनूर नस्ल के संरक्षण पर काम हो रहा है।

जबकि साल 2019 में की गई 20वीं पशुधन गणना और एनबीएजीआर के अनुसार पुंगानुर गोवंश की संख्या 13275 है। यह देश में सबसे कम संख्या वाली गोवंश नस्लों में तीसरे नंबर है। सबसे कम संख्या वाली गायों की बात करें तो बेलाही नस्ल की गायों की संख्या सबसे कम 5264 है। दूसरे नंबर पर पनिकुलम तीसरे नंबर पर पुंगानुर चौथे पर वेचुर और पांचवें नंबर पर डागरी है।

पुंगानुर के छोटे कद की वजह से इसे काफी लोग पसंद करने लगे हैं और इसका एक जोड़ा 1 लाख से 25 लाख तक में बिकता है, जितनी छोटी गाय होगी, उतना ही ज़्यादा इसका दाम होगा।

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