“हम चाहते हैं कि जैसे रेल का स्वतंत्र बजट होता है वैसे ही कृषि का भी एक अलग बजट हो, सरकार ग्राहकों के लिए तो बहुत काम कर रही है लेकिन किसानों के लिए क्या है ? ” महाराष्ट्र प्याज उत्पादक किसान संगठन के अध्यक्ष भरत दिघोले ने गाँव कनेक्शन से कहा।
वे कहते हैं, “भारत को कृषि प्रधान देश बोला जाता है, जब भी कोई रैली होती है तो लीडर लोग बोलते हैं ये कृषि प्रधान देश है; हम किसान के लिए ये करेंगे वो करेंगे, लेकिन धरातल पर ख़ास दिखता नहीं।”
वे आगे कहते हैं, “कृषि का ऐसा स्वतंत्र बिल पेश करना चाहिए जिसमे फसल का दाम निश्चित हो।”
सरकार की तमाम योजनाओं के बावज़ूद किसानों की बड़ी शिकायत खेती की लागत के बाद अधिक मुनाफा नहीं मिलना है।
भारत दिघोले ने कहा, “टमाटर के जब दाम बढ़े तो सरकार ने नेपाल से टमाटर इम्पोर्ट करना शुरू कर दिया, उसके बाद प्याज़ के दाम में थोड़ा सुधार हुआ तो पहले एक्सपोर्ट ड्यूटी लगा दी फिर एक्सपोर्ट बैन ही कर दिया; सरकार की कोशिश यही रहती है कि किसान की फसल सस्ते दाम में लोगो तक पहुँचे, लेकिन जो किसान दिन रात मेहनत करता है उसके लिए कोई ऐसी पाॅलिसी क्यों नहीं है कि किसान को अपनी फसल का पक्का दाम मिलेगा।”
सब्सिडी से ज़रूरी है फ़सल का सही दाम
उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के आलू किसान भंवर पाल सिंह सरकारी योजनाओं को ठीक तो मानते हैं, लेकिन सब्सिडी से ज़्यादा ज़रूरी वे फसल की सही कीमत देना मानते हैं।
“हमको बस अपनी फसल के सही दाम मिल जाए वो बहुत है; जो स्वामीनाथन कमेटी ने बताया था उस हिसाब से एमएसपी सरकार दे; जैसे मैं एक आलू किसान हूँ, हमें कभी सही दाम ही नहीं मिलते हैं, अभी खेतों में हमारा आलू है मुझे यही नहीं पता की इसके क्या रेट मुझे मिलेंगे, सरकार बजट में इस बारे में कुछ करे। ” भंवर पाल सिंह ने गाँव कनेक्शन से अपनी परेशानी साझा करते हुए कहा।
भंवर पाल आवारा पशुओं से परेशान हैं। उनकी नज़र में ये बड़ी समस्या है जिसे शुरू से अनदेखा किया गया।
वे कहते हैं, “अच्छा होता अगर इसबार के बजट में किसान क्रेडिट कार्ड से ब्याज़ सरकार खत्म कर दे; साथ ही किसान को भी आज़ादी होनी चाहिए कि वो अपनी फसल का दाम तय कर सके, अगर मेरा आलू 15 से 20 रूपए किलो बिकने लगे तो हमे क्या दिक्कत होगी? आप दीजिये फिर डीएपी 2000 हज़ार रूपए बोरी, हमे कोई दिक्कत नहीं; लेकिन हमारा आलू अगर बिकेगा दो रूपए किलो तो उससे ज़्यादा तो हमारी लागत आ जाती है।”
भारत दिघोले ने गाँव कनेक्शन से कहा, “खाद और पेस्टिसाइड के दाम सरकार को कम करने चाहिए; कम्पनियाँ करोड़ और अरबों रुपया कमा रही हैं, लेकिन किसान मर रहा है और दिन पर दिन कर्ज़ का बोझ बढ़ता जा रहा है।”
उत्तराखंड के नैनीताल में नरेंद्र महरा मोटा अनाज और हल्दी की खेती करते हैं। गाँव कनेक्शन ने जब उनसे पूछा वे इस बार के बजट में किसानों के लिए क्या देखना चाहते हैं? तो उनका जवाब था “हमें अपनी चीज़ो का मूल्य संवर्धन करने की ज़रुरत है, छोटी छोटी यूनिट बनायी जाए ;जैसे जहाँ दाल अच्छी होती है वहाँ उसका एक छोटा सा प्लांट हो और जो महिलाओं के ग्रुप बने हैं उनके जरिए मार्केटिंग की जाए, बजट का लाभ इन महिलाओं को भी मिलना चाहिए।”
महिला किसानों के लिए विशेष है बजट ?
ब्रह्मानंद एंड कंपनी के निदेशक और आर्थिक मामलों के जानकर मनोरंजन मोहंती का मानना है कि मौजूदा सरकार शुरू से किसान और महिलाओं के विकास पर ज़्यादा जोर देती रही है। ऐसे में मुमकिन है इस तरफ विशेष फोकस हो। ।
मोहंती के मुताबिक मनरेगा के लिए महिलाओं को विशेष आरक्षण और ज़्यादा मानदेय दिया जा सकता है; इसके लिए महिलाओं को ब्याज़ रहित लोन की पेशकश भी की जा सकती है।
मोहंती कहते हैं, “हालाँकि इस बात की उम्मीद अधिक है कि महिला किसानों के लिए सम्मान निधि को बढ़ाकर 12 हज़ार किया जाए; महिलाओं को वित्तीय तौर पर मज़बूत बनाने के लिए कौशल विकास की योजना भी लाई जा सकती है।”
वे आगे कहते हैं, “कृषि और ग्रामीण क्षेत्र को समर्थन देने के लिए कर राहत उपाय सहित दूसरी घोषणाएँ हो सकती हैं।
पीएम किसान सम्मान के तहत केंद्र सरकार छोटे और सीमांत किसानों काे 2000 रुपये की 3 किस्तों में कुल 6 हज़ार रुपये सालाना देती है। सरकार ने 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले 1 फरवरी को अंतरिम बजट में इस योजना काे लागू करने का प्रावधान किया था।
इस बार का बजट क्यों है ख़ास ?
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी 2024 को यूनियन बजट पेश करेंगी। वह लगातार छठी बार आम बजट पेश करने वाली हैं। हालाँकि केंद्र की मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का ये आख़िरी बजट होगा, क्योंकि इसके बाद देश में लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में ये बजट काफी महत्वपूर्ण है।
आर्थिक मामलों के जानकर मानते हैं कि गरीब, युवाओं, किसानों और महिलाओं के लिए ख़ास हो सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही कह चुके हैं कि मेरे लिए देश में केवल यही 4 जातियाँ हैं। ऐसे में संभव है कि अंतरिम बजट का फोकस इन 4 वर्ग पर सबसे ज़्यादा रहे।