लखनऊ। सोयाबीन को मध्य प्रदेश का पीला सोना कहा जाता रहा है। ऐसी मान्यता थी कि इसकी खेती से किसानों को निश्चित लाभ मिलता था। नुकसान की गुंजाइश बहुत कम थी। फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि किसानों का सोयाबीन से मोहभंग होता जा रहा है ? हालात तो ऐसे बन गये हैं कि मध्य प्रदेश से सोयाबीन राज्य दर्जा भी छीना जा सकता है।
मध्य प्रदेश, जिला होशंगाबाद के तहसील सोहागपुर के गांव अजेरा के किसान मनीष कुमार (42) पिछले 15 वर्षों से सोयाबीन की खेती करते आये हैं। वे बताते हैं “मैं पहले 40 एकड़ में सोयाबीन लगाता था। अब लागत काफी बढ़ गयी है। ये भी सही है कि उस हिसाब रेट भी बढ़ा है लेकिन सोयाबीन अब निश्चित फायदे वाली खेती नहीं रही, इसलिए मैंने रकबा घटाकर लगभग आधा कर दिया है। बदलता मौसम और सही बीज न मिल पाने के कारण पिछले कई साल से नुकसान हो रहा है।”
सबसे ज्यादा हालत खराब तो विंध्य की हुई है। यहां की नकदी फसल सोयाबीन किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है। यही कारण है कि इस फसल किसान खुद को दूर करता जा रहा है। बात अगर सतना की करें तो यहां सोयाबीन कभी 85 हजार हेक्टेयर में बोई जाती थी लेकिन अब इसका रकबा घटकर 10 हजार हेक्टेयर में सिमट गया है। यहां के सोया प्लांटों को दूसरे राज्यों में शिफ्ट किया जा रहा है।
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लगातार तीन दशक से सोयाबीन की खेती से सतना की जमीन की क्षमता तेजी से घटी है। कभी मौसम की मार तो कभी भाव सही न मिलने के कारण किसान अब इसके विकल्प पर ध्यान दे रहे हैं। सतना के उपसंचालक कृषि, आरएस शर्मा इस बारे में कहते हैं “सोयाबीन के लिए सही मौसम का होना बहुत आवश्यक है, जो की पिछले कुछ सालों से ठीक नहीं चल रहा। रकबा घटने का ये सबसे बड़ा कारण है। किसान अब दलहनी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं।
हालांकि मध्य प्रदेश में इस साल सोयाबीन का रकबा इस साल बढ़ा है। यहां 44.41 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन लगाया गया है जबकि महाराष्ट्र में 32.13 लाख हेक्टेयर और राजस्थान में 9.45 लाख हेक्टेयर है। लेकिन मध्य प्रदेश के किसान मक्का, ज्वार और अरहर की फसल बो रहे हैं। ये फसल कम से कम 40 से 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन दे रही हैं। सोयाबीन का उत्पादन बढ़ाने यदि प्रयास सफल नहीं रहे तो अधिकांश किसान इन फसलों की तरफ आ जाएंगे।
जवाहर लाल कृषि विश्वविद्यालय के डायरेक्टर फार्म और प्लांट ब्रिडिंग के हेड डॉ. डीके मिश्रा कहते हैं “मौसम में उतार-चढ़ाव बहुत देखा जा रहा। पहले से ही परेशान किसान अब किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहते। तापमान बढ़ रहा है और बारिश का ग्राफ गड़बड़ है। यही कारण है कि किसान सोयाबीन छोड़कर अन्य फसलों की ओर ध्यान दे रहे हैं।”
देवास के किसान अरुण बोवचे (51) कहते हैं “मालवा क्षेत्र में भी किसान सोयाबीन का विकल्प तलाश रहे हैं। बीजों की नयी वैरायटी मिलती नहीं और पुरानी से सही उत्पादन नहीं होता। 10 से 15 अगस्त के बीच की बारिश सोयाबीन की फसल के लिए बहुत फायदेमंद होती है, लेकिन बारिश का चक्र पूरी तरह से गड़बड़ हो गया है। इसके अलावा खरपतवार नाशक के उपयोग से भी खेतों की उर्वरक क्षमता घटी है। सोयाबीन में 30 डिग्री का तापमान जरूरी होता है, जो औसतन 35 से 38 के बीच रह रहा है। पानी- रुक-रुक कर मिलना चाहिए, जो नहीं मिल रही, एक साथ बारिश हो रही तो कहीं हो ही नहीं रही।”
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जिला नरसिंहपुर के तहसील करेली के निजोर गांव के किसान राव अरविंद कुमार (42) कहते हैं “मैं पिछले 10 सालों से सोयाबीन की खेती कर रहा हूं। पिछले साल बारिश न होने के कारण 17 एकड़ की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गयी थी, इसीलिए इस साल आठ एकड़ में ही लगाया है। खराब मौसम के अलावा हमें किस्मों से भी धोखा मिलता है। अच्छी किस्मों के बारे में कोई बताने वाला ही नहीं है।”
भारत में पिछले पांच-छ: वर्षों में सोयाबीन के उत्पादन में बहुत उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। वर्ष 2012-13 में जहां उत्पादन 121.9 लाख मीट्रिक टन हुआ था वहीं अगले पांच वर्षों में इसमें गिरावट देखने को मिली है। वर्ष 2013-14 में यह 950.0, 2014-15 में 871.0, 2015-16 में 700.0, 2016-17 में 115.0 तथा पिछले वर्ष 2017-18 में 100.0 लाख मीट्रिक टन ही हुआ। देश में सोयाबीन उत्पादक राज्यों में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान प्रमुख हैं। इन प्रदेशों की औसत उत्पादकता 11-12 क्विंटल से अधिक नहीं पहुंच पाई है। मौसम विषम परिस्थितियों में यह 8-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर ही रह जाती है। उत्तरी अमेरिका, ब्राजील, अर्जेन्टीना जैसे देशों में सोयाबीन की उत्पादकता 27 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से अधिक रहती है।
मध्य प्रदेश में पिछले 10 वर्षों में सोयाबीन की स्थिति
वर्ष, एरिया (लाख हेक्टेयर), उत्पादन (मीट्रिक टन)
2007, एरिया, 48.792, उत्पादन- 51.००९ मीट्रिक टन
2008, 51.534, 51.940
2009 52.985, 55.087
2010 52.985, 55.087
2011 57.300, 61.669
2012 58.128, 64.861
2013 62.605, 42.849
2014 55.462, 49.679
2015 56.128, 34.124
2016 54.010, 55.068
2017 50.100, 42.००१